Anemia Problem In India: आधी आबादी पर एनीमिया का शिकंजा, भारत में बढ़ती जा रही समस्या
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी नेशनल फॅमिली हेल्थ सर्वे के पांचवें संस्करण 2019-21 की रिपोर्ट बताती है कि 15 से 49 वर्ष की महिलाओं में से 57 फीसदी को एनीमिया है। जबकि 2015-16 में यह 53 फीसदी था।
Anemia: देश की आधी आबादी को आगे बढ़ाने, सामान अवसर देने और योग्य बनाने के लिए हर तरह की कोशिशें की जा रहीं हैं जिनमें काफी सफलता भी मिली है। लेकिन एक मोर्चा है जिसपर अब भी आधी आबादी मात खा रही है, और वह है सेहत का मोर्चा। स्वास्थ्य और न्यूट्रीशन पर बेहिसाब पैसा खर्च किये जाने के बावजूद हमारी महिलाएं भीतर से कमजोर हैं और इस कमजोरी की वजह है – एनीमिया यानी खून की कमी। 50 से ज्यादा वर्षों से एनीमिया नियंत्रण कार्यक्रम (Anemia Control Program) होने के बावजूद भारत में इस बीमारी का सबसे अधिक बोझ है और इसका सबसे ज्यादा शिकंजा महिलाओं पर है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय (Union Health Ministry) द्वारा जारी नेशनल फॅमिली हेल्थ सर्वे के पांचवें संस्करण (2019-21) की रिपोर्ट बताती है कि 15 से 49 वर्ष की महिलाओं में से 57 फीसदी को एनीमिया है। जबकि 2015 – 16 में यह 53 फीसदी था। यानी समस्या दूर होने की बजाये बढ़ती जा रही है। जब माताओं की ये स्थिति है तो बच्चों का क्या हाल होगा? रिपोर्ट बताती है कि 6 से 59 महीने की उम्र तक के 67 फीसदी बच्चे एनीमिया से पीड़ित हैं। 2015-16 में किए गए पिछले सर्वेक्षण में या संख्या 58.6 प्रतिशत थी।
ये जान लीजिये कि गर्भावस्था के दौरान एनीमिया से मृत्यु का जोखिम दोगुना हो जाता है। एनीमिक बच्चों में शारीरिक और मानसिक विकास बाधित हो जाता है। जबकि सभी वयस्कों में एनीमिया उत्पादकता कम कर सकता है। एनीमिया की व्यापकता सकल घरेलू उत्पाद के चार फीसदी तक की हानि का कारण बन सकती है। इसका मतलब 113 अरब डॉलर या 7.8 लाख करोड़ रुपये का नुकसान है, जो कि 2018-19 में स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा के लिए भारत के बजट का पांच गुना है। 2016 की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि आयरन की कमी से होने वाला एनीमिया 2015 तक भारत में विकलांगता का शीर्ष कारण था। 23 नवंबर, 2021 को जारी 2021 ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट के अनुसार भारत ने एनीमिया पर कोई प्रगति नहीं की है। इस रिपोर्ट के अनुसार भी 15-49 आयु वर्ग की आधी से अधिक भारतीय महिलाएं एनीमिक हैं।
कैसे बनेगा एनीमिया मुक्त भारत?
