BJP Mission 2024: राजभर का मिला साथ, पूर्वांचल में और मजबूत हुई भाजपा, जानिए अमित शाह ने कैसे किया विरोधियों को चित
BJP Mission 2024: राजभर समाज की आबादी उत्तर प्रदेश में 12 फीसदी है, जबकि पूर्वांचल में राजभर जाति की आबादी 12-22 प्रतिशत है। राजभर वोटबैंक पूर्वांचल के दो दर्जन से अधिक लोकसभा सीटों पर 50 हजार से करीब ढाई लाख तक हैं। इसलिए राजभर भाजपा के लिए और महत्वपूर्ण हो जाते हैं।
BJP Mission 2024: ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा अब एनडीए का हिस्सा हो गई है। यानी फिर से भाजपा की सहयोगी दल हो गई है। काफी दिनों से राजभर के भाजपा के साथ आने की अलकलें लगाई जा रही थीं और रविवार को उन अटकलों पर उस समय विराम लग गया जब ओपी राजभर के एनडीए में शामिल होने की घोषणा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ट्वीट कर दी। वहीं दारा सिंह चैहान ने भी सपा छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया।
अब यहां सवाल यह उठता है कि राजभर और दारा सिंह के आने से एनडीए और भाजपा को क्या फायदा होगा। वहीं राजभर को भाजपा से क्या फायदा होगा। 2024 में लोकसभा का चुनाव होना है। इसको देखते हुए सभी राजनीतिक दल अपने दांव पेंच लगा रहे हैं। भाजपा यूपी की 80 में से अस्सी सीटें जितने का दावा कर रही है। भाजपा भले ही यूपी की कुल सीटों पर जीतने का दम भरे लेकिन यह अकेले भाजपा के लिए आसान नहीं होगा। यह भाजपा भी जानती है। इसके लिए उसे कुछ पार्टियों से गठबंधन करना ही होगा और भाजपा ऐसा ही कर भी रही है। राजभर के एनडीए में आने से भाजपा को पूर्वांचल में मजबूती मिलेगी। राजभर समाज की आबादी उत्तर प्रदेश में 12 फीसदी है, जबकि पूर्वांचल में राजभर जाति की आबादी 12-22 प्रतिशत है। राजभर वोटबैंक पूर्वांचल के दो दर्जन से अधिक लोकसभा सीटों पर 50 हजार से करीब ढाई लाख तक हैं। इसलिए राजभर भाजपा के लिए और महत्वपूर्ण हो जाते हैं।
पूर्वांचल में राजभर मजबूत नेता हैं
सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर कुछ सालों में पूर्वांचल में मजबूत नेता के तौर पर उभरे हैं। पिछड़ी जातियों में उनकी मजबूत पकड़ है। वे अपनी बातों को काफी बेबाक तरीके से रखते हैं। अक्सर अपने बयानों से चर्चा में रहने वाले राजभर की जनता के बीच मजबूत पकड़ है। उन्होंने पूर्वांचल के कई जिलों में अपनी दमदारी के साथ उपस्थिति दिखाई है।
इन जिलों में है मजबूत पकड़
ओमप्रकाश राजभर की पूर्वांचल के वाराणसी, गाजीपुर, बलिया, जौनपुर, देवरिया, गोरखपुर, मउ, आजमगढ़, भदोही, मिर्जापुर, चंदौली आदि जिलों में मजबूत पकड़ है। यहां राजभर समाज का अच्छा वोट बैंक है जो जीत हार में अहम भूमिका निभाता है।
भाजपा से गठबंधन के बाद आए अच्छे दिन
ओम प्रकाश राजभर आज जिस मुकाम पर हैं। वहां तक पहुंचने के लिए उन्होंने काफी संघर्ष किया है। ओपी राजभर के राजनीति में अच्छे दिन उस समय से शुरू हुए जब उन्होंने भाजपा से गठबंधन किया। 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा ने ओम प्रकाश राजभर को आठ सीटें दी, जिसमें से सुभासपा ने चार सीटों पर जीत दर्ज की और इसी के साथ ही अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत की और इसका परिणाम यह हुआ कि ओम प्रकाश राजभर को योगी आदित्यनाथ की सरकार में पिछड़ा वर्ग कल्याण व दिव्यांगजन कल्याण मंत्री बनाया गया। लेकिन राजभर और भाजपा का गठबंधन अधिक दिनों तक नहीं चल पाया, गठबंधन के विरोध में काम करने के कारण बीजेपी ने सुभासपा से अपनी राह अलग कर ली। जिसके बाद ओपी राजभर 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले अखिलेश यादव के साथ हो लिए। राजभर ने अखिलेश की सपा से गठबंधन कर 16 सीटों पर विधानसभा का चुनाव लड़ा और छह सीटों पर जीत का परचम लहराया।
इसलिए जरूरी हैं यूपी की राजनीति में राजभर?
