Famous Dalit Neta: मंगूराम दलित नेता और समाज सुधारक, जिन्होंने बनाया आदिलवासी समाज
Bharat Ka Famous Dalit Neta: मंगूराम एक प्रसिद्ध समाज सुधारक और राजनीतिक नेता थे। उनकी जीवनी को विस्तार से समझना उनके योगदान और संघर्ष को बेहतर समझने में मदद करता है।;
Dalit Neta Mangu Ram Birth Anniversary: मंगूराम जी एक प्रसिद्ध समाज सुधारक और राजनीतिक नेता थे, जिन्होंने भारत में दलितों और वंचित समुदायों के उत्थान के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। उनके कार्य और विचार आज भी सामाजिक न्याय और समानता की दिशा में प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं। उनकी जीवनी को विस्तार से समझना उनके योगदान और संघर्ष को बेहतर समझने में मदद करता है।
मंगूराम मुगोवालिया (Mangu Ram Mugowalia) का जन्म 14 जनवरी 1886 को पंजाब के होशियारपुर जिले के मगोवाल गांव में हुआ था। वे चमार समुदाय से थे, जिसे तत्कालीन भारतीय समाज में निम्न जाति के रूप में वर्गीकृत किया गया था। उस समय, भारतीय समाज जातिगत भेदभाव और अस्पृश्यता जैसी समस्याओं से ग्रस्त था।
मंगूराम का बचपन कठिनाइयों में बीता। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी। जातिगत भेदभाव ने उनकी शिक्षा और सामाजिक स्थिति को प्रभावित किया। हालांकि, उनके पिता ने उनकी शिक्षा को प्राथमिकता दी। उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित किया। लेकिन बचपन में ही मंगूराम ने अन्याय और भेदभाव के खिलाफ खड़े होने का संकल्प लिया।
उनके पिता ने पारंपरिक चमड़े का काम छोड़कर चमड़े के व्यापार में कदम रखा। व्यापार में अंग्रेजी का दबदबा होने के कारण हरमन सिंह को अंग्रेजी जानने वाले लोगों की मदद लेनी पड़ती थी। इसी कारण उन्होंने मांगू राम को छह वर्ष की उम्र में स्कूल भेजा, ताकि वे व्यापार में मदद कर सकें।
शिक्षा और आरंभिक करियर (Mangu Ram Education And Career)
मंगूराम ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मगोवाल गांव में ही प्राप्त की। उन्हें पढ़ाई में गहरी रुचि थी। लेकिन उस समय की सामाजिक व्यवस्था के कारण उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ा। बाद में, उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए प्रयास किया और यह समझा कि शिक्षा ही वह माध्यम है, जिसके जरिए दलित समाज को जागरूक और सशक्त बनाया जा सकता है।
युवावस्था में, मंगूराम (Mangu Ram) काम की तलाश में विदेश चले गए। वे अमेरिका गए, जहां उन्होंने गदर पार्टी से जुड़कर स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। 1915 में, प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, ग़दर पार्टी ने ब्रिटिश भारतीय सेना में विद्रोह के लिए हथियारों का जखीरा भारत भेजने की योजना बनाई। मांगू राम को इस मिशन के लिए चुना गया। हालांकि, इस यात्रा के दौरान जापान में उन्हें अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया। लेकिन जर्मन जासूसों की मदद से वे कैद से फरार हो गए।
समाज सुधार के लिए आंदोलन
भारत लौटने के बाद मंगूराम ने देखा कि दलित समाज शिक्षा, रोजगार और सम्मान की दृष्टि से बहुत पीछे है। उन्होंने दलितों के उत्थान के लिए काम करने का फैसला किया। 1926 में उन्होंने आदिलवासी समाज नामक संगठन की स्थापना की। इस संगठन का उद्देश्य दलितों में आत्मसम्मान, शिक्षा और सामाजिक जागरूकता को बढ़ावा देना था।
आदिधर्म आंदोलन-
