नब्बे का दशक भारतीय राजनीति में परिवर्तन का समय था। 1991 में नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्रित्व काल में आर्थिक सुधारों की शुरुआत हुई, 1992 में अयोध्या में विवादित ढांचा जमींदोज किया गया, बहुजन समाज पार्टी का उद्भव हुआ और देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में गठबंधन सरकार बनी। इससे पहले 1991 में उत्तर प्रदेश में पहली बार भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी और कल्याण सिंह राम मंदिर आंदोलन के पोस्टर बॉय के रूप में उभरे और मुख्यमंत्री बने।
लोगों का मत है कि कल्याण सिंह की सरकार प्रदेश के इतिहास में सर्वश्रेष्ठ सरकारों में एक थी और हिन्दुत्व का झंडा थामने के बावजूद कल्याण सिंह की छवि कुशल और तेजतर्रार प्रशासक के रूप में स्थापित हो गयी।
अब जरा फास्ट फॉरवर्ड करते हैं और वर्ष 2017 की ओर रुख करते हैं। हिन्दुत्व के एक और प्रहरी महंत योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश की बागडोर संभालते हैं। भाजपा तृप्त थी, बहुमत था, केंद्र में नरेंद्र मोदी थे और लुभावना नारा था सबका साथ, सबका विकास जिस पर सभी विश्वास भी करने लगे थे।
19वीं शताब्दी के राजनेता तथा नीति-उपदेशक ओटो वॉन बिस्मार्क ने राजनीति को संभावनाओं की कला बताया था और योगी को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने इसे चरितार्थ भी कर दिया। अब गेंद आपके पास थी योगी जी कि आप हिन्दुत्व का परचम एक हाथ में रखें और दूसरे हाथ से विकास की इबारत लिखें अथवा दोनों हाथों से हिन्दुत्व की पताका लहराते नजर आएं। भाजपा ने तो हमें चकित किया था, लेकिन आप हमें चकित नहीं कर पा रहे हैं। आश्चर्य है कि आपके सामने दृष्टान्त भी है, लेकिन समझ में नहीं आ रहा है कि आपको हिन्दुत्व के पोस्टर बॉय की छवि से इतना मोह क्यों हो गया है? क्यों नहीं आप विकास पुरुष की छवि बनाना चाह रहे हैं? अभी तक आपकी सरकार के कोई फैसले आपकी छवि को तोड़ते नजर नहीं आ रहे हैं।
आपके पास समय की कमी नहीं है राजनीति के लिहाज से भी और निजी तौर पर भी। इतिहास पुरुष इन्ही परिस्थितियों में बनते हैं लोग। बहुत निराश हैं उत्तर प्रदेश के 21 करोड़ लोग। इन्हें राजनीति ने बहुत निराश किया है। आपसे उम्मीद कुछ ज्यादा ही है लोगों को। कारण आप जानते हैं, बस इच्छाशक्ति की जरुरत है। अपनी विचारधारा बिल्कुल न बदलें बस इसे जनकल्याण के लिए इस्तेमाल करें। समाजसेवा में अध्यात्म का पुट सबका साथ, सबका विकास में चार चांद लगा देगा, आप देखिएगा। अपनी हिन्दुत्व की छवि से आत्ममुग्ध न हों। इस छवि के दायरे में भी सामाजिक परिवर्तन, विकास और प्रगति की नयी परिभाषाएं गढ़ी जा सकती हैं। हो सकता है इतिहास आपकी प्रतीक्षा में हो, उत्तर प्रदेश की 21 करोड़ जनता की तो आंखें पथरा चुकी हैं। विश्वास कीजिये, कुछ भी किया जा सकता है। मत भूलिए राजनीति संभावनाओं की कला है।
(लेखक न्यूजट्रैक/अपना भारत के कार्यकारी संपादक हैं)