उत्तराखंड में बड़ा घोटाला, कई विभागों में बिना पद, काम कर वेतन ले रहे ये लोग
जिला देहरादून में इनकी संख्या है 100 से अधिक है। इसके अलावा अन्य सभी जिलों में भी कर रहे हैं फर्जी तरीके से नौकरी की सुविधा जारी है। और कार्मिक विभाग का जवाब इसमें उत्तर प्रदेश को भी लपेट रहा है।
इस बात का खुलासा समाजसेवी विकेश सिंह नेगी ने देहरादून में एक प्रेसवार्ता में किया है। उत्तराखंड में उर्दू अनुवादकों के बिना पद के फर्जी तरीके से नौकरी करने को लेकर नेगी ने नैनीताल हाईकोर्ट में क्यू वांरटो रिट दायर की हुई है।
ये उठा रहे है आवाज
इतने बड़े घोटाले का पर्दा उठाने वाले विकेश सिंह नेगी मुख्यमंत्री दरबार से लेकर नैनीताल हाईकोर्ट तक भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने में लगे हुए हैं।
विकेश सिंह नेगी बताते हैं कि आरटीआई के माध्यम से उन्हें ज्ञात हुआ कि आबकारी ही नहीं उत्तराखंड के कई विभागों में उर्दू अनुवादक सालों से बिना पद के फर्जी तरीके से नौकरी कर रहे हैं। उन्होंने पुलिस मुख्यालय, एसएसपी आफिस, जिलाधिकारी कार्यालय, सहित कई विभागों से सूचना के अधिकार में जानकारी मांगी कि आपके यहां कितने उर्दू अनुवादों के पद हैं और इन पदों पर नियुक्ति के लिए कब शासनादेश एवं गजट नोटिफिकेशन जारी हुआ। सूचना के अधिकार के तहत जब विभागों से सूचना आनी शुरू हुई तो उसमें कई चौंकाने वाले खुलासे हुए।
देहरादून एसएसपी आफिस का जवाब
बात करें देहरादून एसएसपी आफिस की तो एसएसपी आफिस ने सूचना के अधिकार के तहत बताया कि उनके यहां उर्दू अनुवादकों के लगभग 10 पद हैं। जो कि विगत 28 फरवरी 1996 को स्वतः ही समाप्त हो गये थे।
सवाल यह उठता है कि अगर यह पद 1996 में स्वतः ही समाप्त हो गये थे तो इन पदों पर आजतक कर्मचारी किस आधार पर काम कर रहे हैं और उन्हें किस आधार पर वेतन दिया जा रहा है। यह पूरा प्रकरण एक बड़े भ्रष्टाचार की तरफ इशारा कर रहा है।
उत्तराखंड पुलिस मुख्यालय का जवाब
उत्तराखंड पुलिस मुख्यालय में भी उर्दू अनुवादकों के पद पर कर्मचारी कार्यरत हैं। सूचना के अधिकार के तहत जवाब में इनका कहना है कि पद 28 फरवरी 1996 को स्वतः ही समाप्त हो गये थे। हमने इन्हें शासनादेश संख्या 80सीएम/47-का-94-15-10-94 दिनांक 20 अगस्त 1994 और जीओ संख्या 80सीएम/47-का-94-15-10-94 दिनांक 03/02/1995 के आधार पर उर्दू अनुवादकों के पद पर नियुक्ति दी थी। जिसमें साफ तौर पर लिखा गया है कि यह पद 28/2/1996 को स्वतः ही समाप्त हो जायेंगे।
विकेश का सवाल है कि अगर ऐसा है तो इन पदों को आजतक समाप्त क्यों नहीं किया गया। बड़ा सवाल यह है कि जब इन पदों का गजट नोटिफिकेशन हुआ ही नहीं था। फिर किस आधार पर इन पदों पर कर्मचारी आज तक काम कर रहे हैं और किस आधार पर आज तक उन्हें प्रमोशन दिया गया है।
जिलाधिकारी कार्यालय का जवाब
जिला अधिकारी कार्यालय से भी यही जवाब आया कि उर्दू अनुवादकों के पद 28 फरवरी 1996 को स्वतः ही समाप्त हो गये थे। इन पदों का कभी भी गजट नोटिफिकेशन सरकार द्वारा आजतक नहीं किया गया।
