Air Pollution Alert: सावधान! तेजी से बढ़ रहा हवा में जहर, आ गया सांसों में घुटन का मौसम, आखिर कैसे बचा जाए ?

Air Pollution Causes and Prevention: किस पर उंगली उठाएं, तय नहीं हो पा रहा। कारण एक है या ऊपर गिनाए सभी, पता नहीं चल पा रहा। लेकिन सिर्फ इतना पता है कि दिल्ली पहुंचते ही आंखें जलने लगती हैं, सांस फूलने लगती है और सफेद शर्ट कुछ ही देर में रंगत बदल देती है।

Written By :  Yogesh Mishra
Update: 2023-11-07 11:58 GMT

Air Pollution Causes and Prevention: सर्दी का मौसम शुरू होने लगा है। लम्बी तकलीफदेह गर्मियों के बाद पुरसुकून वाली ठंडी हवाओं के हल्के शुरुआती झोंके महसूस होने लगे हैं लेकिन सिर्फ जिस्म को ही। तपिश से राहत तो है लेकिन दम घुटता जा रहा है। फेफड़े भारी बोझ तले लगते हैं, आंखों की जलन आंसुओं से भी दूर नहीं होती। हवा ठंडी है लेकिन फ़िज़ा दमघोंटू है। ये हाल है राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली का। डेढ़ अरब नागरिकों के खेवनहार लालकिले वाली जिस आलीशान दिल्ली में बैठे हैं, वहीं की हवा जहरीली है। कोई पहली बार नहीं बल्कि लगातार बरसों से है और जहर ऐसा है कि काटे नहीं कटता।

जहर आया कहां से इसका अतापता भी बरसों से पुख्ता पता नहीं लग पा रहा। दिल्ली की नगर निगमी सरकार से लेकर देश की सरकार की लंबी चौड़ी एजेंसियां भी पता नहीं कर पा रहीं कि हवा में जहर घोलता कौन है? पंजाब के किसान या हरियाणा के पराली जलाने वाले किसान? दिल्ली के छोटे-बड़े सैकड़ों कल कारखाने या सड़कों को रौंदती बसें और अनगिनत कारें - ट्रक - बाइक? जमीनों के हर खाली टुकड़े पर ईंट पत्थर की इमारतें खड़े करते कंस्ट्रक्शन वाले? झाड़ू लगाते सफाई वाले बंधु या घास-हरियाली से मरहूम जगहों से बदस्तूर उड़ती धूल?

दिल्ली की हवा में फैला जहर

किस पर उंगली उठाएं, तय नहीं हो पा रहा। कारण एक है या ऊपर गिनाए सभी, पता नहीं चल पा रहा। लेकिन सिर्फ इतना पता है कि दिल्ली पहुंचते ही आंखें जलने लगती हैं, सांस फूलने लगती है और सफेद शर्ट कुछ ही देर में रंगत बदल देती है।


जनता भी गजब की हिम्मती और सब्रशुदा है। घर के बाहर जहर खींचती है और घर के भीतर एयरप्यूरीफायर लगवा रखती है। टीवी-पेपर मोबाइल में धुएं के आगोश वाली फोटो और एक्यूआई आंकड़े पढ़ती है, फिर गहरी सांस खींच कर पोलिटिकल बहस में मशगूल हो जाती है। काम चलते रहना चाहिए। कोई चारा भी तो नहीं है। जाए तो जाए कहाँ? हर शहर का एक ही हाल है।


कुछ मसला आग से जुड़ा जरूर है जिसके बारे में आसमान से खींची गई फोटुएं तस्दीक करती हैं। इनमें आग दिखाई देती जिसे पराली वाली आग बताया जाता है। पराली, जिसे जलाना जुर्म है, कोर्ट से लेकर सरकार और पर्यावरण के रखवाले प्राधिकार के तमाम आदेश हैं, बंदिशें हैं। लेकिन पराली ताल ठोंक के जलती है।


और तो और,उत्तर भारत में पिछले साल की बनिस्बत इस साल पराली जलाने में 30 फीसदी इजाफा हो गया है। लेकिन मुम्बई में पराली का क्या दोष? वहां भी जनता दिल्ली वाली आबोहवा का मुजाहिरा कर रही है। वहां पराली नहीं तो कुछ और है।

वायु प्रदूषण से होती मौतें

दिल्ली या किसी भी बड़े शहर में रहने वाले शायद भुलावे में जीते हैं कि मास्क लगाने, एसी में जिंदगी बिताने, एयर प्यूरीफायर लगवाने से महफूज़ हो गए हैं तो सिर्फ यही कहा जा सकता है : बड़े नादान बने हुए हैं बेचारे। उन्हें पता नहीं कि डब्लूएचओ ही कहता है कि जहरीली हवा यानी वायु प्रदूषण के नतीजे इस कदर गंभीर हैं - स्ट्रोक, फेफड़ों के कैंसर और हृदय रोग से होने वाली एक तिहाई मौतें वायु प्रदूषण के कारण होती हैं। इस जहरीली हवा का असर एक दिन में दस पैकेट सिगरेट पीने या पाव भर नमक खाने से भी बदतर है। सिर्फ शरीर ही नहीं, आपकी हमारी मेन्टल हेल्थ को भी यही हवा चौपट किये दे रही है। एयर पॉल्युशन का नाम बीमारियों की लिस्ट में ठीक उसी तरह नहीं है जैसे साइनाइड भी बीमारी नहीं है । लेकिन वह करता क्या है, सब जानते हैं। लेकिन यही प्रदूषण हर साल 11 लाख जानें ले लेता है।

