दुर्गेश मिश्र
अमृतसर : रोजाना रात को 21:25 पर अमृतसर से चलकर मुंबई सेंट्रल को जाने वाली फ्रंटियर मेल एक सितंबर को अपना 91 साल का सफर पूरा कर 92वें साल में प्रवेश कर गई। इसकी शुरुआत 1 सितंबर 1928 को हुई थी। हालांकि अब इस ट्रेन का नाम बदल गया है। यह अंग्रेजों द्वारा चलाई गई कुछ चुनिंदा रेलगाडिय़ों में से एक है जो आज भी अस्तित्व में हैं। बेशक समय के अंतराल में इसकी दूरी कम और नाम बदल गया है, लेकिन यह ट्रेन अब भी भारतीयों की सेवा में तत्पर है। रेल डिवीजन फिरोजपुर के डीएमओ एसपी सिंह के अनुसार फ्रंटियर मेल तत्कालीन बांबे, बड़ोदरा एंड सेंट्रल इंडिया रेलवे की सोच का परिणाम थी। इस ट्रेन को 1 सितंबर 1928 को ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे के पंजाब मेल के जवाब में शुरू किया गया था। तब यह रेलगाड़ी मुंबई के बल्लार्ड पियर मोल स्टेशन से पेशावर के बीच चलती थी। जब बल्लार्ड स्टेशन को बंद किया गया तो इसका आरंभिक स्टेशन कोलाब टर्मिनस कर दिया गया।
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72 घंटे में पहुंचाती थी पेशावर
एसपी सिंह ने रेलवे के पुराने रिकॉर्ड को दिखाते हुए बताया कि उस समय पंजाब मेल को जहां पेशावर पहुंचने में कई दिन लगते थे वहीं फ्रंटियर मेल 72 घंटे में यात्रियों को मुंबई से पेशावर पहुंचाती थी। उस समय यह ट्रेन बंबई और पेशावर के बीच करीब 2335 किमी का सफर 72 घंटे में तय करती थी। इस बात का आंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1930 में लंदन के द टाइम्स ने इसे ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर चलने वाली एक्सप्रेस ट्रेनों में सबसे प्रसिद्ध बताया था।
यात्रियों के साथ चिट्ठियां भी लाती है
आज के समय में इस ट्रेन का नाम और इंजन दोनों बदल गया है, लेकिन इसका काम अभी भी वही है जो 91 साल पहले था। रेलवे अभिलेखागार के मुताबिक उस समय बल्लार्ड पीयर मोल स्टेशन यूरोप से पीएंड ओ स्टीमर से आई डाक का लदान स्टेशन भी था। उस समय फ्रंटियर मेल को मुंबई से यात्रियों व डाक को दिल्ली ले जाने के लिए शुरू किया गया था। इसके बाद नार्थ वेस्टर्न रेलवे के सहयोग से यह गाड़ी पेशावर तक जाती थी।
1996 में बदला ट्रेन का नाम
एसपी सिंह के मुताबिक ब्रिटिश भारत में यह बड़ोदरा, रतलाम, मथुरा, दिल्ली, अमृतसर, लाहौर और रावलपिंडी के रास्ते पेशावर तक जाती है। एसपी सिंह कहते हैं कि यह ट्रेन भारत की आखिरी सीमा तक जाती थी। इसलिए इसका नाम अंग्रजों ने फ्रंटियर मेल रखा था, जिसे बदलकर 1996 में गोल्डन टेंपल मेल कर दिया गया। वर्तमान में यह ट्रेन इसी नाम से चल रही है।
15 मिनट लेट होने पर बिठा दी गई थी जांच
यह रेलगाड़ी उस समय अपने समय की इतनी पाबंद थी कि लोग कहते थे कि घड़ी गलत हो सकती है, लेकिन फ्रंटियर मेल लेट नहीं हो सकती। पुराने दस्तावेजों को दिखाते हुए एसपी सिंह कहते हैं कि एक बार यह ट्रेन 15 मिनट लेट हो गई थी तो इसके जांच के आदेश दे दिए गए थे।
1934 में जोड़ा गया था एसी कोच
डीओ एसपी सिंह भाटिया कहते हैं कि 1934 में इस ट्रेन में अंग्रेज अधिकारियों के लिए पहली बार एसी कोच जोड़ा गया था। इस कोच को ठंडा रखने के लिए उस समय बर्फ का इस्तेमाल किया जता था। इसके साथ इसमें पेंट्री कार व डॉइनिंग कोच भी जोड़े गए। शायद यह हिंदुस्तान की पहली एसी कोच वाली रेलगाड़ी थी।
नेताजी व बापू ने भी की थी इसमें यात्रा
एसपी सिंह भाटिया कहते हैं कि इस ट्रेन का इस्तेमाल स्वतंत्रता संग्राम में भी खूब किया गया। वे कहते हैं कि इसी ट्रेन से 1944 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस पहले पेशावर और फिर काबुल होते हुए जर्मनी चले गए थे। इसका उल्लेख नेताजी सुभाष चंद्र बोस द फॉरगॉटन हीरो में भी किया गया है। यही नहीं इससे पहले 1919 में फ्रंटियर मेल से ही बंबई से लाहौर जाते समय गांधी जी को पलवल में गिरफ्तार कर लिया गया था। यह गिरफ्तारी राजनीतिक रूप से महात्मा गांधी की पहली गिरफ्तारी थी। आजादी व देश विभाजन के बाद बेशक फ्रंटियर मेल की दूरी अब 2335 किमी से कम होकर 1883 किमी में सिमट गई हो, लेकिन आज भी गोल्डन टेंपल मेल के प्रति लोगों का विश्वास पहले की ही तरह कायम है।
फ्रंटियर मेल की कुछ खास बातें
रेलवे अभिलेखागार के मुताबिक जब फ्रंटियर मेल मुंबई पहुंचती थी तो इसके सुरक्षित आगमन की जानकारी के लिए ऊंची-ऊंची इमारतों से 36 वर्ग किमी की दूरी में विशेष लाइटिंग की जाती थी। यह नहीं जब यह गाड़ी दिल्ली पहुंचती थी तो वहां से मुंबई टेलीग्राम किया जाता था कि यह सुरक्षित पहुंच चुकी है।
ठ्ठ महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशनों पर पहुंचते ही इस गाड़ी में सफर कर रहे अंग्रेज अधिकारियों को न्यूज से अपडेट करने के लिए समाचार एजेंसी रायॅटर के साथ टेलीग्राफ न्यूज की विशेष व्यवस्था की जाती थी।
ठ्ठ पहली बार इसी ट्रेन में अंग्रेज अधिकारियों के लिए रेडियो की व्यवस्था की गई थी। यही नहीं मनोरंजन के लिए प्लेइंग कार्ड भी उपलब्ध करवाया जाता था।