यूपी की राजनीति में विकास की चाहे बातें जितनी भी कोई पार्टी कर ले, लेकिन चुनाव आते ही यह विकास पीछे छुट जाता है और सबसे बड़ा फैक्टर सामने आता है तो वह है जाति का। अगर यूपी में जाति का जुगाड़ पक्का है तो समझो जीत भी पक्की है। जाति फैक्टर के चलते ही राजभर भाजपा के लिए जरूरी हो जाते हैं और यही कारण रहा कि भाजपा ने ओपी राजभर की सुभासपा (सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी) से दोस्ती करने में कोई देरी नहीं दिखाई।
दो दर्जन से अधिक सीटों पर मजबूत वोटबैंक
एक रिपोर्ट के अनुसार, यूपी में राजभर समाज की आबादी 12 फीसदी है जबकि वहीं पूर्वांचल में राजभर जाति की आबादी 12-22 प्रतिशत है और इसी वजह से पूर्वांचल में राजभर वोटबैंक दो दर्जन से अधिक लोकसभा सीटों पर 50 हजार से करीब ढाई लाख तक हैं। इसके अतिरिक्त घोसी लोकसभा सीट सहित बलिया, चंदौली, सलेमपुर, गाजीपुर, देवरिया, आजमगढ़, लालगंज, अंबेडकरनगर, मछलीशहर, जौनपुर, वाराणसी, मिर्जापुर और भदोही राजभर बहुल क्षेत्र माने जाते हैं। यहां किसकी हार और किसकी जीत होगी इसका निर्णय राजभर समुदाय के लोग करते हैं।
अब बात फायदे की?
कोई भी गठबंधन जब भी किया जाता है तो उसमें दोनों का हित जुड़ा रहता है। राजभर के एनडीए का हिस्सा बनने से एक ओर जहां भाजपा को फायदा होने की बात कही जा रही है तो वहीं इस गठबंधन से सुभासपा को भी फायदा होगा। सुभासपा लोकसभा की तीन से चार सीटों पर अपनी दावेदारी कर सकती है। बलिया, गाजीपुर, सलेमपुर और घोसी, इन सीटों पर राजभर अपना उम्मीदवार उतारने के लिए भाजपा से ये सीटें मांग सकते हैं। वहीं राजभर को यूपी की योगी सरकार में फिर से कैबिनेट मंत्री बनाया जा सकता है।
दारा सिंह की पिछड़ों में है मजबूत पकड़
सपा छोड़ कर फिर भाजपा में आए दारा सिंह की पिछड़ी जातियों में मजबूत पकड़ है। वे लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभा के सदस्य रह चुके हैं। पूर्वांचल के कई जिलों में उनका अच्छा खासा जनाधार है। वे भाजपा के लिए फायदेमंद रहेंगे। वे केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के नजदीकी मानें जाते हैं। 2020 में बिहार के विधानसभा चुनाव से पहले शाह के साथ उन्होंने कई दिनों तक चुनाव प्रचार भी किया था। विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने से पहले उन्होंने दिल्ली में अमित शाह से मुलाकात भी की। माना जा रहा है कि दारा सिंह भाजपा के टिकट पर फिर से घोसी से लोकसभा का चुनाव लड़ सकते हैं या इसी विधानसभा सीट से उप चुनाव लड़कर यूपी की योगी सरकार में मंत्री बनाए जा सकते हैं।
भाजपा ने राजभर के साथ गठबंधन और दारा सिंह चैहान को अपने पाले में ला कर विरोधियों को तगड़ा झटका दिया है। अब देखना यह होगा की राजभर और दारा सिंह के साथ आने से भाजपा को कितना फायदा मिलता है। यह तो 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद ही पता चल पाएगा।