मनोहर पर्रिकर: ईमानदारी व सादगी की बने मिसाल, इन फैसलों से जीता सबका दिल
गोवा की राजनीति में भाजपा की जड़ों को मजबूत बनाने में पर्रिकर का उल्लेखनीय योगदान था। उन्होंने पहली बार 1994 में विधानसभा का चुनाव जीता था। उस समय भाजपा गोवा में बड़ी ताकत नहीं बन पाई थी और पार्टी की सिर्फ 4 सीटें हुआ करती थी।
लखनऊ: मनोहर पर्रिकर की गिनती ऐसे राजनेताओं में की जाती है जो अपनी ईमानदारी, स्वच्छ छवि और सादगीपूर्ण जीवन शैली के लिए हमेशा चर्चाओं में रहे। देश के रक्षा मंत्री और गोवा के चार बार मुख्यमंत्री रहने के बावजूद वे हमेशा तामझाम से दूर रहे।
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वे इतना सादगी पसंद व्यक्ति थे कि गोवा की गलियों में बिना किसी तामझाम के एक आम इंसान की तरह स्कूटर से लोगों के बीच पहुंच जाते थे। 13 दिसंबर 1955 को गोवा के मापुसा में पैदा होने वाले मनोहर पर्रिकर का निधन गत वर्ष 17 मार्च को लंबी बीमारी के बाद हुआ था। वे पैनक्रियाज के कैंसर से पीड़ित थे।
आईआईटी के बाद सियासी मैदान में उतरे
सियासत के मैदान में बहुत कम ऐसे नेता होंगे जो पर्रिकर की तरह प्रतिभाशाली हों। कम ही लोगों को पता होगा कि पर्रिकर ने आईआईटी मुंबई से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की थी। वे देश के पहले ऐसे मुख्यमंत्री थे जो आईआईटी डिग्रीधारी थे।
गोवा में भाजपा को बड़ी ताकत बनाया
गोवा की राजनीति में भाजपा की जड़ों को मजबूत बनाने में पर्रिकर का उल्लेखनीय योगदान था। उन्होंने पहली बार 1994 में विधानसभा का चुनाव जीता था। उस समय भाजपा गोवा में बड़ी ताकत नहीं बन पाई थी और पार्टी की सिर्फ 4 सीटें हुआ करती थी।
इसके बाद पर्रिकर लगातार गोवा में पार्टी को मजबूत बनाने में जुटे रहे और 6 साल के भीतर ही उन्होंने गोवा में भाजपा को इतना मजबूत बना दिया कि वह सरकार बनाने में कामयाब हो गई।
24 अक्टूबर 2000 को पर्रिकर ने पहली बार गोवा के मुख्यमंत्री पद की कमान संभाली थी। इसके बाद 5 जून 2002 को वे दोबारा मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हुए। 2012 में वे फिर मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हुए। विपक्ष में रहते हुए उन्होंने कांग्रेस सरकार के दौरान हुए खनन घोटालों का पर्दाफाश करके सनसनी फैला दी थी।
इस कारण नहीं बन सके भाजपा अध्यक्ष
साफ छवि और सादगीपूर्ण जीवन शैली के कारण मनोहर पर्रिकर की भाजपा में पकड़ इतनी मजबूत हो गई थी कि वे 2009 में भाजपा अध्यक्ष की कुर्सी के करीब तक पहुंच गए थे मगर उस समय पार्टी के शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी पर दिए गए एक बयान के कारण पार्टी ने पार्टी के इस शीर्ष पद तक पहुंचने में कामयाब नहीं हो सके।
पर्रिकर के इस बयान पर काफी विवाद हुआ था। इसके बावजूद उनकी लोकप्रियता गोवा के दायरे से बाहर निकलकर महाराष्ट्र और दूसरे राज्यों तक भी पहुंची।
रक्षा मंत्री के रूप में कई बड़े फैसले
रक्षा मंत्री के के रूप में पर्रिकर के कार्यकाल को बड़ी शिद्दत से याद किया जाता है। उन्होंने 9 नवंबर 2014 को देश के रक्षा मंत्री का कार्यभार संभाला था और रक्षा मंत्रालय में आने के बाद कई बड़े फैसले लिए थे।
उरी में हुए आतंकी हमले में जवानों की शहादत के जवाब में भारत ने अक्टूबर 2016 में पाकिस्तान की सीमा में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक की थी और कई आतंकियों को ढेर कर दिया था।
