पड़ोस में स्थित भू-परिवेष्ठित मित्र राष्ट्र नेपाल के पूर्व नरेश विरेंद्र बिक्रम शाहदेव व उनके परिवार के अन्य सदस्यों की मर्डर मिस्ट्री को जानने के लिए दुनिया के सुधी पाठकों और इलेक्ट्रानिक मीडिया के दर्शकों में खासी दिलचस्पी आज भी है।
नेपाल के हर खासोआम में देश के इतने बड़े सामूहिक नरसंहार के बाद काफी आक्रोश था। आज भी राजा और राजतंत्र के हिमायती लोगों की एक अच्छी संख्या नेपाल में है। किसी जमाने में राजदरबार में राजा के निजी सचिव रहे रेवती रमण खनाल नेपाल राष्ट्रीय साप्ताहिक के माध्यम से राज परिवार के साथ बीते पलों का रहस्योद्घाटन करने का प्रयास करते हैं।
खनाल ने अपने संस्मरण में लिखा है कि काठमांडू स्थित राजदरबार मार्ग के नांग्लो रेस्टोरेंट में युवराज दीपेंद्र के साथियों और उनके अंगरक्षकों के बीच मारपीट होने की खबर मिलते ही मैंने राजा विरेंद्र को बताया था कि ‘सरकार! जवानी, धन-संपत्ति के अतिरिक्त गुस्से के समय विवेक खोने से ऐसी घटनाए होती हैं। अब युवक अंगरक्षक के ऊपर परिपक्व कमांडर रखने के साथ ही युवराज का विवाह भी जल्द ही कर देना चाहिए।’ इसके जवाब में राजा विरेंद्र ने कहा कि उपयुक्त समय पर विवाह हो जाएगा। किंतु दुर्भाग्यवश राजा विरेंद्र के उपरोक्त कथन का सही समय ही नहीं आ पाया।
किसी कार्य विशेष के लिए मैं त्रिभुवन सदन में गया था, उस समय युवराज दीपेंद्र कंप्यूटर गेम खेल रहे थे। उन्होंने मेरा हालचाल पूछा, मैंने कहा कि ‘सरकार के विवाह का भोज कब खाने को मिलेगा? दरबार के कर्मचारी भी इस पर चर्चाएं करते हैं, जनता भी सरकार की शादी देखने के लिए आतुर है।’ मेरी बात सुनकर युवराज मुस्कराए और बोले, प्रतीक्षा करो एकदिन होगी ही। तुम लोगों को भोज नहीं कराएंगे तो किसे कराएंगे।’ विवाह की बातें सुनकर युवराज पुलकित और रोमांचित हो जाते थे।
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नौकरी से अवकाश प्राप्त करने के पश्चात भी सचिव रेवती रमण खनाल प्राय: दरबार के मुख्य कार्यक्रमों में आमंत्रित किये जाते थे। वाकया नेपाली विक्रम संवत 2052 का है । अधिराजकुमारी श्रुति, राजा विरेंद्र की पुत्री व युवराज दीपेंद्र की बहन, का विवाह गोरखशमशेर राणा के साथ तय होने की खुशी में राजदरबार के भोज में मैं (रेवती रमण खनाल) भी निमंत्रित था। दावत के भोजन करते समय युवराज दीपेंद्र की दृष्टि मुझ पर पड़ते ही वह सीधे मेरी तरफ आए और कहा - रेवती अब तुम मेरे विवाह का भोज नहीं ग्रहण कर पाओगे। मैंने कहा, नौकरी से सेवा निवृत्त होने के बाद भी ऐसे ही निमंत्रण प्राप्त होगा, तो मैं अवश्य आऊंगा। मेरी बातें सुनकर युवराज शांत रहे और थोड़ी देर बाद मैं भी वहां से निकल कर सीधे घर पहुंचा।
विवाह के प्रसंग पर पुलकित और रोमांचित होने वाले युवराज ने ऐसा क्यों कहा, मैं घर आकर बार-बार विचार करता रहा कि जो भी हो उन्होंने यह बात ऐसे ही नहीं कही। वास्तव में लगभग निश्चित हो चुके विवाह कार्यक्रम रद्द होने के आवेश में उनके मुख से ऐसा निकला। उस समय उनकी शादी राजा वीरेन्द्र की माता के अत्यन्त करीबी रिश्तेदार प्रदीप विक्रम शाह की पुत्री सुप्रिया के साथ होनी लगभग निश्चित हो चुकी थी। इसी कारण से सुप्रिया को विक्रम संवत 2049 यानि आज से लगभग पच्चीस वर्ष पहले दरबार के कायदे-कानून, रहन-सहन सिखाने हेतु बड़ी महारानी रत्ना के साथ ही दरबार में निवास करने का प्रबंध किया गया था। इतना ही नहीं, सुप्रिया को दरबार के अन्दर ही नौकरी प्रदान कर दी गई थी।
दरबार के ढुकुटी (आर्थिक मामलों का विभाग) विभाग द्वारा शादी के गहने बनाने का आर्डर दे दिए जाने का शोर दरबार के अन्दर था। युवराज को भी सुप्रिया बहुत पसंद थी इसीलिए वे उनके आदमकद की तस्वीर अपने शयनकक्ष में सजा कर रखी थी। लेकिन दीपेन्द्र की माता महारानी ऐश्वर्या राज लक्ष्मी अपनी सास रत्न के रिश्तेदार के वहां हो रहे इस विवाह से नाखुश थीं। अंत में यह विवाह रद्द हो गया। इससे दीपेन्द्र काफी मर्माहत हुए तथा एकांतवासी जैसा जीवन व्यतीत करने लगे। इसके उपरान्त उनका नाम पशुपति शमशेर राणा की पुत्री देवयानी के साथ जुड़ा किंतु इस नये नाम पर भी रानी ऐश्वर्या के विरोध करने के कारण दीपेन्द्र का विवाह नहीं हो सका।
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अधिक दिनों तक एकान्त में रहने व अवसाद की स्थिति में आने के कारण दीपेन्द्र की मन: स्थिति दिन ब दिन बिगडऩे लगी और शायद इसी कारण से दीपेन्द्र ने अपने एडीसी (अंगरक्षक) सुन्दर प्रताप राणा से ‘अब मेरी शादी नहीं होगी’, कह कर दुखित हो जाने का आग्रह किया।
अंतत: नेपाली संवत्सर के अनुसार वर्ष 2058 के ज्येष्ठ माह की 19 तरीख को राजदरबार हत्याकाण्ड के साथ ही युवराज दीपेन्द्र की इहलीला समाप्त हो गई और राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय फलक पर कयासबाजों के समक्ष इस मर्डर मिस्ट्री के सही तथ्यों का प्रश्न छोड़ गई जो आज भी अनुत्तरित है।
(अनुवादक स्वतंत्र पत्रकार हैं)
(संस्मरण साभार ‘नेपाल’ राष्ट्रीय साप्ताहिक )