Caste Census: 'सिर्फ केंद्र सरकार को जनगणना का अधिकार, अन्य कोई ऐसी कार्रवाई का हकदार नहीं', SC में केंद्र का हलफनामा
Bihar Caste Survey: जनगणना के बारे में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि, 'जनगणना एक विधायी प्रक्रिया है जो जनगणना कानून-1948 से संचालित होती है।'
Bihar Caste Survey : केंद्र सरकार (MODI Government) ने बिहार में जाति आधारित जनगणना मामले में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा (Affidavit on Bihar Caste Census) दाखिल किया। केंद्र की तरफ से दिए एफेडेविट में बिहार में जनगणना के संबंध में संवैधानिक और कानूनी स्थिति स्पष्ट की गई है। केंद्र ने कहा है कि, 'सिर्फ केंद्र सरकार को जनगणना करने का अधिकार है। संविधान के तहत या अन्यथा कोई अन्य संस्था जनगणना या इस तरह की कोई कार्रवाई करने की अधिकारी नहीं है।'
केंद्र सरकार ने सोमवार (28 अगस्त) को शीर्ष अदालत में दाखिल हलफनामे में ये बातें कही है। बता दें, 21 अगस्त को केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (SG Tushar Mehta) ने बिहार में जाति आधारित गणना (Bihar Caste-Based Survey 2023) मामले में सुनवाई के दौरान कहा था कि, 'केंद्र सरकार किसी की ओर से नहीं है। लेकिन, इस मामले के परिणाम हो सकते हैं इसलिए केंद्र सरकार मामले में पक्ष रखना चाहती है।'
केंद्र के हलफनामे में क्या?
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के अनुरोध पर शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई एक हफ्ते के लिए टालते हुए केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए 7 दिन का वक़्त दिया था। उसी के अनुपालन में केंद्र सरकार ने 28 अगस्त को कोर्ट में ये ताजा हलफनामा दाखिल किया है। केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा है कि, वह इसके जरिये जनगणना के संबंध में सिर्फ संवैधानिक तथा विधायी स्थिति कोर्ट के विचार के लिए रखना चाहती है।
जानिए क्या है जनगणना कानून-1948?
केंद्र सरकार की तरफ से दिए हलफनामे में जनगणना कानून-1948 का हवाला दिया गया है। इसमें सरकार ने कहा है कि, 'जनगणना (Census in India) का विषय संविधान की सातवीं अनुसूची की केंद्रीय सूची में प्रविष्टि-69 में आता है। केंद्र ने इस प्रविष्टि में दी गई शक्ति का इस्तेमाल करते हुए जनगणना कानून-1948 (Census Act-1948) बनाया गया। इसी कानून की धारा-3 में सिर्फ केंद्र सरकार को जनगणना का अधिकार दिया गया है। संविधान के तहत या अन्यथा किसी अन्य संस्था जनगणना या जनगणना जैसी कोई कार्रवाई करने की हकदार नहीं है। अर्थात, किसी और संस्था या निकाय को जनगणना या जनगणना जैसी कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है।'
पटना हाई कोर्ट ने दी थी हरी झंडी
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पिछली सुनवाई पर साफ कर दिया था कि, वो केस को सुने बगैर कोई अंतरिम आदेश (Interim Order) नहीं देगा। अदालत ने कहा था कि, सुनवाई करके मामले को लेकर प्रथम दृष्टया संतुष्ट होने के बाद ही कोई आदेश देंगे। टुकड़ों में आदेश नहीं देंगे। पटना हाई कोर्ट (Patna High Court) ने बीते 1 अगस्त को बिहार में जाति आधारित गणना को चुनौती देने वाली याचिकाएं खारिज करते हुए हरी झंडी दे दी थी।
केंद्र के हलफनामे में क्या?
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के अनुरोध पर शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई एक हफ्ते के लिए टालते हुए केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए 7 दिन का वक़्त दिया था। उसी के अनुपालन में केंद्र सरकार ने 28 अगस्त को कोर्ट में ये ताजा हलफनामा दाखिल किया है। केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा है कि, वह इसके जरिये जनगणना के संबंध में सिर्फ संवैधानिक तथा विधायी स्थिति कोर्ट के विचार के लिए रखना चाहती है।
जानिए क्या है जनगणना कानून-1948?
केंद्र सरकार की तरफ से दिए हलफनामे में जनगणना कानून-1948 का हवाला दिया गया है। इसमें सरकार ने कहा है कि, 'जनगणना (Census in India) का विषय संविधान की सातवीं अनुसूची की केंद्रीय सूची में प्रविष्टि-69 में आता है। केंद्र ने इस प्रविष्टि में दी गई शक्ति का इस्तेमाल करते हुए जनगणना कानून-1948 (Census Act-1948) बनाया गया। इसी कानून की धारा-3 में सिर्फ केंद्र सरकार को जनगणना का अधिकार दिया गया है। संविधान के तहत या अन्यथा किसी अन्य संस्था जनगणना या जनगणना जैसी कोई कार्रवाई करने की हकदार नहीं है। अर्थात, किसी और संस्था या निकाय को जनगणना या जनगणना जैसी कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है।'
पटना हाई कोर्ट ने दी थी हरी झंडी
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पिछली सुनवाई पर साफ कर दिया था कि, वो केस को सुने बगैर कोई अंतरिम आदेश (Interim Order) नहीं देगा। अदालत ने कहा था कि, सुनवाई करके मामले को लेकर प्रथम दृष्टया संतुष्ट होने के बाद ही कोई आदेश देंगे। टुकड़ों में आदेश नहीं देंगे। पटना हाई कोर्ट (Patna High Court) ने बीते 1 अगस्त को बिहार में जाति आधारित गणना को चुनौती देने वाली याचिकाएं खारिज करते हुए हरी झंडी दे दी थी।