इस सर्जिकल स्ट्राइक के दौरान भारतीय सेना के जांबाजों ने पाकिस्तान में स्थित कई आतंकी कैंपों को भी निशाना बनाया था। रक्षा मंत्री के रूप में पर्रिकर सर्जिकल स्ट्राइक के दौरान पूरी रात ऑपरेशन पर नजर बनाए हुए थे।
आतंकियों के खिलाफ सफल ऑपरेशन
पर्रिकर के रक्षा मंत्रित्वकाल के दौरान ही भारतीय सेना ने मणिपुर में म्यांमार सरहद पर आतंकियों के खिलाफ सफल ऑपरेशन को अंजाम दिया था।
इस ऑपरेशन की कामयाबी में पर्रिकर की बड़ी भूमिका थी और उन्हीं की निगरानी में यह ऑपरेशन चलाया गया था।
राफेल सौदे को मंजूरी
फ्रांस से राफेल सौदे का मामला लंबे समय से अटका पड़ा था और रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर की अगुवाई में ही इस सौदे को मंजूरी दी गई थी। सितंबर 2016 में भारत और फ्रांस के बीच राफेल फाइटर प्लेन के सौदे पर हस्ताक्षर किए गए थे। भारत की ओर से इस समझौते पर रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और फ्रांस की ओर से वहां के रक्षा मंत्री ज्यां सील ली ड्रियान ने हस्ताक्षर किए थे।
हालांकि बाद में इस सौदे को लेकर कांग्रेस सहित कुछ राजनीतिक दलों ने आपत्तियां भी उठाई थीं मगर पर्रिकर पर इस मामले में कोई दाग नहीं लगा। सेना में वन रैंक वन पेंशन की 40 साल पुरानी मांग को अमल के रास्ते पर ले आने में भी पर्रिकर की महत्वपूर्ण भूमिका थी।
इस कारण चौथी बार सीएम बनाए गए पर्रिकर
बाद में जब भारतीय जनता पार्टी को गोवा में एक बार फिर पर्रिकर के नेतृत्व की जरूरत पड़ी तो उन्हें गोवा का मुख्यमंत्री बनाया गया। उन्हें 14 मार्च 2017 को चौथी बार गोवा का मुख्यमंत्री बनाया गया था।
गोवा के छोटे दलों और निर्दलीय विधायकों ने इस शर्त पर भाजपा को समर्थन दिया था कि मनोहर पर्रिकर को ही गोवा का मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। इसके बाद देश के रक्षा मंत्री पद से इस्तीफा दिलाकर उन्हें पार्टी की ओर से गोवा भेजा गया।
फरवरी 2018 में पर्रिकर को कैंसर से पीड़ित होने की जानकारी मिली। इसके बाद उन्होंने गोवा, मुंबई, दिल्ली और न्यूयॉर्क में इसका इलाज कराया। जिन दिनों में वे बेहद गंभीर रूप से बीमार थे, उन दिनों में गोवा की विधानसभा में उन्होंने 2019-20 का बजट पेश किया था। इस दौरान उन्होंने बेहद आत्मविश्वास के साथ कहा था मैं जोश में भी हूं और पूरी तरह होश में भी हूं।
नहीं पूरी हो सकी आखिरी इच्छा
एक टीवी चैनल को दिए गए इंटरव्यू में एक बार पर्रिकर ने कहा था कि मैं अपनी जिंदगी के अंतिम 10 साल खुद के लिए जीना चाहता हूं। उनका कहना था कि मैंने अपने राज्य को काफी कुछ वापस कर दिया है और मौजूदा कार्यकाल के बाद पार्टी की ओर से दबाव बनाए जाने के बावजूद चुनाव लड़ने का इच्छुक नहीं हूं मगर पर्रिकर की यह इच्छा अधूरी ही रह गई।
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निधन पर पूरा देश हो गया था गमगीन
कर्तव्य निष्ठा, ईमानदारी, पारदर्शिता सादगीपूर्ण जीवन और स्पष्टवादी सोच मनोहर पर्रिकर के व्यक्तित्व की खासियत थी और इसी कारण सियासी मैदान में विपक्षी भी उनका नाम सम्मान के साथ लिया करते थे। उन्होंने जीवन के अंतिम समय तक पूरे जोश के साथ लोगों की सेवा की और यही कारण था कि 17 मार्च 2019 को उनके निधन पर गोवा ही नहीं पूरे देश के लोग गमगीन दिखे थे।
रिपोर्ट- अंशुमान तिवारी
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