Amit Shah: जम्मू-कश्मीर में भाजपा की रणनीति को धार देंगे शाह, तीन दिवसीय दौरे पर टिकी निगाहें
Amit Shah: जम्मू कश्मीर में अगले साल संभावित विधानसभा चुनाव से पूर्व गृह मंत्री अमित शाह का घाटी का दौरा सियासी नजरिए से काफी अहम माना जा रहा है।
Amit Shah: जम्मू कश्मीर में अगले साल संभावित विधानसभा चुनाव से पूर्व गृह मंत्री अमित शाह का घाटी का दौरा सियासी नजरिए से काफी अहम माना जा रहा है। शाह का तीन दिवसीय जम्मू कश्मीर दौरा सोमवार से शुरू हो रहा है और इस दौरान वे दो बड़ी रैलियों को संबोधित करेंगे। जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को समाप्त किए जाने के बाद शाह अपने तीसरे दौरे पर जम्मू कश्मीर पहुंचने वाले हैं। भाजपा ने विधानसभा चुनाव के मद्देनजर गुर्जर और बकरवाल समुदायों पर नजरें गड़ा रखी है। इसके साथ ही पहाड़ी समुदाय पर भी भाजपा की नजरें हैं। माना जा रहा है कि अपनी जम्मू-कश्मीर यात्रा के दौरान शाह भाजपा की इस रणनीति को और धार देंगे। शाह के प्रस्तावित दौरे के मद्देनजर भाजपा की जम्मू-कश्मीर इकाई की ओर से जोरदार तैयारियां की जा रही हैं।
दो बड़ी रैलियों को संबोधित करेंगे शाह
शाह का 3 अक्टूबर को जम्मू पहुंचने का कार्यक्रम है। घाटी पहुंचने के बाद शाह पार्टी के स्थानीय नेताओं से भाजपा के सियासी रणनीति पर चर्चा करेंगे। 4 अक्टूबर को माता वैष्णो देवी के दर्शन करने के बाद शाह राजौरी में पार्टी की ओर से आयोजित एक बड़ी रैली को संबोधित करेंगे। 5 अक्टूबर को विजयदशमी के दिन भी शाह घाटी में रहेंगे और उनकी बारामुला में रैली रखी गई है। शाह की दोनों रैलियों का आयोजन भी सियासी नजरिए से काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
दरअसल बारामुला और राजौरी दोनों जिलों में गुर्जर और पहाड़ी समुदाय के लोग काफी संख्या में हैं। पहाड़ी समुदाय के लोग काफी दिनों से अनुसूचित जाति में शामिल किए जाने की मांग कर रहे हैं। गुर्जर और बकरवाल समुदाय के लोगों को अनुसूचित जाति का दर्जा केंद्र सरकार की ओर से पहले ही दिया जा चुका है और शाह की प्रस्तावित यात्रा के दौरान पहाड़ी समुदाय की मांग भी पूरी होने की उम्मीद जताई जा रही है।
घाटी के इन समुदायों पर भाजपा की नजरें
दरअसल भाजपा की ओर से गुर्जर, बकरवाल और पहाड़ी समुदाय का समर्थन हासिल करने की जोरशोर से कोशिशें की जा रही हैं। जम्मू-कश्मीर विधानसभा की 20 से अधिक सीटों पर इन समुदायों के वोट निर्णायक भूमिका वाले माने जाते हैं। इनमें से अधिकांश सीटों पर अभी तक भाजपा का खाता तक नहीं खुल सका है। इसलिए भाजपा ने इस बार नई रणनीति के तहत कमर कसनी शुरू कर दी है।जम्मू-कश्मीर की आबादी का कुल 11 फ़ीसदी पहाड़ी भाषी समुदाय के लोग हैं। प्रदेश की करीब 8 सीटों पर इस समुदाय के मतदाताओं की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है। गुर्जर-बकरवाल समुदाय के लोग राज्य की 13 सीटों पर काफी असरकारक माने जाते हैं। जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव नई परिसीमन व्यवस्था के साथ होंगे और नए परिसीमन में नौ सीटें जनजातियों के लिए आरक्षित कर दी गई हैं। इसलिए भाजपा ने इन सीटों पर बदली रणनीति के साथ जोर लगाना शुरू कर दिया है।
भाजपा का बड़ा सियासी दांव
मोदी सरकार की ओर से पिछले दिनों गुर्जर नेता और भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष इंजीनियर गुलाम अली खटाना को राज्यसभा सदस्य मनोनीत किया गया था। केंद्र सरकार का यह कदम सियासी नजरिए से काफी महत्वपूर्ण था क्योंकि पहली बार किसी गुर्जर मुस्लिम को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया। सियासी जानकारों का मानना है कि गुलाम अली खटाना को राज्यसभा सदस्य बनाकर भाजपा ने गुर्जर-बकरवाल वोट बैंक में तगड़ी सेंध लगा दी है।
गुलाम अली के मनोनयन को इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि अनुच्छेद 370 को खत्म किए जाने से पूर्व गुर्जर बिरादरी को विधानसभा और संसद में बहुत कम प्रतिनिधित्व मिल सका है और वह भी इक्का-दुक्का परिवारों को। गुर्जर परंपरागत रूप से नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस को वोट देते रहे हैं मगर अब सियासी हालात बदलते हुए दिख रहे हैं।
माना जा रहा है कि शाह गुर्जर बकरवाल समुदाय के साथ ही पहाड़ी समुदाय को साधने की कोशिश करेंगे। सियासी जानकारों का कहना है कि जम्मू कश्मीर में अपनी सियासी स्थिति मजबूत करने के लिए भाजपा को गुर्जर-बकरवाल के साथ ही पहाड़ी समुदाय के समर्थन की भी जरूरत है और भाजपा उन्हें इसी दिशा में काम करना शुरू कर दिया है।