1930 के दशक में मंगूराम ने आदिधर्म आंदोलन की शुरुआत की। यह आंदोलन दलितों को उनकी अस्मिता और गौरव का अहसास कराने के लिए था। उन्होंने यह प्रचार किया कि दलित भारत के मूल निवासी हैं।उनकी पहचान भारतीय समाज में महत्वपूर्ण है। मंगूराम का आदिधर्म आंदोलन पंजाब में बहुत प्रभावशाली रहा। इसने दलित समाज को संगठित और सशक्त किया। 11-12 जून, 1926 को, उनके नेतृत्व में अद धर्म मंडल की स्थापना हुई। उन्हें इसका अध्यक्ष चुना गया। अद धर्म आंदोलन का उद्देश्य दलितों को उनकी अस्मिता और अधिकारों के प्रति जागरूक करना था। 1931 की जनगणना में लगभग 5 लाख लोगों ने स्वयं को अद धर्म का अनुयायी घोषित किया।
शिक्षा का प्रचार प्रसार-
मंगूराम ने शिक्षा को समाज सुधार का प्रमुख माध्यम माना। उन्होंने कई स्कूलों और शिक्षा केंद्रों की स्थापना की। उनका मानना था कि अगर दलित समाज शिक्षित होगा, तो वह अपने अधिकारों के लिए जागरूक होगा और समाज में समानता के लिए संघर्ष कर सकेगा।
राजनीतिक जीवन-
मंगूराम ने राजनीति को समाज सुधार का एक महत्वपूर्ण मंच माना। उन्होंने 1937 में पंजाब विधानसभा के चुनाव में हिस्सा लिया और अपनी पहचान एक सशक्त नेता के रूप में बनाई। वे दलितों के अधिकारों के लिए आवाज उठाने वाले पहले नेताओं में से एक थे।भगत सिंह ने 1928 में एक लेख लिखा, ‘अछूत समस्या’, जिसमें उन्होंने जाति प्रथा की कड़ी आलोचना की। इस लेख में भगत सिंह ने अद धर्म मंडल के प्रयासों की सराहना की।
संविधान निर्माण और मंगूराम-
जब भारत स्वतंत्र हुआ और संविधान निर्माण की प्रक्रिया शुरू हुई, तो मंगूराम ने इस बात पर जोर दिया कि संविधान में दलितों के अधिकारों की रक्षा के लिए विशेष प्रावधान होने चाहिए। उनका विचार था कि कानूनी ढांचे के माध्यम से ही जातिगत भेदभाव को खत्म किया जा सकता है।मंगूराम पंजाब विधानसभा के सदस्य चुने गए। वे दलित अधिकारों के लिए लगातार सक्रिय रहे। 1970 के दशक में उन्होंने अद धर्म आंदोलन को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया, जो बाद में रविदासी समुदाय में विलय हो गया।
विचारधारा और योगदान-
मंगूराम ने जीवन भर जातिगत भेदभाव और सामाजिक अन्याय के खिलाफ संघर्ष किया। उन्होंने अपने विचारों और सिद्धांतों पर जोर दिया कि दलित समाज को अपने इतिहास और संस्कृति पर गर्व करना चाहिए। शिक्षा ही वह माध्यम है, जिससे समाज में बदलाव लाया जा सकता है। समाज में जातिगत दीवारों को तोड़कर समानता स्थापित करना चाहिए।मंगूराम ने अपने विचारों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए लेखन और प्रचार का सहारा लिया। उन्होंने कई पुस्तिकाएं और पत्रिकाएं प्रकाशित कीं, जिनके माध्यम से उन्होंने समाज सुधार के संदेश को फैलाया।
निधन (Mangu Ram Ka Nidhan)
मंगूराम का निधन 22 अप्रैल, 1980 को हुआ। अपने जीवनकाल में उन्होंने समाज सुधार और दलित उत्थान के लिए जो कार्य किए, उनकी गूंज आज भी सुनाई देती है। उनकी विरासत उन लाखों लोगों के जीवन में दिखती है, जो आज उनके प्रयासों की वजह से शिक्षा और अधिकारों की ओर अग्रसर हैं। उनके आदर्श और संघर्ष हमें यह सिखाते हैं कि सामाजिक परिवर्तन के लिए साहस, प्रतिबद्धता और शिक्षा की आवश्यकता होती है।
मंगूराम जी का जीवन संघर्ष, प्रेरणा और सफलता का प्रतीक है। उन्होंने यह दिखाया कि अगर एक व्यक्ति अपने समाज की भलाई के लिए ईमानदारी से काम करे, तो वह बड़े बदलाव ला सकता है। उनकी जीवनी न केवल दलित समाज बल्कि हर भारतीय के लिए प्रेरणा स्रोत है। उनके विचार और आदर्श आने वाली पीढ़ियों को समानता और न्याय की दिशा में काम करने की प्रेरणा देते रहेंगे।