बापू से पहले सतगुरु ने खादी को बनाया हथियार, लड़ी जंग-ए-आजादी
पंजाब सरकार में शिक्षा मंत्री रहे और डीएवी कॉलेज अमृतसर में इतिहास के पूर्व प्रो. दरबारी लाल शर्मा कहते हैं नामधारी सिखों का आंदोलन इतना सशक्त था ब्रिटिश हुक्मरान डर गए थे।
दुर्गेश मिश्र
अमृतसर: गुलामी की बेडि़यों से देश को आजाद कराने के लिए संत से सिपाही तक अंग्रेजों के खिलाफ जंग लड़ी थी। चाहे वह संतों का आंदोलन हो या आदिवासियों का। या फिर गांधी-नेहरू और सिमांत गांधी का।
या फिर आजाद, भगत, विस्मिल, असफाक या ऊधम सिंह का। बेशक इन सभी क्रांतिकारियों का जंग-ए-आजादी का तरीका एक दूसरे जुदा पर सबका मकसद एक था। वह था अंग्रेजों की पराधीनता से भारत को स्वाधीन करने का।
अंग्रेजों के खिलाफ महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन के तहत 7 अगस्त 1905 को जिस खादी को आजादी हथियार बना विदेशी वस्तुओं के वहिष्कार का नारा दिया था, उसी खादी को बापू के आह्वान से करीब 50 वर्ष पहले नामधारी सिखों के गुरु सतगुरु राम सिंह ने हथियार बना गोरी हूकुमत पर प्रहार किया था। कूका आंदोलन का जनक भी माना जाता है।
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जब ब्रिटिश हुक्मरान डर गए थे
पंजाब सरकार में शिक्षा मंत्री रहे और डीएवी कॉलेज अमृतसर में इतिहास के पूर्व प्रो. दरबारी लाल शर्मा कहते हैं नामधारी सिखों का आंदोलन इतना सशक्त था ब्रिटिश हुक्मरान डर गए थे।
शायद यह नामधारी सिखों का खौफ ही था कि अंग्रेज अधिकारी अपने दस्तावेजों में वर्तानवी हुकूमत के लिए धातक मानते हुए 'क्रूक' शब्द का इस्तेमाल किया। और यही नाम नामधारियों के साथ जुड़ गया जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में कूका आंदोलन के नाम से मसहूर हुआ।
खालसा कॉलेज के प्रोफेसर और इतिहास विभाग के हेड ऑफ डिपार्टमेंट रहे डॉ: इंद्रजीत सिंह गोगोवानी कहते हैं पंजाब अंग्रेजों के कब्जे में सबसे बाद में आया। लेकिन नामधारी मूमेंट इतना सशक्त था कि इसी पंजाब में अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें हिलने लगी थीं।
एक अन्य इतिहासकार गुरबचन सिंह नामधारी स्वदेशी लहर (असहयोग आंदोलन) के संबंध में लिखते हैं कि बापू (महात्मा गांधी) से पहले गुरु (सतगुरु राम सिंह) ने करीब चालीस-पैंतालिस साल पहले सन 1865 में ही ना मिलवर्तन लहर छेड़ दिया था। या दूसरे शब्दों में कहें तो यह एक तरह से महात्मा गांधी के असहयोग आन्दोलन की तरह ही था।
इसके तरहत लोगों रेल, डाक, अस्पताल और स्कूल जो अंग्रेजों द्वारा संचालित या निर्मित की जाती थीं। यहां तक की नामधारियों में मिलियन कपड़ों का वहिष्कार करते हुए खुद कपड़े तैयार कर पहनने लगे थे। गुरबचन सिंह लिखते हैं कि सतगुरु की डाक व्यवस्था इतनी उम्दा थी कि अंग्रेजों की डाक से पहले उनके खत लोगों तक पहुंचने लगे थे।
खादी के सूत्राधार थे राम सिंह
नामधारी संप्रदाय के सूबा अमरीक सिंह नामधारी कहते हैं कि सतगुरु राम सिंह जी ने न केवल अंग्रेजों के खिलाफ न केवल आवाज उठाई बल्कि, वह स्वदेशी वस्त्रों खादी के सूत्राधार भी थे।
वे कहते हैं कि असहयोग आंदोलन के तहत विदेशी वस्तुओं का उन्होंने वहिष्कार किया। लोगों ने घर-घर सूत कातना और कपड़े बूनना शुरू कर दिया था। आगे चल कर महात्मा गांधी ने भी इसी खादी को अंग्रेजों के खिलाफ सशक्त हथियार बनाया।
खुशवंत सिंह की पुस्तक में मिलता है जिक्र
केंद्रीय यूनिवसिटी बठिंडा से सेवानिवृत्त इतिहास विभाग के प्रमुख डॉ: सुभाष परिहार कहते हैं कि खादी वस्त्रों और स्वदेशी की अलख सतगुरु राम सिंह ने ही जगाई थी।
लेकिन यह कहना गलत होगा कि गांधी की खादी राम सिंह जी से प्रेरित थी। डॉ: पहरिहार कहते हैं कि वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और प्रसिद्ध वकील स्व: खुशवंत सिंह की पुस्तक 'ए हिस्ट्री ऑफ द सिख्स' में उन्होंने असहयोग आंदोलन का जिक्र किया है।
गांधी से पहले ही सतगुरु ने रख दी थी स्वदेशी की नींव
प्रो: सुरजीत सिंह जोबन अपनी पुस्तक ' युग नायक सतगुरु राम सिंह जी' में लिखते हैं कि 1920 में महात्मा गांधी ने जिस असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव रखा था उसका आगाज तो 57 साल पहले ही सतगुरु राम सिंह जी ने कर दिया था। इसका असर यह हुआ कि पंजाब में अंग्रेजों का कारोबार डगमगाने लगा था।
सतगुरु ने लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अपने उपयोग की चीजें खुद बनाने के लिए प्रेरित किया। इससे लोगों का आत्मविश्वास बढ़ा, रोजगार के अवसर बढ़े। यहां तक कि उन्होंने अंग्रेजी स्कूलों की बजाय बच्चों को स्थानीय स्कूलों में पढ़ाने के लिए प्रेरित किया।
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आज भी खादी पहनते हैं सतगुरु के अनुयायी
केंद्रीय यूनिवर्सिटी बठिंडा में स्थापित सतगुरु राम सिंह चेयर के अध्यक्ष डॉ: कुलदीप सिंह कहते हैं कि इसमें कोई दो राय नहीं कि खादी के सूत्राधार राम सिंह जी हैं।
इन्होंने पहली बार खादी और स्वदेशी वस्तुओं को अंग्रेजों के खिलाफ हथियार बना कर इस्तेमाल किया था। लेकिन, इसी खादी को करीब 57 साल बाद बंगभंग के विरोध में शुरू हुए असहयोग आंदोलन में महात्मा गांधी खादी को अंग्रेजों के लिखाफ हथियार।
यह दोनों ही आंदोलन सफल रहे। गांधी ने खादी को चरखे से जोड़ा और एक सिंबल दिया। दूसरे शब्दों में कहें तो चरखे से खादी को पहचाना जाने लगा।
डॉ: कुलदीप सिंह कहते हैं - आज भी देश-विदेश में बसे असंख्य नामधारी सिख खादी के कपड़े ही पहनते हैं। वे कहते हैं कि सतगुरु का स्वदेशी आंदोलन ही था कि अंबाला के तत्कालीन कमिश्नर ने सतगुरु राम सिंह को ब्रिटिश सरकार के लिए खतरा बताते हुए इन्हें निर्वासित करने का सुझाव दिया था।