एनीमिया उन्मूलन (anemia alleviation) के लिए दीर्घकालिक नीतियों और कार्यक्रमों के बावजूद स्थिति में सुधार नहीं हुआ है। वास्तव में, नवीनतम राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -5 (2019-21) ने एक गंभीर वास्तविकता को सामने लाया है कि सभी वर्गों में एनीमिया कम होने के बजाय बढ़ गया है - चाहे वे शिशु, बच्चे, किशोर, महिलाएं और गर्भवती महिलाएं आदि हों।
नेशनल फैमिली हेल्थ (National Family Health) सर्वे के आंकड़े सरकार की 'एनीमिया मुक्त भारत' की रणनीति के लिए भी एक झटका हैं, जिसके तहत 2018 से 20 22 के बीच 20 से 49 आयु वर्ग के बच्चों, किशोरों और महिलाओं के बीच प्रति वर्ष एनीमिया के प्रसार में 3 प्रतिशत की कमी का लक्ष्य रखा था। एनएफएचएस-5 का डेटा बताता है कि भारत, 2022 के लिए निर्धारित लक्ष्य के करीब भी नहीं है। लक्ष्य के अनुसार सभी आयु समूहों में एनीमिया के प्रसार में कुल 18 प्रतिशत की कमी लानी थी है। लेकिन हुआ कुछ और है और एनीमिया का अप्रसार और भी बढ़ गया है। एनीमिया खासकर गर्भवती महिलाओं के लिए खराब स्थिति होती है। क्योंकि गर्भवती महिलाओं में आयरन का लेवल प्रसव के पूर्व के चरण में गिर जाता है। यह माँ और अजन्मे बच्चे दोनों के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय है, खासकर क्योंकि यह माँ से बच्चे को ट्रांस्फर हो सकता है।
डब्लूएचओ का अनुमान
डब्ल्यूएचओ (WHO) ने अनुमान लगाया है कि 2019 में दुनिया भर में एनीमिया (Anemia) का प्रसार 6 से 59 महीने के बच्चों में 39.8 फीसदी और गर्भवती महिलाओं में 36.5 फीसदी था। 2019 में प्रजनन आयु की 29.9 फीसदी महिलाएं एनीमिक थीं। डब्लूएचओ के डैशबोर्ड के अनुसार, यह देखा गया है कि 2019 में भारत में प्रजनन आयु वर्ग की महिलाओं में एनीमिया का प्रसार 53 फीसदी था, जो यमन, माली, बेनिन और नाइजीरिया के बाद वैश्विक स्तर पर पांचवां सबसे अधिक है। बच्चों (6 से 59 महीने) के मामले में, भारत में प्रसार 53.4 फीसदी था।
अपना ख्याल न रखना
एक्सपर्ट्स का कहना है कि परिवार के बाकी सदस्यों की तुलना में घरों में महिलाओं द्वारा खुद का ख्याल न रखना, आयरन युक्त खाद्य पदार्थ का सेवन न करना, अपनी सेहत की देखभाल न करना और अन्य सामाजिक मुद्दों की वजह को भी एनीमिया के फैलाव के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। एक्सपर्ट्स का ये भी कहना है कि कहा कि जलवायु परिवर्तन और इसके परिणामस्वरूप फसलों और कृषि उपज में कमी के कारण भोजन की कमी और असुरक्षा भी एनीमिया के प्रसार को गति प्रदान कर सकती है।
बच्चों की स्थिति
पिछले तीन दशकों में राष्ट्रीय पोषण निगरानी ब्यूरो (National Nutrition Monitoring Bureau) के डेटा ने लगातार दिखाया है कि 70 फीसदी से अधिक प्री-स्कूल बच्चे आयरन और फोलिक एसिड की दैनिक अनिवार्य मात्रा के 50 फीसदी से भी कम का उपभोग करते हैं। भारत में, 5 वर्ष से कम उम्र के 6000 से अधिक बच्चे प्रतिदिन असमय मरते हैं, और इनमें से आधे से अधिक मौतें सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के कारण होती हैं, जो मुख्य रूप से आयरन, फोलिक एसिड और विटामिन ए की कमी के कारण होती हैं। भारत में उत्पादकता के नुकसान के मामले में एनीमिया के कारण मृत्यु का बोझ जीडीपी का 1 फीसदी (लगभग 28 करोड़ रुपये की हानि) प्रति वर्ष है।
