अपना भारत/न्यूज़ट्रैक Exclusive : महागठबंधन की मियाद बढ़ी, नहीं घटी मुश्किलें

Update:2017-07-21 14:54 IST

शिशिर कुमार सिन्हा

पटना: राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद राजनीति के धुरंधर हैं, तो जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार भी कम नहीं। लेकिन, इस बार नीतीश कुमार बिहार में साफ-साफ कमजोर दिख रहे हैं। समर्थक और विरोधी भी नीतीश के अंदर की मजबूती को देखना चाह रहे हैं, लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है। नीतीश मंझधार में अब भी हैं।

हालात ऐसे हो गए हैं कि उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव का इस्तीफा नहीं मिलने से एक तरफ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की आन-बान-शान फंसी है तो दूसरी तरफ भाजपा खुलकर मैदान में नहीं उतर रही है, कि आइए भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के नाम पर ही हाथ मिला लें। इन स्थितियों के बावजूद एक दिन घंटेभर से भी कम की नीतीश-तेजस्वी मुलाकात के मायने निकाले गए और सरकार को शांत दिखाने की भरसक कोशिश की गई।

‘अपना भारत’ ने राजनीतिक तापमान को आंकने के लिए जदयू और राजद के अंदर चल रही उथलपुथल की पड़ताल की तो यहां दूसरी ही तैयारी नजर आई।

तैयारी - 1

राष्ट्रीय जनता दल बिहार में कांग्रेस का साथ और कुछ अन्य विधायकों को जोड़-तोड़ कर भी सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है, यह सच राजद स्वीकार कर रहा है। वह महागठबंधन सरकार को बचाने की भी भरसक कोशिश कर रहा है, लेकिन साथ ही तेजस्वी यादव के इस्तीफे पर उसका स्टैंड क्लीयर है। भ्रष्टाचार के मामले में तेजस्वी का इस्तीफा लिया गया तो आगे चलकर स्वास्थ्य मंत्री तेज प्रताप यादव पर भी ऐसा संकट आ सकता है, यह राजद अध्यक्ष भलीभांति जानते हैं क्योंकि बेनामी संपत्तियों के मामले में तेज प्रताप यादव भाजपा के टारगेट नंबर टू हैं।

यह सारा गणित लालू प्रसाद खूब समझ रहे हैं, इसलिए पूरी तैयारी 27 जुलाई की है। उस दिन पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में राजद ने रैली की घोषणा कर रखी है। जैसे ही तेजस्वी के खिलाफ आयकर के बाद सीबीआई की कार्रवाई हुई तो पहला बयान यही आया था कि केंद्र सरकार राजद की 27 जुलाई को होने वाली रैली से डर गई है। दरअसल, ‘डर’ का यह बयान केंद्र सरकार के साथ नीतीश कुमार के लिए भी इशारा था।

राजद इसी हिसाब से तैयारी भी कर रहा है। अगर नीतीश तेजस्वी का इस्तीफा मांगते हैं तो भी राजद उन्हें इस रैली में घसीटेगी और अगर बर्खास्तगी हो गई तो राजद इसी रैली में तेजस्वी को ‘भाजपा के खिलाफ लड़ाई में बलिदानी’ या नीतीश के साथ गठबंधन कायम रखने के लिए ‘राजनीतिक शहीद’ के रूप में प्रचारित करने की तैयारी में है। इस तरह का संदेश राजद नेता रैली संबंधित बैठकों में भी दे रहे हैं कि तेजस्वी यादव को हटाया जाता है तो नीतीश कुमार के खिलाफ पार्टी को किस तरह जनता के बीच उतरना है।

तैयारी- 2

राजद मुख्यालय से कुछ ही दूर जदयू मुख्यालय में उस तरह की तैयारी नहीं है, लेकिन सुगबुगाहट के साथ छटपटाहट भी है। महागठबंधन सरकार नहीं गिरे, यह लालसा तो है लेकिन इसपर कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं। जदयू के जितने नेताओं से बात कीजिए, सभी एक ही बात दुहरा रहे कि नीतीश कुमार अपनी छवि से कोई समझौता नहीं करते हैं। वह भ्रष्टाचार के खिलाफ नो टॉलरेंस की नीति पर चलते हैं और इस नीति की राह में आने वालों के प्रति कोई लगाव नहीं रखते हैं।

18 जुलाई को कैबिनेट के बाद उप मुख्यमंत्री और मुख्यमंत्री की मुलाकात पर गरम हुई चर्चा को लेकर भी अगले दिन जदयू प्रवक्ताओं ने साफ कर दिया कि यह बेहद रूटीन मामला था, कुछ सुलह-समझौता वाली बात नहीं थी। नीतीश को ठीक से समझने वाले नेताओं की मानें तो वह महागठबंधन सरकार को अंतिम समय तक बचाए रखना चाहते हैं, लेकिन इस चाहत में न तो अपनी छवि कुर्बान होने देना चाह रहे और न ही यह चाह रहे कि लालू प्रसाद इसके लिए उन्हें दोषी ठहरा सकें। कुल मिलाकर यह कि फिलहाल 27 जुलाई को होने वाली रैली नीतीश के भी ध्यान में है।

