प्रदीप श्रीवास्तव
झांसी। बुंदेलखंड की चार लोकसभा सीटों पर सभी पार्टियां ने जोर आजमाइश कर रही हैं। 2014 के चुनाव में भाजपा ने सभी पार्टियों को शिकस्त देकर चारों सीटों पर कब्जा कर लिया था। वर्तमान में बुंदेलखंड की 19 विधानसभा सीटों पर भाजपा के विधायक हैं जो पार्टी प्रत्याशी को जिताने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। पिछली बार चारों सीटों पर करीब साढ़े आठ लाख वोटों से जीती भाजपा को इस बार काफी मशक्कत करनी पड़ सकती है। वजह है कि पिछली बार के चुनाव में निकटतम प्रतिद्वंद्वी रही सपा व बसपा इस बार मिल कर चुनौती दे रही हैं। वहीं, प्रियंका गांधी की बुंदेलखंड में जनसभाएं भीं कांग्रेस में जान फूंक रही हैं। इस सबके बावजूद भाजपा खेमा आश्वस्त है कि मोदी लहर इस बार भी सब पर भारी पड़ेगी। राष्ट्रवाद के साथ ही मोदी की स्वच्छ व दृढ़ नेतृत्व की छवि लोगों को पसंद आ रही है। भाजपा का बूथ प्रबंधन भी पहले से काफी दुरुस्त हुआ है। सभी जातियों और खासकर दलित जातियों को अपने साथ लाने के लिए पार्टी बूथ स्तर पर सम्मेलनों का आयोजन कर रही है।
चुनौती दे सकता है सपा-बसपा गठबंधन
बुंदेलखंड क्षेत्र में सात जिले - बांदा, चित्रकूट, महोबा, हमीरपुर, जालौन, झांसी और ललितपुर हैं। इनमें लोकसभा की चार एवं 19 विधानसभा की सीटें हैं। इनमें बांदा-चित्रकूट लोकसभा, महोबा-हमीरपुर-तिंदवारी लोकसभा, उरई-जालौन लोकसभा व झांसी-ललितपुर लोकसभा क्षेत्र है। वर्तमान में सभी लोकसभा व विधानसभा सीटों पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का कब्जा है। 2014 में बीजेपी को चारों सीटों पर कुल 19,19,551 वोट मिले थे। जबकि, सपा और बसपा अलग-अलग मैदान में थीं। दोनों पार्टियों को मिलाकर 18,21,027 मत मिले थे। यानी भाजपा को सपा-बसपा के मुकाबले सिर्फ 98,488 वोट ही ज्यादा मिले थे। वह भी तब जब भाजपा की ओर से झांसी-ललितपुर लोकसभा सीट पर फायरब्रांड नेता उमा भारती मैदान में थीं और मोदी लहर में भापजा को वोटों की बारिश हुई थी। लेकिन इस बार सपा-बसपा का गठबंधन भाजपा के लिए खतरे की घंटी बन गया है। क्योंकि, सभी जगहों पर सपा-बसपा के प्रत्याशी मैदान में थे।
वनवास झेल रही कांग्रेस भी मैदान में
पिछली बार इस क्षेत्र में कांग्रेस का कोई खास वजूद नहीं था। लेकिन, इस बार प्रियंका गांधी के सक्रिय राजनीति में उतरने से कांग्रेस के पुराने कार्यकर्ता भी एक बार फिर सक्रिय हो गए हैं। कांग्रेस कार्यकर्ता भाजपा खेमे में जा चुके दलितों में गैर जाटव और पिछड़ों में गैर यादव बिरादरी के मतों में सेंधमारी करने में जुट गए हैं। ऐसे में लड़ाई दिलचस्प होती दिख रही है। कांग्रेस की वजह से या तो त्रिकोणीय मुकाबला बन जाएगा, या वोटों की सेंधमारी भाजपा के लिए भारी पड़ेगी।
2014 का हाल
क्षेत्र की सभी चार लोकसभा सीटों पर भाजपा को19,19,515 और सपा-बसपा को 18,21,027 वोट मिले थे। यानी भाजपा को दोनों पार्टियों से मात्र 98,488 वोट ही ज्यादा मिले थे।
बांदा-चित्रकूट से भाजपा उम्मीदवार भैरों प्रसाद मिश्रा को 3,42,066 वोट मिले थे, जबकि बसपा के आर.के. सिंह पटेल को 2,26,278 और सपा के बाल कुमार पटेल को 1,89,730 वोट हासिल हुए थे।
महोबा-हमीरपुर-तिंदवारी सीट पर भाजपा के पुष्पेन्द्र सिंह चंदेल को 4,52,929 वोट, सपा के विशंभर प्रसाद निषाद (राज्यसभा सदस्य) को 1,87,095 और बसपा को 1,76,360 वोट हासिल हुए थे।
उरई-जालौन सीट पर भाजपा के भानुप्रताप सिंह वर्मा को 5,48,631, बसपा के बृजलाल खाबरी को 2,61,429 और सपा के घनश्याम अनुरागी को 1,80,921 वोट मिले थे।
झांसी-ललितपुर सीट पर भाजपा की उमा भारती को 5,75,889 वोट, सपा के चंद्रपाल सिंह यादव को 3,85,422 और बसपा को 2,13,792 वोट मिले थे।
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2019 के प्रत्याशी
