Attack on Gangsters in Court: अदालतों में हमले, जरूरी है खास और कड़ी सुरक्षा व्यवस्था
Attack on Gangsters in Court: अदालत परिसर के अंदर लगातार हो रही हत्याओं ने अदालतों में सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर दिया है। हर वारदात के बाद अदालतों की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाए जाते हैं, कुछ इंतजाम होते हैं लेकिन घटनाएं रुकती नहीं।
Attack on Gangsters in Court: लखनऊ के कैसरबाग कोर्ट के भीतर कुख्यात गैंगस्टर संजीव महेश्वरी जीवा को वकील की ड्रेस पहन एक व्यक्ति ने गोली से उड़ा दिया। आइये जाने कोर्ट परिसर में होने वाली ऐसी कई घटनाओं के बारे में, जिससे दहल उठा था पूरा देश।
- दिल्ली के रोहिणी कोर्ट में कुख्यात गैंगस्टर जितेंद्र गोगी को वकील के भेष में आये हमलावरों ने गोलियों से भून डाला।
- बिहार के सहरसा में कोर्ट के भीतर हमलावस्रों ने एक गैंगस्टर की गोली मार कर हत्या कर दी।
- नागपुर में 2005 में भरत उर्फ अक्कू कालीचरण यादव नामक गैंगस्टर की कोर्ट में हत्या कर दी गई थी।
- 2015 में मुजफ्फरनगर में विक्की त्यागी नामक अपराधी की हत्या कोर्ट के भीतर वकील की ड्रेस पहनकर आये व्यक्ति ने कर दी थी।
- 2021 में सहारनपुर में एक वकील ने दूसरे वकील की कोर्ट में हत्या कर दी थी। मामला जमीन के विवाद का था।
अदालतों के भीतर हत्याएं। पुलिस की सुरक्षा के बीच हत्याएं। जहां सर्वाधिक सुरक्षा रहती है वहां ऐसी घटनाएं होना बेहद हैरानी और चिंता की बात है। ये घटनाएं कोई नई बात भी नहीं हैं लेकिन इनका सिलसिला इधर कुछ ज्यादा देखने में आ रहा है।
अदालत परिसर के अंदर लगातार हो रही हत्याओं ने अदालतों में सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर दिया है। हर वारदात के बाद अदालतों की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाए जाते हैं, कुछ इंतजाम होते हैं लेकिन घटनाएं रुकती नहीं।
अदालतों के भीतर हमले, हत्या के मामले कोई नई बात भी नहीं है। अस्सी के दशक में मुंबई में अदालत के भीतर हत्या का सनसनीखेज मामला हुआ था। उस कांड में मुंबई अंडरवर्ल्ड शामिल बताया गया था। तबसे लेकर आज तक तमाम राज्यों में एक जैसी वारदात हो चुकी हैं। सिर्फ अपराधियों के गिरोहों के बीच ही ऐसे कांड नहीं हुए हैं बल्कि अदालतों में आतंकी हमले भी हुए हैं।
क्या हैं वजहें
दरअसल अदालतों में बहुत भीड़भाड़ रहती है। खासकर निचली अदालतों में यही हाल सब जगह रहता है। हर तरह के लोग अदालत परिसर में दिखाई देते हैं। कोर्ट रूम के भीतर भी कोई रोकटोक नहीं होती है। अदालत परिसर, इमारतों में जाने वालों की जांच भी नहीं होती। अदालतों में आतंकी हमलों और धमकियों के बाद मेटल डिटेक्टर आदि लगाए गए थे लेकिन एक एक व्यक्ति की जांच, तलाशी जैसी व्यवस्था शायद ही कहीं पर है।
अदालतों में पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था रहती तो है लेकिन भीड़ और अनजाने वालों की संख्या की तुलना में कम ही है। ऐसे में कौन किस इरादे से आ जा रहा है यह पता करना बहुत कठिन है।
अदालतों में अंडरट्रायल बंदियों की पेशी होती रहतीं हैं। ये लोग भी पुलिस सुरक्षा में लाये जाते हैं। अपराधी और गैंगस्टर के विरोधी गैंग वाले भी मौके की तलाश में रहते हैं। अदालतों में तमाम घटनाएं गिरोहों के बीच की लड़ाई के चलते हुईं हैं। ये बात भी सही है कि अदालतों में हमलावर भी कई मारे गए हैं और पकड़े भी गए हैं।
कुछ समय पहले एक सुझाव दिया गया था कि अदालतों की सुरक्षा के लिए एक विशेष बल गठित किया जाये लेकिन अभी फिलहाल ऐसा कोई कदम नहीं उठाया गया है। लेकिन अदालतों में होती वारदातों के मद्देनजर कड़ी और फूलप्रूफ सुरक्षा व्यवस्था होना बहुत जरूरी है। क्योंकि अदालतों में आम जनता भी होती है, न्यायिक कर्मी होते हैं, वकील होते हैं, जज होते हैं। किसी भी हमले में किसी का कुछ भी हो सकता है।