गुलाम नबी आजाद: कभी थे गांधी परिवार के करीबी, अब असंतुष्टों की बने आवाज

अपने लंबे सियासी जीवन के दौरान आजाद के अपनी पार्टी के नेताओं के साथ ही दूसरे सियासी दलों के नेताओं से भी काफी सौहार्दपूर्ण संबंध रहे हैं।

Update: 2021-03-07 08:16 GMT
गुलाम नबी आजाद: कभी थे गांधी परिवार के करीबी, अब असंतुष्टों की बने आवाज (PC: social media)

अंशुमान तिवारी

नई दिल्ली: कांग्रेस में कभी गांधी परिवार के सबसे करीबी माने जाने वाले गुलाम नबी आजाद अब पार्टी में बदलाव की सबसे मुखर आवाज बन चुके हैं। आजाद कांग्रेस में इंदिरा गांधी से लेकर राहुल-प्रियंका के दौर तक हर उतार-चढ़ाव के साक्षी रहे हैं। संगठन और सरकार में कई महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके आजाद का जन्म 1949 में आज ही के दिन जम्मू के आतंकग्रस्त रहे जिले डोडा में हुआ था।

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सभी दलों के नेताओं से अच्छे रिश्ते

अपने लंबे सियासी जीवन के दौरान आजाद के अपनी पार्टी के नेताओं के साथ ही दूसरे सियासी दलों के नेताओं से भी काफी सौहार्दपूर्ण संबंध रहे हैं। अब कांग्रेस में असंतुष्टों के गुट जी-23 की मुखर आवाज बन चुके आजाद का दावा है कि वे अब भी पार्टी को मजबूत बनाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। पिछले दिनों राज्यसभा से उनकी विदाई के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी काफी भावुक हो गए थे उनकी आंखों से आंसू भी निकल आए थे।

gulam-nabi-azad (PC: social media)

आजाद के समर्थन से मिली ताकत

2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद पहली बार पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र बहाल करने और पार्टी के संगठन को मजबूत बनाने की मांग खुलकर उठ रही है। माना जा रहा है कि आजाद के समर्थन से पार्टी के असंतुष्ट नेताओं की आवाज को काफी ताकत मिली है और गांधी परिवार के सामने पहली बार पार्टी में संकट की स्थिति पैदा हुई है।

देखने वाली बात यह होगी कि पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की आंतरिक कलह का कितना असर पड़ता है। वैसे आजाद का कहना है कि यदि पार्टी नेतृत्व की ओर से कहा जाएगा तो वह किसी भी राज्य में चुनाव प्रचार करने के लिए तैयार हैं। उनका कहना है कि वे कांग्रेस की मजबूती चाहते हैं और इसके लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हैं।

सियासत से अभी रिटायर नहीं

पिछले दिनों आजाद के बुलावे पर जम्मू में पार्टी के असंतुष्ट नेताओं का जमावड़ा लगा था। इस सम्मेलन में जी-23 के नेताओं ने पार्टी से जुड़े मुद्दों पर खुलकर अपनी बात रखी थी। कई नेताओं ने राज्यसभा से आजाद की विदाई पर सवाल भी उठाए थे।

बाद में आजाद ने अपनी बात रखते हुए कहा था कि मैं राज्यसभा से जरूर रिटायर हो गया हूं मगर मैं सियासत से रिटायर नहीं हो रहा हूं। उनका कहना था कि वे आगे भी सियासी गतिविधियों में पूरी तरह सक्रिय रहेंगे।

गांधी परिवार के रहे हैं करीबी

कांग्रेस से जुड़े लोग इस बात को मानते हैं कि गांधी परिवार से आजाद की नजदीकी को किसी भी सूरत में नकारा नहीं जा सकता। पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के दौर में गांधी परिवार सियासी गतिविधियों से पूरी तरह दूर हो चुका था, लेकिन बाद के दिनों में आजाद ने कांग्रेस पर गांधी परिवार की पकड़ मजबूत करने में पूरी मदद की थी।