इस मंच से लालू प्रसाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को वादाखिलाफी का दोषी नहीं करार दें, इसलिए जदयू सीधे-सीधे सामने आकर अभी कुछ नहीं कर रहा है। इस जानकारी पर भरोसा करें तो एकबारगी यही बात निकल रही है कि जदयू भी राजद की रैली के निकल जाने का इंतजार कर रहा है और इस बीच इंतजार इस बात का भी है कि सीबीआई लालू प्रसाद के कुनबे पर दबिश तो नहीं बढ़ाती है।

तैयारी तो भाजपा में भी है मगर कुछ अलग

भारतीय जनता पार्टी ने ही तेजस्वी यादव को टारगेट नंबर वन बनाते हुए राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद के पूरे परिवार के बारे में आयकर-सीबीआई तक जानकारी पहुंचाई है, यह सभी जानते हैं। भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी (सुमो) के आरोपों पर पहले राजद और फिर जदयू ने कहा था कि आरोपों में दम है तो जांच एजेंसियां तथ्यों के साथ आएं, सुमो तो वैसे ही बयानबाजी कर रहे हैं।

भाजपा इसी का इंतजार कर रही थी और सुमो ने अपने आरोपों से संबंधित दस्तावेज सीबीआई, आयकर व ईडी तक पहुंचाने की बात भी कही थी। अब इस मामले में जदयू-राजद के बीच बढ़ी रार को लेकर शुरू में नीतीश की छवि की दुहाई देने वाली भाजपा बार-बार इसे महागठबंधन का अंदरूनी मामला भी कह रही और राज्य के राजनीतिक हालात को अस्थिर भी करार दे रही है।

भाजपा नेता खुलकर राजद पर हमलावर हैं तो नीतीश पर सॉफ्ट हमले भी कर रहे हैं, लेकिन साथ ही यह संकेत भी दे रहे हैं कि अगर सामने वाले को मदद की जरूरत है तो हाथ भी बढ़ाए। भाजपा नीतीश के लिए ‘संकटमोचक’ बनना चाह रही है, लेकिन वह महागठबंधन की टूट होने पर अपनी भूमिका भी नहीं दिखाना चाह रही। तेजस्वी से नीतीश की मुलाकात के बावजूद भाजपा ने यही स्टैंड रखा है कि वह मुख्यमंत्री के निर्णय का इंतजार करे।

‘‘भ्रष्टाचार को लेकर मुख्यमंत्री का स्टैंड क्लियर है और कॉन्सेप्ट भी। सीएम और डिप्टी सीएम की मुलाकात के मायने जो निकालना चाहें, लेकिन हकीकत यही है कि वह औपचारिकता थी। जदयू ही नहीं, जनता भी तेजस्वी यादव के जवाब का इंतजार कर रही है।’’

डॉ. अजय आलोक, प्रदेश प्रवक्ता, जदयू

‘‘मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री के बीच जो भी बातें हुईं, उसकी जानकारी वही दोनों दे सकते हैं। यह सरकार का बेहद अंदरूनी मामला है और दोनों ने ही इसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं की है। उस मुलाकात का कोई अर्थ निकालना उचित या अर्थसंगत नहीं।’’

नीरज कुमार, प्रदेश प्रवक्ता, जदयू

‘‘महागठबंधन मजबूत है। विरोधी दल इसे जानबूझ कर अस्थिर करने की कोशिश कर रहे हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद में किसी तरह का गतिरोध नहीं है, लेकिन मायने निकालने वाले अपने स्तर से सरकार गिराने में लगे हैं।’’

मनोज झा, प्रवक्ता, राजद

‘‘मुख्यमंत्री को यह बताना चाहिए कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ जिस जीरो टॉलरेंस की दुहाई देते हैं, वह तेजस्वी के मामले में भी कायम है या कोई समझौता हो गया है। मुख्यमंत्री को बताना चाहिए कि वह तेजस्वी को हटाने का इरादा रखते हैं या नहीं।’’

सुशील कुमार मोदी, वरिष्ठ नेता, भाजपा

राष्ट्रपति चुनाव के आसपास बिहार में महागठबंधन के दलों जदयू और राजद में आर-पार के आसार थे, लेकिन यह टल गया। बिहार की मीडिया से यह खबर जरूर निकली कि मामला शांत हो गया है, लेकिन उसी मीडिया में अगले दिन यह भी खबर चली कि कुछ शांत नहीं हुआ है। दरअसल, महागठबंधन की मुश्किलें घटी नहीं हैं बल्कि इसकी मियाद बढ़ी है। इसकी वाजिब वजहें हैं।

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