आबकारी महकमें का भी यही हाल
विकेश सिंह नेगी द्वारा आबकारी विभाग में तैनात इंस्पेक्टर शुजआत हुसैन की नौकरी को चुनौती मामले में सरकार की तरफ से नैनीताल हाईकोर्ट में जवाब दाखिल कर दिया गया है। सरकार ने खुद हाईकोर्ट में इस बात को स्वीकार कर लिया है कि देहरादून में तैनात इंस्पेक्टर शुजआत हुसैन कानूनन नौकरी में हैं ही नहीं। इसके बावजूद हुसैन को सेवा में अभी तक कैसे रखा है, इसका जवाब सरकार के पास नहीं है। उनके साथ ही उधमसिंह नगर में तैनात इंस्पेक्टर राबिया का मामला भी शुजआत की तरह का ही है।
कार्मिक एवं सतर्कता अनुभाग-2 का जवाब
कार्मिक एवं सतर्कता अनुभाग ने सूचना के अधिकार के तहत उर्दू अनुवादकों को लेकर मांगी गई जानकारी के तहत जवाब दिया कि कार्यालय में इसको लेकर कोई रिकार्ड धारित नहीं है। जवाब में कहा गया कि आप उक्त सूचना उत्तर प्रदेश राज्य से प्राप्त करने का कष्ट करें।
उत्तराखंड और बुंदेलखंड में थे ही नहीं उर्दू अनुवादकों के पद
इस मामले में समाजसेवी विकेश सिंह नेगी का कहना है कि उर्दू अनुवादकों के पद आबकारी विभाग के लिए बुंदेलखंड और उत्तराखंड में नहीं थे।
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विकेश कहते है किं उत्तर प्रदेश में सन 1995 से ही इस फर्जीबाड़े की शुरूआत हुई। विकेश के मुताबिक यूपी की मुलायम सरकार ने उर्दू अनुवादक और कनिष्ठ लिपिक पद पर सिर्फ भरण पोषण के लिए रखा था। उस समय भी इन दोनों के नियुक्ति पत्रों में साफ लिखा था कि यह नियुक्ति सिर्फ 28 फरवरी 1996 को स्वतः ही समाप्त हो जायेगी। फिर कैसे आज तक इन पदों पर कर्मचारी सरकारी सेवाओं का लाभ ले रहे हैं। आखिर कौन है वह जिसकी मिलीभगत से सरकार को करोड़ों रूपये का चूना हर माह लग रहा है।
मुख्यमंत्री की ईमानदार छवि को धूमिल कर रहे हैं कुछ अफसर
हाईकोर्ट में पूरे मामले की लड़ाई लड़ रहे विकेश सिंह नेगी कहते हैं कि इस पूरे मामले में कुछ लोग मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की ईमानदार छवि को धूमिल करने में लगे हुए हैं। यही नहीं मिलीभगत कर मुख्यमंत्री के जीरो टालरेंस को भी चुनौती दे रहे हैं।
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विकेश कहते हैं कि कहीं ऐसा तो नहीं कुछ नौकरशाह ईमानदार मुख्यमंत्री को गुमराह कर रहे हों। अब देखना होगा इन मामलों पर सरकार कब तक वाजिब कार्रवाई कर जीरो टालरेंस का संदेश देती है।
रिकवरी के साथ हो संपत्ति की जांच
विकेश कहते हैं कि मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत को सभी विभागों में जांच करानी चाहिए। क्योंकि इन नियुक्तियों का गजट नोटिफिकेशन हुआ ही नहीं था। यह इलाहाबाद हाईकोर्ट में उत्तर प्रदेश सरकार ने 1995 में कहा था। अगर ऐसा है तो फर्जी नौकरी कर सरकार को जो अब तक आर्थिक नुकसान पहुंचाया गया है, उसकी रिकवरी के साथ ही इनकी संपत्ति की भी जांच होनी चाहिए।