एनआरसी: 20 साल भारतीय सेना में की नौकरी, अब अपने ही देश में हो गये शरणार्थी

इस लिस्ट में कई ऐसे लोगों के भी नाम हैं जो भारतीय सेना में 20 साल से ज्यादा की सेवा दे चुके हैं और रिटायर हो कर अपना जीवन बिता रहे हैं लेकिन उन्हें इस लिस्ट में जगह नहीं मिली है।

Update:2019-08-31 18:02 IST
NRC

नई दिल्ली: असम सरकार ने राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) की फाइनल लिस्ट जारी कर दी है। इस लिस्ट में 19 लाख लोग अपनी जगह नहीं बना पाए हैं।

एनआरसी के राज्य समन्वयक प्रतीक हजारिका ने बताया कि कुल 3,11,21,004 लोग इस लिस्ट में जगह बनाने में सफल हुए हैं।

उन्होंने कहा कि एनआरसी की फाइनल लिस्ट से 19,06,657 लोग बाहर हो गए हैं। एनआरसी से बाहर से किए गए लोगों को अब तय समय सीमा के अंदर विदेशी न्यायाधिकरण के सामने अपील करनी होगी।

सुप्रीम कोर्ट ने 31 अगस्त तक एनआरसी की अंतिम सूची जारी करने की अंतिम समय सीमा तय की थी। एनआरसी लिस्ट को बनाने की प्रक्रिया 4 साल पहले शुरू हुई थी और सरकार ने तय समय के भीतर यह सूची जारी कर दी है।

20 साल भारतीय सेना में नौकरी की, एनआरसी में बाहर

हालांकि इस लिस्ट में कई ऐसे लोगों के भी नाम हैं जो भारतीय सेना में 20 साल से ज्यादा की सेवा दे चुके हैं और रिटायर हो कर अपना जीवन बिता रहे हैं लेकिन उन्हें इस लिस्ट में जगह नहीं मिली है।

इसी तरह कुछ ऐसे लोगों का नाम भी शामिल है जिनके परिवार के कुछ सदस्यों का नाम तो इस लिस्ट में है लेकिन कुछ सदस्यों का नाम इसमें नहीं है।

मां भारतीय, बेटी हुई विदेशी

एक महिला की समस्या तो यह है कि उसका नाम इस लिस्ट में शामिल है लेकिन उसकी दो बेटियों को इस लिस्ट से बाहर कर दिया गया है।

पीड़ित महिला ने रोते हुए पूछा कि बिना बच्चे के कैसे रह सकते हैं और क्या मैं भारतीय और मेरी बेटियां बांग्लादेशी होंगी।

भारतीय सेना में 20 साल की नौकरी, एनआरसी में नहीं मिली जगह

असम के करीमगंज के रहने वाले बिमल चौधरी भारतीय सेना में बतौर हवलदार 20 साल की नौकरी कर चुके हैं लेकिन उनका एनआरसी लिस्ट में नाम नहीं है।

वो 1981 से 1999 तक सेवा में रहे और सेना से रिटायर होने के बाद अभी असम पुलिस में कार्यरत हैं लेकिन अब वो एनआरसी लिस्ट के मुताबिक भारतीय नागरिक नहीं है। एनआरसी की फाइनल लिस्ट में भी अपना नाम नहीं देखकर वो बेहद सदमे में हैं।

जहां पला बढ़ा, वहीं अब शरणार्थी की तरह बिताना पड़ेगा जीवन

गांव के निवासी 55 वर्षीय साहब अली ने कहा, “मैं यहां पैदा हुआ था और यही रहा हूं। मेरे पास भारतीय नागरिकता साबित करने के लिए मेरे सभी स्कूल प्रमाण पत्र और सब कुछ है।

हालांकि, मुझे 1997 में चुनाव अधिकारियों द्वारा 'डी' मतदाता के रूप में वर्गीकृत किया गया था। मुझे पहले मामले को फॉरनर्स ट्रिब्यूनल ले जाना पड़ा और फिर यहां सत्र न्यायालय में।

2012 में, अदालत ने फैसला सुनाया कि मैं एक वास्तविक भारतीय नागरिक हूं। फिर भी मेरा नाम एनआरसी ड्राफ्ट में शामिल नहीं किया गया।”

साहब की तरह, एनआरसी ड्राफ्ट में उनकी मां का नाम भी शामिल नहीं किया गया, जबिक उनकी मां का नाम 1966 की मतदाता सूची में था।

पिता का नाम एनआरसी में शामिल, चार भाई-बहनों को नहीं मिली जगह

एनआरसी ड्राफ्ट से 26 वर्षीय अकबर हुसैन और उनके चार भाई-बहनों के नाम भी गायब थे। अकबर ने फाइनल एनआरसी सूची के पब्लिश होने से पहले कहा था, “हमारे पिता का नाम एनआरसी में था।

हमने अपने पिता से संबंधित लेगसी डॉक्युमेंट सौंपी, लेकिन एनआरसी के ड्राफ्ट में हमारे नाम शामिल नहीं हैं।”

उन्होंने बताया गया कि वैध दस्तावेज दिए, लेकिन उन्हें खारिज कर दिया गया।

हुसैन ने कहा, “हम वास्तविक भारतीय नागरिक हैं। वे हमें विदेशी कैसे बता सकते हैं? हमारे गांव में ऐसे 100 से अधिक मामले हैं। वे सभी वास्तविक भारतीय नागरिक हैं।”

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