गंभीर ग्लोबल समस्या
सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि विश्व स्तर पर एनीमिया को एक गंभीर ग्लोबल पब्लिक हेल्थ समस्या माना जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार प्रजनन आयु (15 से 49 वर्ष) वाली महिलाओं में एनीमिया किस स्थिति में है इसकी गणना 120 ग्राम प्रति डेसीलीटर लीटर (जी/डीएल) से कम हीमोग्लोबिन के प्रतिशत के रूप में की जाती है। गैर-गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए यह मात्रा 12 ग्राम प्रति डेसीलीटर (जी/डीएल), और गर्भवती महिलाओं के लिए 110 ग्राम/ली या 11 ग्राम/डीएल से कम होता है।
इसी तरह बच्चों (6 - 59 महीने की आयु) में ये गणना हीमोग्लोबिन कंसंट्रेशन 110 ग्राम / एल या 11 ग्राम / डीएल से कम मानी जाती है। 40 फीसदी और उससे अधिक की व्यापकता को गंभीर माना जाता है।
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे
राष्ट्रीय स्तर पर हुए सर्वेक्षण के निष्कर्षों से पता चलता है कि लगभग पिछली बार 2015-16 में किए गए सर्वेक्षण की तुलना में महिलाओं और बच्चों में एनीमिया के प्रसार में वृद्धि हुई है। गर्भवती महिलाओं में एनीमिया में 1.8 प्रतिशत अंक की वृद्धि हुई है, प्रजनन आयु में सभी महिलाओं में 3.9 प्रतिशत अंक और किशोर महिलाओं में 5 प्रतिशत अंक की वृद्धि हुई है। बच्चों में ये वृद्धि 8.5 प्रतिशत अंक की उच्चतम है और अब 2005-06 के लेवल के करीब है जब प्रसार 70 फीसदी था।
- बिहार, गुजरात, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और त्रिपुरा में 60 फीसदी से अधिक गर्भवती महिलाएं एनीमिक पाईं गईं हैं। गर्भवती महिलाओं में एनीमिया का प्रसार बिहार में सबसे अधिक 63.1 फीसदी था, इसके बाद गुजरात और पश्चिम बंगाल में 62 फीसदी से अधिक था। ओडिशा और त्रिपुरा में भी 60 फीसदी से अधिक की व्यापकता दर्ज की गई। दूसरी ओर, मिजोरम (34 फीसदी), मणिपुर (32.4 फीसदी), केरल (31.4 फीसदी), अरुणाचल प्रदेश (27.9 फीसदी) और नागालैंड (22.2 फीसदी) में 40 फीसदी से कम प्रसार दर्ज किया गया।
- उत्तर प्रदेश में स्थिति बेहतर : उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, आंध्र, तमिलनाडु, तेलंगाना, दिल्ली, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड में पिछले सर्वे की तुलना में इस बार एनीमिया के प्रसार में गिरावट दर्ज की गई है, जबकि सिक्किम, ओडिशा और गुजरात ने प्रसार में 10 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज की हुई है।
- पश्चिम बंगाल और गुजरात में किशोरियों में एनीमिया का प्रसार सबसे अधिक पाया गया है। लद्दाख में 15 से 19 आयु वर्ग की लगभग 97 फीसदी किशोरियों को एनीमिक पाया गया,और पिछले सर्वे की तुलना में 81.6 फीसदी की वृद्धि हुई है। बड़े राज्यों में, पश्चिम बंगाल में 70.8 फीसदी के साथ प्रसार सबसे अधिक था, जो पिछले सर्वे के दौरान 62.2 फीसदी था, इसके बाद गुजरात में 69 फीसदी प्रसार था।
