Bihar Political Crisis: देश की राजनीति में उतरेंगे नीतीश, देरी देख पदमुक्त रहने से बेहतर समझा सीएम बनना
Bihar Political Crisis: मुख्यमंत्री नीतीश के बेहद करीबी मंत्री विजय कुमार चौधरी और न ही जगदानंद सिंह इस उलटफेर की बात को मंगलवार दोपहर तक स्वीकार कर रहे थे।
Bihar Political Crisis: भाजपा के 77 विधायकों को अलग कर दें तो बाकी 165 विधायकों के साथ अब बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में महागठबंधन सरकार बनेगी। संख्याबल में कोई संशय नहीं था, लेकिन न तो मुख्यमंत्री नीतीश के बेहद करीबी मंत्री विजय कुमार चौधरी और न ही राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह इस उलटफेर की बात को मंगलवार दोपहर तक स्वीकार कर रहे थे। सरकार को स्थिर और पूरे हल्ले को प्रायोजित बता रहे थे। ऐसा नहीं कि इन्हें नहीं पता होगा, लेकिन बात एक ही जगह अटक रही थी कि नीतीश आगे भी सीएम बने रहेंगे या किसी और को कुर्सी दे जाएंगे। वजह भी वाजिब थी।
वजह पहली बार औपचारिक तौर पर जदयू के उपेंद्र कुशवाहा ने ट्वीट कर बताई- "देश आपका इंतजार कर रहा है।" मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के राजनीतिक कद को देखकर लालू प्रसाद का पूरा परिवार कई बार दुहरा चुका है कि भतीजे को राज्य सौंप दिल्ली की राजनीति करें। मंगलवार को जब नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने अकेले गए, तबतक यही लगा कि वह वक्त आ गया है। लेकिन, कुछ देर बाद राज्य की सबसे बड़ी पार्टी राजद के तेजस्वी यादव के साथ नीतीश कुमार ने जब सरकार बनाने का दावा किया तो राजनीतिक विश्लेषकों का यह गणित भी बेकार गया। अब कहा जा रहा है कि 2024 आने में अभी देर है और तबतक पदमुक्त रहने से बेहतर बिहार का मुख्यमंत्री बने रहना नीतीश कुमार ने सही समझा। मुख्यमंत्री के इस निर्णय में भी दूरदृष्टि कही जा रही है। मुख्यमंत्री बने रहेंगे तो राजद-कांग्रेस की शराबबंदी खत्म करने की लंबे समय से चली आ रही मांग किनारे रहेगी। वह मुख्यमंत्री रहेंगे तो सीबीआई-ईडी के प्रहार से राजद को बचा भी सकेंगे। लालू प्रसाद के सबसे करीबी भोला यादव सीबीआई के हत्थे चढ़ चुके हैं और अब केंद्रीय एजेंसियां आगे बढ़ने का रास्ता ढूंढ़ रही हैं।
पीएम मैटेरियल की आवाज फिर गूंजने लगी, इस बार नहीं दबेगी
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भाजपा के भितरघात से आजिज आकर एनडीए से बाहर निकले हैं और माना जा रहा है कि अब वह केंद्र की राजनीति में उतर विपक्ष का चेहरा बनना चाहते हैं। इसके पीछे एक तर्क यह भी है कि राहुल गांधी की स्वीकार्यता कांग्रेस से बाहर नहीं है और ममता बनर्जी को सोनिया गांधी पसंद नहीं कर रहीं। ऐसे में आज की तारीख में विपक्ष को जिस सर्वस्वीकार्य चेहरे की जरूरत है, वह नीतीश कुमार हो सकते हैं। मंगलवार को जब वह मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने गए, तब जदयू के साथ ही राजद के कार्यकर्ताओं ने भी उनके जयकारे लगाए। राजद वालों से जब पूछा गया कि आप नीतीश कुमार को स्वीकार कर लेंगे तो बड़े नेताओं ने भी कहा कि वह बहुत जल्द प्रधानमंत्री पद पर नरेंद्र मोदी को टक्कर देने के लिए निकलेंगे। दरअसल, यह आवाज बिहार में लंबे समय से उठ रही है कि नीतीश पीएम मैटेरियल हैं। लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की पार्टी जब पिछली बार साथ हुई थी, तब भी यह बात आई थी। जब राजद विपक्ष में था, तब भी कई बार राबड़ी देवी ने कहा था कि नीतीश कुमार दिल्ली देखें, तेजस्वी को बिहार देखने दें। इसके अलावा, पिछले विधानसभा चुनाव के समय जब नीतीश कुमार ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी अपने तत्कालीन भरोसेमंद रामंचद्र प्रसाद सिंह उर्फ आरसीपी को सौंपी, तब भी यह कहा गया था कि अब वह बहुत जल्द राष्ट्रीय राजनीति में सीधे तौर पर एक्टिव होंगे। मंगलवार को भी यह बात आ रही थी, लेकिन महागठबंधन का नेता चुने जाने की औपचारिकता के साथ ही यह तय हो गया कि नीतीश कुमार फिलहाल बिहार में स्थिर सरकार देने के लिए रुक गए