Bofors Scam: 38 साल बाद फिर बोतल से निकला बोफोर्स घोटाले का जिन्न, भारत सरकार ने अमेरिका से मांगी अहम जानकारी
Bofors Scam: मोदी सरकार की ओर से उठाए गए इस कदम से साफ हो गया है कि राजीव गांधी की सरकार के समय इस घोटाले की जांच को एक बार फिर खोलने की कवायद तेज हो गई है।;
Bofors Scam Case (PHOTO: Social Media )
Bofors Scam: देश में हुए बहुचर्चित बोफोर्स घोटाले का जिन्न 38 साल बाद एक बार फिर बोतल से बाहर निकलता दिख रहा है। भारत सरकार की ओर से अमेरिका को एक अनुरोध पत्र भेजा गया है जिसमें 64 करोड़ रुपए के इस घोटाले के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मांगी गई है। मोदी सरकार की ओर से उठाए गए इस कदम से साफ हो गया है कि राजीव गांधी की सरकार के समय इस घोटाले की जांच को एक बार फिर खोलने की कवायद तेज हो गई है।
1987 में यह घोटाला सामने आया था जिसमें तत्कालीन राजीव गांधी की सरकार की खासी फजीहत हुई थी। पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने यह मामला उठाकर कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी थीं। इस घोटाले के सामने आने के बाद 1989 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस को बड़ा झटका लगा था और पार्टी के हाथ से सत्ता छिन गई थी।
अमेरिकी न्याय विभाग को भेजा अनुरोध पत्र
बोफोर्स घोटाले के संबंध में भारत सरकार की ओर से अमेरिका को एक न्यायिक अनुरोध पत्र भेजा गया है। इस पत्र में भारत की एक अदालत के आदेश का हवाला देते हुए स्वीडन से 155 मिमी फील्ड आर्टिलरी गन की खरीद से संबंधित पूरी जानकारी मांगी गई है। एक अंग्रेजी अखबार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक सीबीआई ने कुछ दिनों पहले एक स्पेशल कोर्ट की ओर से जारी अनुरोध पत्र अमेरिकी न्याय विभाग को भेजा था।
इस पत्र में एजेंसी ने इस संबंध में जानकारी देने का अनुरोध किया है। पत्र में स्वीडिश हथियार निर्माता एबी बोफोर्स द्वारा भारत से 400 हॉवित्जर का ऑर्डर हासिल करने के लिए कथित तौर पर दी गई रिश्वत के संबंध में यूएस-आधारित निजी जासूसी फर्म फेयरफैक्स के प्रमुख माइकल हर्शमैन के पास मौजूद मामले का विवरण देने का अनुरोध किया गया है। सरकार के इस कदम को राजीव गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार के समय हुए इस घोटाले की जांच को फिर से शुरू करने के संकेत के रूप में देखा जा रहा है।
हर्शमैन की सहमति के बाद मांगी जानकारी
दरअसल फेयरफैक्स के प्रमुख माइकल हर्शमैन ने 2017 में दावा किया था कि जब उन्होंने स्विस बैंक खाते मॉन्ट ब्लांक का पता लगाया तो तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी काफी गुस्से में थे। इसी खाते में बोफोर्स सौदे की रिश्वत की रकम कथित तौर पर जाम की गई थी। हर्शमैन का यह भी कहना था कि उस समय की सरकार ने उसकी जांच को पूरी तरह नाकाम कर दिया था।
सीबीआई ने पिछले साल अक्टूबर महीने के दौरान अदालत से संपर्क किया था जिसमें अमेरिकी अधिकारियों से बोफोर्स सौदे के संबंध में जानकारी हासिल करने का आदेश देने का अनुरोध किया गया था। हर्शमैन की ओर से भारतीय एजेंसियों के साथ सहयोग करने की सहमति जताने के बाद यह कदम उठाया गया था। अदालत की ओर से अनुमति मिलने के बाद अब अनुरोध पत्र अमेरिका के पास भेजा गया है।
बोफोर्स घोटाले से कांग्रेस को लगा था बड़ा झटका
बोफोर्स घोटाला उजागर होने के बाद 1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था। इस मुद्दे को लेकर विश्वनाथ प्रताप सिंह ने राजीव गांधी की सरकार से इस्तीफा दे दिया था और बाद में उन्होंने इस मुद्दे को लेकर पूरे देश में एक बड़ा आंदोलन खड़ा कर दिया था। इस कारण कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा था और वीपी सिंह ने प्रधानमंत्री के रूप में देश की कमान संभाली थी।
दिल्ली हाईकोर्ट ने 2004 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के खिलाफ रिश्वत के आरोपों को खारिज कर दिया था मगर बोफोर्स घोटाला अभी तक रहस्यमय पहेली बना हुआ है। इस घोटाले से जुड़े कई सवालों का आज तक जवाब नहीं मिल सका है।
इस घोटाले में इटली के व्यापारी ओटावियो क्वात्रोची की भी संदिग्ध भूमिका थी जो राजीव गांधी की सरकार के समय काफी प्रभावशाली था। जांच के दौरान उसे भारत छोड़ने की अनुमति मिल गई थी और वह बाद में मलेशिया चला गया था। अब यह मामला फिर गरमाने की संभावना दिख रही है और अमेरिका के जवाब का इंतजार किया जा रहा है।