- गुजरात में 10 में से 8 बच्चे एनीमिक : 6 से 59 महीने की उम्र के बच्चों में, गुजरात में बड़े राज्यों में एनीमिया सबसे अधिक प्रचलित है, जिसमें आयु वर्ग के लगभग 80 फीसदी बच्चों में एनीमिया पाया गया है। गुजरात में एनीमिया का प्रसार पिछली बार हुए सर्वे में मिले 62.6 फीसदी की तुलना में 17.1 प्रतिशत अंक बढ़ गया है।
- मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और तेलंगाना प्रमुख बड़े राज्य हैं जहां बच्चों में 70 फीसदी से अधिक का प्रसार होता है।
- केरल एकमात्र ऐसा राज्य है जिसने 40 फीसदी (39.4 फीसदी) से कम प्रसार दर्ज किया है, हालांकि वहां भी पिछले सर्वे की तुलना में 3.7 प्रतिशत अंक की वृद्धि हुई है।
- तेलंगाना को छोड़कर चार दक्षिण भारतीय राज्यों और असम को छोड़कर 6 उत्तर-पूर्वी राज्यों में एनीमिया का प्रसार राष्ट्रीय औसत से कम है।
- के प्रसार में वृद्धि असम के लिए सबसे बड़ी है, जहां पिछले सर्वे के 35.7 फीसदी से बढ़कर एनीमिया का प्रसार अब 68.4 फीसदी हो गया है, जो 32.7 प्रतिशत की वृद्धि है।
- मिजोरम और छत्तीसगढ़ दोनों में भी 25-25 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है।
- केवल 4 राज्यों ने प्रसार में कमी दर्ज की, हालांकि ये भी मामूली कमी ही है। ये राज्य हैं - उत्तराखंड (1 प्रतिशत अंक), हरियाणा (1.3), झारखंड (2.4), और मेघालय (2.9)।
- सर्वेक्षण के आंकड़े बताते हैं कि सभी आयु समूहों में, एनीमिया में सबसे अधिक वृद्धि 6 से 59 महीने की आयु के बच्चों में हुई है। 2015 – 16 में यह 58.6 फीसदी थी जो अब 67.1 प्रतिशत हो गयी है। शहरी भारत (64.2 फीसदी) की तुलना में ग्रामीण भारत (68.3 फीसदी) में यह संख्या अधिक थी।
- 15 से 19 वर्ष की आयु की महिलाओं में 59.1 प्रतिशत में एनीमिया पाया गया है जबकि 2015 – 16 में यह 54.1 प्रतिशत था। इसमें भी, शहरी भारत (54.1 प्रतिशत) की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों (58.7 प्रतिशत) में संख्या अधिक पाई गयी।
- 15 से 49 वर्ष की आयु की गर्भवती महिलाओं में 52.2 को प्रतिशत एनीमिक पाया गया। जबकि पिछले सर्वे में ये संख्या 50.4 प्रतिशत थी। इस समूह में शहरी क्षेत्रों (45.7 प्रतिशत) और ग्रामीण भारत (54.3 प्रतिशत) के बीच काफी अंतर है।
- आंकड़ों से पता चलता है कि पुरुषों में एनीमिया का प्रसार अन्य समूहों की तुलना में काफी कम है। 15 से 49 आयु वर्ग में 25 प्रतिशत और 15 से 16 आयु वर्ग में 31.1 प्रतिशत।
महिला जागरूकता है जरूरी
- अगस्त 2018 में प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल 'बीएमजे ग्लोबल हेल्थ' में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया था कि भारत में एनीमिया के बोझ को कम करने के लिए पोषण और स्वास्थ्य उपायों के अलावा महिलाओं की शिक्षा में सुधार सबसे महत्वपूर्ण उपाय हो सकता है।
- वाशिंगटन स्थित अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (आईएफपीआरआई) और अन्य संस्थानों के गरीबी, स्वास्थ्य और पोषण विभाग के शोधकर्ताओं के अध्ययन के अनुसार, गर्भावस्था में एनीमिया को कम करने में एक महिला की शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण कारक साबित हुई है। बच्चों के मामले में, आयरन और फोलिक एसिड की गोलियों का सेवन, कृमिनाशक और पूर्ण टीकाकरण तथा विटामिन ए की खुराक जैसे उपायों ने सबसे अच्छा काम किया।