संगठन को मजबूत बनाने में भी उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई थी। हालांकि अब गांधी परिवार के समर्थक आजाद को हाशिए पर धकेलने की कोशिश में जुटे हुए हैं मगर अभी भी आजाद कांग्रेस पार्टी के सबसे महत्वपूर्ण केंद्रबिंदु बने हुए हैं।

विदाई भाषण में भावुक हुए पीएम मोदी

राज्यसभा से आजाद की विदाई के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काफी भावुक भाषण दिया था। उन्होंने गुजरात के पर्यटकों पर हुए हमले के दौरान आजाद की ओर से की गई मदद की पुरानी घटना की याद दिलाई थी। उनका कहना था कि आजाद का केवल कांग्रेस में ही सम्मान नहीं है बल्कि विपक्षी नेताओं से भी उनके लिए काफी आत्मीय रिश्ते हैं।

इसके बाद आजाद के सियासी भविष्य को लेकर अटकलों का दौर शुरू हो गया था। हालांकि आजाद ने इन अटकलों को पूरी तरह खारिज किया है। उनका कहना है कि जब कश्मीर में काली बर्फ गिरेगी तभी मैं भाजपा का हिस्सा बन सकता हूं।

आजाद पर नहीं लगा कोई दाग

आजाद ने कश्मीर विश्वविद्यालय से जूलॉजी में एमएससी की डिग्री हासिल की है। ऐसे समय में जब कांग्रेस के अधिकांश नेता अपने बेटों और रिश्तेदारों को सियासी मैदान में आगे बढ़ाने में जुटे हुए हैं तब आजाद वंशवाद के दाग से पूरी तरह दूर है।

लंबे सियासी जीवन में उनके ऊपर भ्रष्टाचार का कोई दाग भी नहीं लगा है और यही कारण है कि उनके विरोधी भी कभी उन्हें नहीं घेर सके।

सीएम के रूप में कई महत्वपूर्ण काम

जम्मू कश्मीर के लोग मुख्यमंत्री के रूप में आजाद के कार्यकाल को आज भी याद करते हैं। आजाद ने अक्टूबर 2005 में जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री का पद संभाला था और राज्य में विकास की गतिविधियों को तेज करने की कोशिश की थी। उन्होंने राज्य में आतंकवाद को खत्म करने के लिए भी काफी प्रयास किया था।

जम्मू-कश्मीर से जुड़े जानकारों का कहना है कि जम्मू-कश्मीर में फर्जी मुठभेड़ों को बंद कराने में भी आजाद की बड़ी भूमिका थी और उन्होंने इस मामले में दोषियों को दंड भी दिलाया। अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में आजाद ने जम्मू कश्मीर के विभिन्न इलाकों के लोगों की मांग पर आठ नए जिले बनाए थे। इसके साथ ही राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने की दिशा में भी उन्होंने काफी काम किया था।

ghulam nabi azad (PC: social media)

सियासी जीवन में महत्वपूर्ण उपलब्धियां

यदि आजाद के सिवासी जीवन को देखा जाए तो वे कांग्रेस के 9 बार महासचिव रहे हैं। उन्हें 1975 में जम्मू-कश्मीर युवा कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था और 5 साल बाद 1980 में वे अखिल भारतीय युवा कांग्रेस के भी अध्यक्ष बने। 1980 में वे महाराष्ट्र के वाशिम से सांसद चुने गए थे। उन्होंने कई महत्वपूर्ण मंत्रालयों का कामकाज संभाला।

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वे 5 बार राज्यसभा के सदस्य चुने गए। पिछले महीने की 15 फरवरी को राज्यसभा सदस्य के रूप में उनका कार्यकाल समाप्त हुआ है। अब देखने वाली बात यह होगी कि आजाद भविष्य में सियासी गतिविधियों में कैसे सक्रिय रहते हैं और कांग्रेस की आंतरिक कलह में उनकी क्या भूमिका होती है।

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