राजस्थान : सत्ताधारी पार्टी की हार ने सरकार को धराशाई कर दिया

Update: 2018-02-17 07:11 GMT

कपिल भट्ट

जयपुर। कहते हैं राज इकबाल से चलता है। इकबाल खत्म, तो राज गया। ऐसी ही हालत इस समय राजस्थान में भाजपा सरकार की है। प्रदेश में उसकी सरकार तो है लेकिन राज जा चुका है। राजस्थान में हाल ही में हुए दो लोकसभा और एक विधान सभा सीटों के उप चुनावों में सत्ताधारी पार्टी की हार ने सरकार को धराशाई कर दिया है।

हालांकि प्रदेश का सालाना बजट पेश करने के साथ ही मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने डैमेज कंट्रोल की कवायद शुरू कर दी है लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि सिर्फ आठ महीने में भाजपा किस तरह और किस हद तक अपने ध्वस्त किले को संवार पाती है। राजस्थान में इस साल नवंबर में विधान सभा के चुनाव होने जा रहे हैं। ऐसे में सरकार के पास समय बहुत ही कम बचा है।

राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने विधानसभा में अपनी इस सरकार का अंतिम बजट पेश करते हुए किसानों, युवाओं और गरीबों के लिए बड़े ऐलान किए गए। वसुंधरा सरकार ने 8 महीने के भीतर 1 लाख सरकारी नौकरियों और किसानों का 50 हजार रुपए तक का कर्ज माफ करने की घोषणा की। वसुंधरा के बजट में इसी साल होने वाले विधानसभा चुनावों का पूरा असर दिखाई दिया।

वसुंधरा ने बजट भाषण में किसानों का 50 हजार रुपए तक का कर्ज करने की घोषणा की। लघु और सीमांत किसानों के लिए की गई इस घोषणा से राज्य सरकार पर 8 हजार करोड़ का भार पड़ेगा। कर्ज में सितंबर 2017 तक का ब्याज भी माफ कर दिया गया। किसान कर्ज राहत आयोग भी बनाया गया है, यहां किसान मेरिट के आधार पर कर्ज माफी के लिए संपर्क कर सकते हैं। इसके अलावा कोटा और अलवर में एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी खोलने के साथ ही किसानों के लिए 2 लाख नए कृषि कनेक्शन देने की घोषणा की गई है। इसके साथ ही गरीब ,युवा-बेरोजगार, महिला और बुजुर्गों के लिए अनेक लुभावनी घोषणाएं की गईं।

देखा जाए तो वसुंधरा राजे सरकार के पास कामकाज के लिए अब छह महीने ही बचे हैं। नवंबर में होने वाले चुनावों के लिए सितंबर के महीने में आचार संहिता लगने की उम्मीद है। इसके साथ ही उसे कामकाज छोडक़र चुनावी मैदान में उतरना होगा। सरकार के सामने योजनाओं को अमलीजामा पहनाने में सबसे बड़ी दिक्कत नौकरशाही की है। तीन उप चुनावों में मिली हार के बाद भाजपा के विधायक और मंत्री तक अफसरशाही के बेलगाम होने की शिकायत खुले आम कर चुके हैं।

भाजपा विधायकों का साफ आरोप था कि नौकरशाही पार्टी की हार की एक बड़ी वजह रही है क्योंकि प्रशासनिक मशीनरी सरकार की योजनाओं को आम जनता तक पहुंचाने में नाकाम रही। ऐसे में सवाल उठता है कि जो सरकारी मशीनरी पिछले चार सालों में ही सरकार की मंशा पूरी नहीं कर पाई वह इन छह महीनों में कैसे सक्रियता से उसके चुनावी ऐजेंडे का लागू करेगी। उप चुनाव पणिाम आने के बाद से अधिकांश अफसरों ने तो कांग्रेसी नेताओं से अपने गोटियां बिठाना भी शुरू कर दिया है।

चुनाव नतीजों के बाद भाजपा विधायक ज्ञानदेव आहूजा का एक आडियो वायरल हुआ है जिसमें उन्होंने हार के लिए मुख्यमंत्री और प्रदेश पार्टी अध्यक्ष को जिम्मेदार बताते हुए दोनों को हटाने की मांग तक कर दी है।

सरकार की घोषणाएं

  • गरीबों के लिए भैरो सिंह शेखावत अंत्योदय रोजगार योजना शुरू की जाएगी।
  • राज्य भर में 1000 नए अन्नपूर्णा भंडार खोले जाएंगे।
  • हर जिले में कलेक्टर अफिस में अन्नपूर्णा रसोई खोली जाएगी।
  • सुंदर सिंह भंडारी स्वरोजगार योजना लागू होगी।
  • 50,000 परिवारों को 50,000 रुपए तक का कर्ज दिया जाएगा।
  • युवा बेरोजगारों के लिए 8 महीने के भीतर 1 लाख सरकारी नौकरियां दी जाएंगी। शिक्षा विभाग में 77,000, गृह विभाग में 5718, प्रशासनिक सुधार विभाग में 11,923 और स्वास्थ्य विभाग में 6976 पदों समेत कुल 1,08,000 पदों पर दिसंबर 2018 से पहले भर्तियां होंगी। अगले साल तक 75,000 पदों के लिए नई विज्ञप्ति जारी की जाएगी। 1000 नर्सिंग कर्मियों को भर्ती किया जाएगा।
  • महिला कर्मचारियों को 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों के देखभाल लिए 2 वर्ष की मिलेगी छुट्टी।
  • आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मानदेय बढ़ाया जाएगा।
  • मुख्यमंत्री सक्षम योजना से 5 लाख लड़कियों को फायदा पहुंचाने का लक्ष्य।
  • बजट में 80 साल से ऊपर के लोगों को रोडवेज बसों में मुफ्त यात्रा का ऐलान किया गया। इन बुजुर्गों के साथ एक व्यक्ति को आधे किराये में बसों में यात्रा की छूट दी गई है।
  • शहीद सैनिकों के आश्रितों अब 20 लाख के स्थान पर 25 लाख नकद दिया जाएगा। इसके साथ ही वसुंधरा ने अपने बजट में सौगातों की बरसात सी कर दी लेकिन इस सब के बीच सवाल यह उठता है कि क्या यह सरकार अपने बचे हुए कार्यकाल में इन योजनाओं को जमीन पर उतार सकेगी और क्या राजस्थान की आम जनता सरकार की चुनावी सौगातों पर भरोसा करेगी।

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