सपा ने बांदा-चित्रकूट से इलाहाबाद के भाजपा सांसद श्यामाचरण गुप्त को व झांसी-ललितपुर से श्यामसुंदर सिंह यादव को चुनाव मैदान में उतारा है। बसपा ने महोबा-हमीरपुर से ठाकुर दिलीप कुमार सिंह को और उरई-जालौन से अजय सिंह पंकज (जाटव) को टिकट दिया है। कांग्रेस ने बांदा-चित्रकूट से ददुआ के भाई व मिर्जापुर से सपा के पूर्व सांसद बालकुमार पटेल को टिकट दिया है, जबकि महोबा-हमीरपुर-तिंदवारी से प्रीतम सिंह लोधी पर दांव लगाया है। कांग्रेस ने उरई-जालौन में बसपा के पूर्व सांसद बृजलाल खाबरी और झांसी-ललितपुर से पूर्व मंत्री और जन अधिकार मंच (पार्टी) के अध्यक्ष बाबू सिंह कुशवाहा के भाई शिवशरण सिंह कुशवाहा को चुनावी समर में उतारा है। भाजपा ने महोबा-हमीरपुर से अपने मौजूदा सांसद पुष्पेन्द्र सिंह चंदेल व उरई-जालौन से सांसद भानुप्रताप सिंह वर्मा को फिर से टिकट दिया है। वहीं, झांसी-ललितपुर से बैधनाथ ग्रुप के मालिक डॉ अनुराग शर्मा और के आर के सिंह पटेल पर दांव खेला है।
खंड-खंड बुंदेलखंड
झांसी। पिछले लोकसभा चुनाव में बुंदेलखंड को अलग राज्य बनाने का मुद्दा भाजपा सांसद उमा भारती ने जोरशोर से उठाया था लेकिन चुनाव जीतने के बाद वह इसे भूल गईं। कांग्रेस छोटे राज्यों की पक्षधर तो रही है लेकिन वह भी बुंदेलखंड को अलग राज्य बनाने के सवाल पर बगलें झांकने लगती है। समाजवादी पार्टी शुरू से ही अलग बुंदेलखंड के खिलाफ खड़ी रही है। बसपा ने तो बकायदा केंद्र सरकार को अलग राज्य बनाने का प्रस्ताव तक भेज दिया था लेकिन मायावती अलग राज्य के प्रस्ताव से आगे नहीं बढ़ीं। बुंदेलखंड को अलग राज्य बनाने की मांग लंबे समय से की जाती रही। सियासत होती रही है, वादे किए जाते रहे हैं लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात है। अब अलग बुंदेलखंड का नारा भी ठंडे बस्ते में चला गया है। अब कोई दल इसे अपना चुनावी मुद्दा नहीं बनाना चाहता है। उत्तर प्रदेश के बांदा, हमीरपुर, महोबा, चित्रकूट, जालौन, झांसी, ललितपुर और मध्य प्रदेश के टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना, सागर, दमोह और दतिया जिले में विभाजित बुंदेलखंड को पृथक राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग दशकों साल पुरानी है। दोनों प्रदेशों को मिलाकर कुछ 9 लोकसभा और 41 विधानसभा क्षेत्र हैं।
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1955 में गठित प्रथम राज्य पुनर्गठन आयोग ने बुंदेलखंड को अलग राज्य का दर्जा देने की सिफारिश की थी। बुंदेलखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक शंकरलाल ने पहली बार अलग राज्य की मांग पर 1989 में आंदोलन शुरू किया था। तबसे लगातार बांदा, झांसी, महोबा और हमीरपुर के समाजसेवी इसके समर्थन में आंदोलन करते रहे हैं। बुंदेलखंड कांग्रेस के संस्थापक और फिल्म अभिनेता राजा बुंदेला ने बुंदेलखंड क्षेत्र के सभी 13 जिलों में पद यात्रा की थी। बाद में वह इसी मांग की शर्त पर भाजपा में शामिल भी हुए और तबसे वह इस मुद्दे पर चुप हो गए हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में झांसी से जीतीं उमा भारती ने पूरे पांच साल बुंदेलखंड बनाने की दिशा में कोई पहल नहीं की। झांसी - ललितपुर लोकसभा क्षेत्र के पूर्व सांसद प्रदीप जैन आदित्य कहते हैं कि 'अगर केंद्र में अगली सरकार कांग्रेस की अगुवाई में बनती है तो बुंदेलखंड को अलग राज्य घोषित कराने की पहल जरूर की जाएगी।
बुंदेलखंड निर्माण मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष भानू सहाय कहते हैं कि देश में दस ऐसे राज्य हैं जिनका क्षेत्रफल बुंदेलखंड से बहुत कम है। जनसंख्या और क्षेत्रफल का आधार लेकर बुंदेलखंड राज्य की मांग को नकारा नहीं जा सकता। 13 जिलों वाले बुंदेलखंड का क्षेत्रफल करीब 70 हजार वर्ग किलोमीटर है और जनसंख्या दो करोड़ के आस-पास है, जो जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, सिक्किम, हिमाचल प्रदेश और गोवा जैसे राज्यों से अधिक है। बिना बुुंदेलखंड राज्य को अलग बनाए क्षेत्र का विकास संभव
नहीं है।