अब कर्नाटक चुनाव पर BJP का फोकस,हर हथकंडा अपनाने को तैयार

गुजरात व हिमाचल में सरकार बनाने की प्रक्रिया के साथ ही भाजपा ने अब सुदूर दक्षिण में कर्नाटक में आगामी तीन माह के भीतर हो रहे चुनावों के लिए कमर कस ली

Update: 2017-12-20 16:22 GMT
अब कर्नाटक चुनाव पर BJP का फोकस,हर हथकंडा अपनाने को तैयार

उमाकांत लखेड़ा

नई दिल्ली: गुजरात व हिमाचल में सरकार बनाने की प्रक्रिया के साथ ही बीजेपी ने अब सुदूर दक्षिण में कर्नाटक में आगामी तीन माह के भीतर हो रहे चुनावों के लिए कमर कस ली है। हालांकि 2018 में देश के बाकी 7 प्रदेशों में भी चुनाव होने हैं लेकिन दक्षिण का बड़ा और अहम प्रदेश होने की वजह से बीजेपी हिमाचल की तरह उसे भी इस बार कांग्रेस से छीनने को हर हथकंडा अपनाने को कमर कस रही है।

225 विधानसभा सीटों के लिए इस आगामी अप्रैल तक चुनाव प्रकिया पूरी होनी है लेकिन दोनों प्रमुख प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस बीजेपी ने तरकश से पहले ही निकाल लिये हैं। केंद्रीय संसदीय कार्यमंत्री अनंत कुमार अनौपचारिक बातचीत में मानते हैं कि इस बार चुनाव में हिंदुत्व का एजेंडा बीजेपी की प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर है। बकौल उनके बंगलुरू समेत प्रदेश के सभी अंचलों में कानून व्यवस्था, लड़कियों व महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध और आंतकी तत्वों के खिलाफ कर्नाटक की कांग्रेस सरकार के नरम रुख के खिलाफ मतदाताओं के आक्रोश को बडा मुद्दा बनाया जाएगा।

कर्नाटक में मौजूदा विधानसभा में भाजपा के 124 विधायक हैं। बीजेपी के 44 व जेडीएस के 39 विधायक हैं। 9 विधायक छोटे दलों व 9 निर्दलीय विधायक हैं। बहुमत का आंकड़ा छूने के लिए भाजपा को 113 विधायकों का जादुई आंकड़ा चाहिए। लेकिन प्रदेश की राजनीति में पूर्व पीएम एचडी देवेगौड़ा का प्रभाव अभी भी अपने परपंरागत ओबीसी-किसान जातियों पर बना हुआ है। केंद्र की राजनीति में भाजपा विरोधी खेमें में रहते हुए वे कांग्रेस से दोस्ताना संबंध बनाए हुए हैं लेकिन स्थानीय स्तर पर कांग्रेस के साथ सीटों के तालमेल की संभावनाएं नहीं दिख रहीं। हालांकि कांग्रेस का मानना है कि कई सीटों पर भाजपा की ताकत को बढ़ने से रोकने में देवेगौड़ा की पार्टी के अलग से चुनाव लड़ने से हमें नुकसान के बजाय लाभ ही होता है।

भाजपा की रणनीति यह है कि ताकतवर लिंगायत समुदाय के पूरी तरह भाजपा के साथ आने और कर्नाटक में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रोद्योगिकी के कई बड़े हब होने के बावजूद राज्य की कांग्रेस सरकार के रहते इस पूरे सेक्टर में अब तक की बहुत बड़ी मंदी लाने के लिए कांग्रेस जिम्मेदार है। हालांकि कांग्रेस का दावा है कि सत्ता विरोधी रूझान और लोगों को सांप्रदायिक आधार पर बांटने की जुगत में लगी भाजपा को बहुत सफलता इसलिए नहीं मिलने वाली क्योंकि पूरा जोर लगाने के बावजूद कुछ माह पूर्व हुए दो विधानसभा उप चुनावों नंजनगढ़ व गंडलूपेट में भाजपा की शानदार जीत दर्ज हुई है।

भाजपा ने साल भर पहले ही राज्य में ताकतवर लिंगायत नेता बीएस येद्दूरप्पा को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर रखा है। उन्होंने पूरे राज्य में 75 दिन की परिवर्तन यात्रा निकाल कर भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने का बीड़ा उठा लिया है लेकिन राज्य में कांग्रेस सरकार का नेतृत्व कर रहे मुख्यमंत्री सिद्दारमैया भाजपा की हिंदुत्ववादी चुनावी राजनीति का मुकाबला करने के लिए नई सोशल इंजिनियरिंग का ताना बाना तैयार कर चुके हैं। उन्होंने ओबीसी समुदाय के साथ ही अल्पसंख्यक व दलित जातियों का गठजोड़ खड़ा कर कांग्रेस के सामने का मुकाबला करने की जवाबी रणनीति तैयार करनी आरंभ कर दी है।

वे राज्य के दौरा कार्यक्रमों में 2008 से 2013 के बीच पांच साल में भाजपा की निष्फल सरकार के दौरान तीन मुख्यमंत्री बनाए जाने के मामले को भी प्रमुखता से उठाते हुए कर्नाटक की जनता को याद दिला रहे हैं कि भाजपा सरकार ने राज्य को किस तरह अवैध खनन, रिसार्ट घोटाले और कई तरह के दूसरे घोटाले किए हैं। भाजपा के मुख्यमंत्री चेहरे बीएस येदुरप्पा ने करीब 40 साल पहले लिंगायत समुदाय को हिंदू धर्म से अलग संप्रदाय घोषित करने की भी मुहिम छेड़ी थी। कांग्रेस चुनावों के मौके पर येदुरप्पा की हिंदुत्व की राजनीति को कटघरे में खड़ा करने की उधेड़बुन मे जुटी है।

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