बिहार में बनने से ज्यादा बिगड़ रहे समीकरण

Update: 2018-06-29 06:56 GMT

शिशिर कुमार सिन्हा

पटना: लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बिहार में राजनीतिक उठापटक की खबरें बार-बार आ रही हैं। कभी जदयू का राजग से निकलने का संकेत सुर्खियों में आ रहा है तो कभी कांग्रेस-जदयू नेताओं की मुलाकात की चर्चा गरम हो जा रही है। ज्यादातर चर्चा सिर-पैर की तलाश करती नजर आती हैं, लेकिन अभी तक यह संभव नहीं हुआ है। ‘अपना भारत’ ने बिहार की राजनीति में प्रभाव रखने वाले और समय पर इसे प्रभावित करने वाले पांच राजनीतिक दलों के बड़े नेताओं से यह जानने का प्रयास किया कि लोकसभा चुनाव तक राजग और महागठबंधन में कुछ उलटफेर होने वाला है तो सामने आया कि चाहत के साथ ताकत तो कई दिग्गज लगा रहे हैं, लेकिन मामला फिट नहीं बैठ रहा।

जदयू की ओर सवाल-जवाब

राजद-कांग्रेस के साथ जनादेश लेने के बाद जदयू ने भाजपा का साथ लिया, लेकिन अब वह राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साथ खुद को सहज नहीं पा रही है। उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी भले ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ नजर आते हों, लेकिन भाजपा और जदयू की राह अक्सर जुदा ही नजर आती है। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का योग के लिए सामने नहीं आना, उतना बड़ा मुद्दा नहीं है लेकिन इस आयोजन में सिर्फ भाजपा की सहभागिता कई सवाल खड़े करती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील के बावजूद बिहार में भाजपा के साथ सरकार चला रहे जनता दल यू के नेताओं ने योग का समर्थन करते हुए भी योग दिवस से पल्ला झाड़ा। योग दिवस संबंधित अपील भी उन्हीं सरकारी विभागों की ओर से की गई, जो भाजपा के पास हैं। इसके पीछे ‘बड़ा-छोटा भाई’ विवाद को भी वजह माना जा रहा है।

दरअसल, जदयू ने बिहार में राजग के पुराने गणित के हिसाब से लोकसभा चुनाव में ज्यादा सीटों पर दावा कर रखा है लेकिन भाजपा किसी भी हालत में उसे पुराना दर्जा देने को तैयार नहीं है। बाहरी तौर पर खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस विवाद से खुद को अनजान बताते रहे हैं, लेकिन अंदरखाने हकीकत यही है कि वर्तमान केंद्र सरकार में अब तक कोई भागीदारी नहीं हासिल कर पाने वाले जदयू को लोकसभा चुनाव में बड़े भाई की भूमिका चाहिए ही चाहिए। जदयू ने इसके लिए अपना लिटमस टेस्ट भी किया, जिसके तहत ‘दीन बचाओ-देश बचाओ’ के जरिए अल्पसंख्यकों को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पटना के गांधी मैदान में संबोधित भी किया, लेकिन लोकसभा-विधासभा उपचुनावों में इसका कोई फायदा नहीं देख जदयू को राजग से अलग रास्ता ठीक से दिख नहीं रहा है। एक रास्ता कांग्रेस से होकर गुजरता भी है, लेकिन जदयू के ज्यादातर नेताओं को इसमें भविष्य नहीं नजर आ रहा है। यही कारण है कि पिछले दिनों जदयू के राजग से निकलने की चर्चाओं पर खुद नीतीश के करीबी जदयू के राष्ट्रीय महासचिव आरसीपी सिंह ने विराम लगाया। उन्होंने साफ कहा कि कांग्रेस इस स्थिति में ही नहीं कि कोई उसके साथ जाना चाहे। उन्होंने बड़ा-छोटा के विवाद को भी खत्म करने का प्रयास करते हुए कहा कि सीट बंटवारे पर राजग के घटक दलों में समय पर बात होगी और बीच का रास्ता निकल आएगा।

वैसे, इसी बड़ा-छोटा भाई विवाद के कारण रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी बिहार में अचानक नए रूप में सक्रिय नजर आ रही है। लंबे समय से बिहार से दूर रहे पासवान यहां दूसरी पार्टी के दिग्गजों से मिल रहे हैं।

मुलाकात के मायने अलग-अलग निकाले जा रहे हैं, लेकिन असल बात यही है कि लोजपा बिहार में अपनी सीटिंग लोकसभा सीटों पर टिकट नहीं कटने देना चाह रही। लगभग यही स्थिति रालोसपा की भी है, लेकिन रालोसपा कोटे से केंद्र में मंत्री बने उपेंद्र कुशवाहा कुछ आगे का गेम सोचकर बैठे हैं। रालोसपा राजग से अलग निकलने की सोच भले नहीं रहा, लेकिन वह जदयू के स्टैंड पर गंभीरता से नजर रख रहा है। रालोसपा नेता उपेंद्र कुशवाहा लंबे समय से खुद को बिहार का संभावित सीएम मानते रहे हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद अंदरूनी टूट और विधानसभा चुनाव में मुंह की खाने के कारण पार्टी राजग से बाहर भविष्य देखने की स्थिति में नहीं।

संयम नहीं खो रहे सहमे भाजपा नेता

भारतीय जनता पार्टी के नेताओं में राज्य की वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों के कारण ऊहापोह की स्थिति जरूर है। बिहार भाजपा के नेता केंद्र सरकार की नीतियों से राज्य को मिले फायदों पर बहुत नहीं बोल रहे हैं, क्योंकि इससे जदयू से दूरियां बढऩे की आशंका सामने आ सकती है। भाजपा के राज्यसभा सदस्य तक इस मामले में फूंक-फूंक कर कदम उठा रहे हैं।

भाजपा किसी भी हालत में जदयू के साथ चलना चाह रही है, इसलिए बिहार भाजपा के नेताओं से लेकर मंत्रियों तक के मुंह से केंद्रीय योजनाओं से ज्यादा राज्य सरकार की योजनाओं के बारे में सकारात्मक बयान सुनने को मिल रहे हैं। बड़ा-छोटा भाई विवाद पर उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी का नीतीश को स्वाभाविक रूप से बड़ा भाई बोलना और योग दिवस पर जदयू की दूरियों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देना इसी कड़ी का हिस्सा है।

भाजपा के तमाम दिग्गज नेता इन दिनों विभिन्न क्षेत्र की जानी-मानी हस्तियों से मिलकर उन्हें केंद्र सरकार की योजनाओं से अवगत करा रहे हैं। भाजपा बाहरी तौर पर यह दिखाने की भरसक कोशिश कर रही है कि जदयू के साथ किसी तरह का मनमुटाव नहीं है, लेकिन लोकसभा चुनाव में टिकट कटने की आशंका से भाजपा के कई सांसद जदयू की मनमानी नहीं चलने देने की बात कह रहे हैं। संभव है कि अगले महीने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के बिहार दौरे के बाद भाजपा सांसदों में से कुछ को संगठन में लाने की कवायद होगी, ताकि जदयू को कुछ सीटें देकर साथ कायम रखा जाए।

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