हैं। जदयू के एक वरिष्ठ नेता और मंत्री ने अनौपचारिक बातचीत में न्यूजट्रैक से कहा- "भाजपा के भितरघात और उससे मिले अपमान का बदला लेने के लिए नीतीश कुमार ने पहला कदम बढ़ाया है एनडीए से निकलकर। अब अगला कदम बिहार में स्थिर सरकार देना है और आगे उनका रास्ता तो उनके लिए खुद बन जाएगा। देश में विपक्ष के पास नीतीश कुमार से ज्यादा बड़ा, ईमानदार और सबसे बड़ी बात कि नरेंद्र मोदी को खुली चुनौती देने वाला नेता कोई दूसरा नहीं है। जब हर राज्य में भाजपा जोड़तोड़ से सरकार बनाने की कोशिश करती है, बिहार में नीतीश कुमार ने उसके रथ को रोक दिया। साजिश को ध्वस्त कर ऐसी सरकार बनाई है कि भाजपा वालों के पास करने क्या, बोलने के लिए भी कुछ नहीं बचा है।"
भाजपा का बिहार में भविष्य फिलहाल…विपक्ष के अलावा कुछ नहीं
बिहार की राजनीति में राष्ट्रीय दल भाजपा हो या कांग्रेस, अकेले कुछ करने की स्थिति में नहीं है। यहां की जातीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों का ही ज्यादा प्रभाव है। यह 2014 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर साफ हो गया था। तब राजद-जदयू ने साथ उतरकर भाजपा को चारों खाने चित कर दिया था। बिहार में जदयू का साथ भाजपा की मजबूरी रही है और अब वह छूट गया है तो विपक्ष में बैठने के अलावा पार्टी के पास कोई विकल्प नहीं। सारे मंत्री पदमुक्त तो वैसे ही हो गए। विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा की कुर्सी भी गई। उन्होंने इस कुर्सी पर बैठ मुख्यमंत्री तक का मान-मर्दन किया था। अब भाजपा का हर विधायक विपक्ष में होगा। बीच में सरकार गिरने की आशंका इसलिए नहीं क्योंकि राजद को तेजस्वी का भविष्य दिख रहा है और इस सरकार के लिए राजद से एक झटके में सारी दूरी खत्म करने वाली कांग्रेस का बाहर निकलना संभव नहीं। ऐसे में विपक्ष में भाजपा अकेली हो गई है और अगले चुनाव तक उसे अकेले ही रहना है। मध्यावधि चुनाव की कोई संभावना बन नहीं रही, यह भी तय है। ऐसे में उसके पास एक ही काम बचा है और इसकी झलक मंगलवार शाम भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल ने दिखा भी दी। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ नीतीश भाजपा के साथ आए थे और जनमत हासिल करने के बाद उसका अपमान कर धोखा दे गए।
सरकार के अंदर नीतीश-निश्चय को लेकर रहेगी चुनौती
पिछली बार महागठबंधन की सरकार से नीतीश कुमार जिस कारण निकले थे, वह कहीं न कहीं इस बार भी उनके सामने होगी। वजह यह कि शराबबंदी को खत्म करने की मांग राजद-कांग्रेस विपक्ष में रहते भी उठा रहे थे। अब महागठबंधन सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निश्चय को मानते हुए राजद-कांग्रेस इस मांग पर चुप्पी साध लें तो सरकार सहज चलती रहेगी। अगर यह मांग नहीं उठाई गई तो संभव है कि केंद्रीय एजेंसियों की ओर से लालू परिवार पर कार्रवाई की स्थिति में भी नीतीश कुमार अपने उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के साथ खड़े हों। सरकार स्थिर है, इसका प्रमाण देने के लिए इस बार राजद को कई समझौते करने होंगे ताकि नीतीश को असहजता नहीं हो। सबसे पहला कि वह किसी भी पद के लिए जिद नहीं करे। विभागों का बंटवारा होने के बाद बोर्ड, समितियों, आयोगों के पद अगर आसानी से बांट लिए जाते हैं तो यह मान लिया जाएगा कि सरकार इस बार सहज तरीके से चल जाएगी। पिछली बार शराब, भ्रष्टाचार और इन्हीं गतिरोधों से असहज होकर नीतीश कुमार ने महागठबंधन से बाहर का रास्ता देख लिया था।
संभावित मंत्रियों की लिस्ट
RJD - तेजप्रताप यादव, आलोक कुमार मेहता, अनिता देवी, जितेन्द्र कुमार राय, चन्द्रशेखर, कुमार सर्वजीत, बच्चा पांडेय, भारत भूषण मंडल, अनिल सहनी, शाहनवाज/शमीम अहमद, रामचंद्र पूर्वे/समीर महासेठ, भाई वीरेन्द्र, वीणा सिंह और सुरेन्द्र राम
JDU - विजय कुमार चौधरी, विजेन्द्र प्रसाद यादव, अशोक चौधरी, उपेन्द्र कुशवाहा, श्रवण कुमार, मदन सहनी, संजय कुमार झा, लेसी सिंह, सुनील कुमार, जयंत राज, जमां खान
कांग्रेस - मदन मोहन झा या अजीत शर्मा, राजेश कुमार।