सेना में ऊंट की भर्ती: चीन का करेंगें सामना, जवानों के साथ गश्त करते आएंगे नजर

दरअसल लद्दाख का बैक्ट्रियन कैमल मुश्किल हालात में काम के लिहाज से फिट बैठता है। ये वहां के मौसम के हिसाब से पूरी तरह ढले हुए हैं।

Update:2020-09-19 10:34 IST
बैक्ट्रियन कैमल (ऊंट) बहुत जल्द पूर्वी लद्दाख में भारतीय सेना के साथ गश्त लगाते नजर आएंगे. ऐसे ऊंट को भारतीय सेना ने अपने इस्तेमाल में लेने की तैयारी लगभग पूरी कर ली है

भारतीय सेना आए दिन को खुद को मजबूत करती रहती है। आज लद्दाख और एलएसी पर चीन के साथ भारत का विवाद भी चल रहा है। ऐसे में भारतीय सेना ने पूर्वी लद्दाख में गश्त के लिए अब मनुष्यों के साथ ऊंटों को रखने की योजना बनाई है। जल्द ही बैक्ट्रियन कैमल यानी कि दो कूबड़ वाले ऊंट भारतीय सेना के साथ पूर्वी लद्दाख में गश्त करेंगे। ऐसे ऊंटों को भारतीय सेना ने अपने इस्तेमाल में लेने की तैयारी लगभग पूरी कर ली है। हालांकि यह योजना तीन साल पुरानी है। लेकिन इसे अब अमली जामा पहनाया जा रहा है।

काफी महत्वपूर्ण हैं ये ऊंट

गौरतलब है कि इस समय पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच तनाव का माहोल है। दोनों ही देशों की सेनाएं एक-दूसरे के आमने-सामने खड़ी हैं। कभी भी कुछ भी हो सकने वाले हालात हैं। इस बीच भारतीय सेना में अब ये ऊंट उस इलाके में गश्त करते नजर आएंगे। एक रिपोर्ट के मुताबिक इन बैक्ट्रियन कैमल को दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) और देप्सांग में तैनात किया जाएगा। जहां तकरीबन 17 हजार फीट की ऊंचाई पर सेना के लिए पैट्रोलिंग का काम काफी दु्ष्कर माना जाता है। आपको बता दें कि यह वही इलाका है जहां पिछले 4 महीने से भारत और चीन के बीच तनाव बना हुआ है।

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भारतीय सेना के साथ गश्त लगाएंगे बैक्ट्रियन कैमल (फाइल फोटो)

दरअसल लद्दाख का बैक्ट्रियन कैमल मुश्किल हालात में काम के लिहाज से फिट बैठता है। ये वहां के मौसम के हिसाब से पूरी तरह ढले हुए हैं। और इन्हें वहां के चप्पे-चप्पे की पूरी खबर है। बैक्ट्रियन कैमल एक तरह से कहें तो नुब्रा घाटी और लद्दाख के चप्पे-चप्पे से वाकिफ हैं। ये ऊंट सेना के लिए ऐसी जगहों पर भी अच्छे ट्रांसपोर्टर के तौर पर काम आ सकते हैं, जहां वाहनों की आवाजाही संभव नहीं है। इसे अपने बेड़े में शामिल करने पर सेना पहले ही विचार कर चुकी है। अब इसे मूर्त रूप देने की पूरी तैयारी है। इन ऊंटों के बारे में लेह स्थित डिफेंस इंस्टीट्यूट ने पूरा अध्ययन किया है।

डिफेंस इंस्टीट्यूट में दी रही ऊंटों को ट्रेनिंग

भारतीय सेना के साथ गश्त लगाएंगे बैक्ट्रियन कैमल (फाइल फोटो)

इन ऊंटों को अब जब सेना की तरफ से गश्त करना है तो इनकी ट्रेनिंग भी सेना के जवानों के जैसी ही होगी। ऐसे में इन ऊंटों को डिफेंस इंस्टीट्यूट में ट्रेनिंग दी जा रही है। लेह के डिफेंस इंस्टीट्यूट ने रंगोली नाम की एक ऊंटनी को ट्रेंड किया। ऊंटनी रंगोली से चिंकू और टिंकू नाम के दो बच्चे पैदा हुए। डिफेंस इंस्टीट्यूट के ब्रीडिंग प्रोग्राम के तहत इनका पालन-पोषण किया गया। इस इंस्टीट्यूट ने राजस्थान से लाए गए एक कुबड़ वाले ऊंट पर भी अध्ययन किया था। लेकिन बाद में यह जानकारी सामने आई कि सेना के काम के लिए दो कुबड़ वाले बैक्ट्रियन ऊंट ज्यादा कारगर हैं।

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लेह में इनकी ब्रीडिंग चल रही है ताकि सेना को जरूरत के हिसाब से ऐसे ऊंटों की सप्लाई की जा सके। सूत्रों के मुताबिक, फिलहाल सेना के 50 बैक्ट्रियन कैमल की जरूरत है। सेना के वेटनरी ऑफिसर कर्नल मनोज बात्रा ने इस बारे में कहा, ऐसी परिस्थिति (लेह-लद्दाख में मौसम के लिहाज से) के लिए बैक्ट्रियन कैमल ज्यादा कारगर हैं। ये ऊंट 170 किलो तक वजन लेकर 17 हजार फीट की ऊंचाई तक चढ़ सकते हैं। ये ऊंट बिना पानी के भी 72 घंटे तक जीवित रह सकते हैं। कर्नल मनोज बात्रा ने कहा कि अगले 5-6 महीने में ये ऊंट सेना को सौंप दिए जाएंगे। सेना इनका इस्तेमाल माल ढुलाई और पैट्रोलिंग में करेगी। अधिकारियों ने बताया कि बैक्ट्रियन कैमल का ट्रायल दौलत बेग ओल्डी में पहले ही किया जा चुका है।

सेना ऊंटों की संख्या बढ़ाने पर दे रही ध्यान

भारतीय सेना के साथ गश्त लगाएंगे बैक्ट्रियन कैमल (फाइल फोटो)

आमतौर पर बैक्ट्रियन कैमल का इस्तेमाल सिल्क रूट पर तिब्बत और लद्दाख के बीच सामान ढोने के लिए किया जाता था। अब तक इनके एक ब्रीड जंसकर का इस्तेमाल होता था लेकिन ऐसे ऊंटों के पैरों की बनावट ऐसी है कि वे रेगिस्तानी इलाकों के लिए ज्यादा अनुकूल हैं। हालांकि जंसकर पहाड़ी पर आसानी से चढ़ सकते हैं लेकिन माल ढोने की इनकी क्षमता केवल 40-50 किलो की है।ॉ

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जबकि बैक्ट्रियन कैमल 170 किलो तक सामान ढो सकते हैं। दिक्कत यह है कि लद्दाख में बैक्ट्रियन कैमल की संख्या काफी कम है. इनकी पूरी आबादी 350-400 तक है। इसे देखते हुए सेना इनकी ब्रीडिंग पर खास ध्यान रख रही है, ताकि जरूरत के हिसाब से इनकी तादाद बढ़ाई जा सके। उम्रदराज ऊंटों को सेना के काम से बाहर किया जा सके और उनकी जगह पर नए ऊंटों की भर्ती हो सके, इसके लिए भी ब्रीडिंग पर जोर है।

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