कोरोना की मार से बेदम हुए फेफड़े

कोरोना ने फेफड़े वैसे ही बेध रखे हैं। खड़े खड़े लोगों की मौत हो रहीं हैं। इसमें प्रदूषण का भी योगदान है। डॉक्टरों का कहना है कि दस फीसदी मौतें जहरीली हवा की वजह से ही हैं।हैरत की बात है कि देश, राज्य, शहर चलाने वाले भी तब नींद से जगते हैं जब एक्यूआई 500-600 के बेहद खतरनाक लेवल को पार कर जाता है। खटाखट उपाय घोषित कर दिए जाते हैं : स्कूल बंद, कंस्ट्रक्शन बन्द, पेड़ों पर पानी छिड़काव शुरू वगैरह। शायद इसके आगे न कुछ करने को है,न सोचने-करने की शक्ति या ज़ज़्बा है। हवा में जहर है तो क्या हुआ, धीरे धीरे खत्म हो जाएगा। अगले साल फिर जब एक्यूआई 500 पार करेगा तो फिर अंगड़ाई लेते नींद से जागेंगे।

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परमानेंट इलाज नदारद है, सिर्फ लक्षण दबाए जा रहे हैं। हम आयुर्वेदिक पद्धति के आविष्कारक भले ही हैं । लेकिन सभी समस्याओं के मामले में ऐलोपैथिक वाला रास्ता अपना लेते हैं : लक्षण को दबाओ।खैर, कुछ बात चीन की कर लेते हैं। दुश्मन भले हो लेकिन हमारा सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है सो कुछ खूबियों का बखान करने से गुरेज नहीं करना चाहिए। चीन के बीजिंग और शंघाई जैसे मेगा महानगरों की आबोहवा दिल्ली से कई कई गुना गई बीती थी। इतना धुंआ-धूल होता था कि धुंध की मोटी दीवार बन जाती।

चीन सरकार भले ही डंडे और सख्ती के जोर वाली हो लेकिन वहां भी जनता की आवाज़ अनसुनी नहीं की जाती क्योंकि रहनुमाओं को पता है कि जनता साथ रहे इसी में भलाई है। सो, शहरों-महानगरों में गैस चेम्बर जैसे हालात होने पर नागरिकों में बड़े पैमाने पर गुस्सा और निराशा फैल गई। चीन ने तुरंत अपने शहरों की वायु क्वालिटी को साफ करने के लिए कदम उठाया। सरकार ने कोयले से चलने वाले नए बिजली संयंत्रों पर प्रतिबंध लगा दिया और सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में कई पुराने संयंत्रों को बंद कर दिया। शंघाई, शेन्ज़ेन और गुआंगझू जैसे बड़े महानगरों में सड़क पर कारों की संख्या सीमित कर दी गई। देश ने अपनी लोहा और इस्पात बनाने की क्षमता कम कर दी। कोयला खदानें बंद कर दीं।

अधिक पेड़ लगाने की जरुरत

सरकार ने ग्रेट ग्रीन वॉल जैसे सघन वनीकरण और पुनर्वनीकरण कार्यक्रम भी शुरू किए और 12 प्रांतों में 35 अरब से अधिक पेड़ लगाए। ऐसे कार्यक्रमों में 100 अरब डॉलर से अधिक के निवेश के साथ, चीन का प्रति हेक्टेयर वानिकी खर्च अमेरिका और यूरोप से अधिक हो गया और वैश्विक औसत से तीन गुना अधिक हो गया। 2011 में शुरू किए गए उपायों का असर अगले छह साल में ऐसा हुआ कि कहीं धुएं धूल की परत रह ही नहीं गई। हवा में अति सूक्ष्म कणों यानी पार्टिकुलेट मैटर की मौजदूगी बहुत हद तक कंट्रोल कर ली गई।

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काश हमारे यहां भी ऐसा होता। काश हम साल में एक बार जागने की बजाए पूरे साल जगे रहते और हर उस चीज को कंट्रोल करते जो हवा में ज़हर घोलता है। गलती हमारी है जो सरकारी उपायों को अपना हक नहीं बल्कि ‘सौगात’ मानते हैं। चूंकि सौगात मांगी नहीं जाती सो पूरे पूरे क्षेत्रों - शहरों को प्यूरीफाई करने के उपाय होते नहीं, किये नहीं जाते।

वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक

और तभी वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक के पैमाने पर भारत प्रदूषण रैंकिंग में 252 देशों में से दूसरे स्थान पर है। अभी सर्दियां शुरू हुईं हैं। जहरीली हवा के संग मौसम चुनाव का भी है। पलड़ा किसका भारी है, प्रायोरिटी किसकी है, आप भी देख रहे हम भी देख रहे। सांसें आपकी हैं, बचा सकें तो बचा लीजिये।

( लेखक पत्रकार हैं । साभार दैनिक पूर्वोदय,) 

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