कौन हैं रामलला विराजमान, जिन्हें मिला अयोध्या की विवादित जमीन पर मालिकाना हक
नई दिल्ली: सुप्रीमकोर्ट ने अयोध्या मामले पर अपना ऐतिहासिक फैसला सुना दिया है। यह फैसला रामलला के हक में हुआ है। फैसले में सुप्रीमकोर्ट ने कहा है कि सुन्नी वक्फ को पांच एकड़ जमीन मस्जिद बनाने के लिए दी जाएगी। वहीं दूसरी ओर शिया वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा के दावे को पूरी तरह खारिज कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों वाली संवैधानिक बेंच ने अयोध्या पर ऐतिहासिक फैसला दिया। इस बेंच में प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एस.ए. बोबडे, जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस.ए. नजीर शामिल रहे। सीनियर एडवोकेट के. पारासरन (93) सुप्रीमकोर्ट में रामलला विराजमान का पक्ष रख रहे थे।
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सुप्रीमकोर्ट के फैसले के बाद आइए हम आपको बताते हैं कि कौन हैं रामलला विजराजमान । हिन्दू मान्यता के अनुसार भगवान को वैध व्यक्ति माना गया है। जिनके अधिकार और कर्तव्य भी होते हैं। वह किसी सम्पत्ति के मालिक भी हो सकते हैं। वह किसी भी पर मुकदमा दर्ज कर सकते हैं। विवादित स्थल पर जहां रामलला की जन्मभूमि मानी जाती है, वहां रामलला एक नाबालिग रूप में थे।
इस केस में रामलला को भी नाबालिग और न्यायिक व्यक्ति मानते हुए उनकी तरफ से कोर्ट में ये मुकदमा विश्व हिंदू परिषद के सीनियर नेता त्रिलोकी नाथ पांडे ने रखा था।
23 दिसंबर 1949 में मस्जिद में मूर्तियां रखने का मुकदमा दर्ज किया गया था, जिसके आधार पर 29 दिसंबर 1949 को मस्जिद कुर्क कर उस पर ताला लगा दिया गया था।
कोर्ट ने तत्कालीन नगरपालिका अध्यक्ष प्रियदत्त राम को इमारत का रिसीवर नियुक्त किया था और उन्हें ही मूर्तियों की पूजा आदि की जिम्मेदारी दे दी थी।
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1989 में विश्व हिंदू परिषद के पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष और इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व जज देवकी नंदन अग्रवाल ने भगवान राम के सखा (मित्र) के रूप में पांचवां दावा फैजाबाद की अदालत में दायर किया।
ऐसे में रामलला और कोई नहीं, बल्कि स्वयं भगवान राम के नाबालिग स्वरूप को माना गया है। कोर्ट ने उन्हें ही विवादित जमीन का मालिक मानते हुए मालिकाना हक दिया है।
अयोध्या पर कोर्ट का फैसला आते ही सुप्रीमकोर्ट ने विवादित स्थल रामलला विराजमान को दे दिया। कोर्ट ने कहा कि मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनाई थी। हिन्दू विवादित स्थल के अंदुरूनी हिस्से को रामलला की जन्मभूमि मानते हैं। इसके साथ ही अदालत ने सरकार को मंदिर निर्माण के लिए तीन महीने के भीतर ट्रस्ट बनाने को कहा है।