एनीमिया के लक्षण (symptoms of anemia)
- हर समय थकान महसूस करना
- पीली त्वचा
- ठंडे हाथ – पैर
- कमज़ोर महसूस करना
- चक्कर आना
- सिर दर्द
- छाती में दर्द
- बाल झड़ना
- शरीर में सहनशक्ति की कमी
- दिल की अनियमित धड़कन
- ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई होना
जो लोग एनीमिया से पीड़ित हैं उन्हें अपने आहार में आयरन से भरपूर खाद्य पदार्थों को शामिल करना चाहिए। पालक, केल, ब्रोकली, फूलगोभी, पत्ता गोभी, अंडे की जर्दी, केला, चुकंदर, शकरकंद, फलियां, अनार, अंडे की जर्दी, स्ट्रॉबेरी, सेब, प्रोटीन से भरपूर खाद्य पदार्थ आदि खाएं।
हीमोग्लोबीन और एनीमिया
पोषण विशेषज्ञों के अनुसार, एनीमिया को कई स्वास्थय जोखिमों के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। क्योंकि एनीमिया की स्थिति में शरीर में लोहे यानी आयरन का अवशोषण कम हो जाता है और इसके चलते कई अन्य समस्याएं हो जाती हैं। हीमोग्लोबिन का एक प्रमुख घटक आयरन है, और विश्व स्तर पर एनीमिया के आधे मामलों के लिए आयरन, विटामिन बी 12, विटामिन ए और फोलेट की कमी को जिम्मेदार माना जाता है। एनीमिया के अन्य कारणों में मलेरिया, टीबी, एचआईवी, अन्य संक्रामक रोग, हुकवर्म और अन्य परजीवी कीड़े, पोषक तत्वों की कमी, पुराने संक्रमण और आनुवंशिक स्थितियां शामिल हैं।
दरअसल, आयरन की कमी तब होती है जब शरीर पर्याप्त हीमोग्लोबिन का उत्पादन नहीं करता है। हीमोग्लोबीन लाल रक्त कोशिकाओं में स्थित प्रोटीन होता है जो उन्हें पूरे शरीर में ऑक्सीजन की सप्लाई करने में सक्षम बनाता है। एनीमिया की स्थिति में लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या या रक्त कोशिकाओं के भीतर हीमोग्लोबिन का लेवल सामान्य से कम हो जाता है, जिससे शरीर में ऑक्सीजन ले जाने की खून की क्षमता कम हो जाती है। नतीजतन, व्यक्ति को कमजोरी, चक्कर आना, थकान, सांस की तकलीफ आदि जैसे लक्षणों का अनुभव करता है। रक्त में हीमोग्लोबिन कितना हो ये आंकड़ा एक निश्चित नहीं होता बल्कि उम्र, लिंग, ऊंचाई, गर्भावस्था और धूम्रपान आदि लाइफ स्टाइल व्यवहार के साथ बदलता रहता है। एक्सपर्ट्स ये भी चेताते हैं कि हीमोग्लोबीन का लेवल ऊंचा रहने के बावजूद एनीमिया की स्थिति बन सकती है।
वेंटिलेटर की नौबत
लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के ब्लड बैंक के आंकड़े भी महिलाओं में खून की कमी की भयावह स्थिति को बयां करते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार हर साल करीब 21 हजार यूनिट खून सिर्फ गर्भवती महिलाओं को देना पड़ता है। कुल कलेक्शन का 30 फीसदी खून महिलाओं को देने की जरूरत पड़ जाती है। जिन्हें खून चढ़ाने की जरूरत होती है उनमें 90 फीसदी गर्भवती होती हैं।
इसी तरह लखनऊ के क्वीन मेरी अस्पताल का आंकड़ा है कि रोजाना गर्भवती महिलाओं के तीन-चार ऐसे मामले आते हैं जिनमें हीमोग्लोबीन की मात्रा मात्र 3 से 4 डीएल होती है जबकि ये 11 से 13 होना चाहिए। ऐसी स्थिति में अत्यधिक एनीमिक महिलाओं को वेंटिलेटर पर रखने की नौबत आ जाती है। लखनऊ के ही डफरिन अस्पताल के डाक्टरों का कहना है कि एक दिन में 40 एनीमिक केस तक आ जाते हैं।