Anti-Conversion Bill: जबरन धर्मांतरण के खिलाफ कानून लाएगी केंद्र सरकार, SC बता चुका है इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा

Anti-Conversion Bill: केंद्र सरकार अब जबरन धर्मांतरण के खिलाफ कठोर कानून लाने पर गंभीरता से विचार कर रही है। बताया जा रहा है कि आगामी शीतकालीन सत्र में सरकार संसद में इसे जुड़े कानून को पेश कर सकती है।

Written By :  Krishna Chaudhary
Update:2022-11-28 16:10 IST

Anti-Conversion Bill। (Social Media)

Anti-Conversion Bill: हाल के दिनों में जबरत धर्मांतरण के मामले में काफी इजाफा हुआ है। पुलिस के सामने कई ऐसे मामले सामने आए जिसमें एक धर्म के कुछ लोगों ने दूसरे धर्म के लोगों को डरा, धमकाकर या लालच एवं धोखे में रखकर धर्म बदलवाया है। पुलिस के समक्ष आए मामलों में देखा गया है कि कुछ लोग अपनी असल पहचान छिपाकर दूसरे धर्म की युवती को इश्क में फंसाकर शादी करते हैं। और फिर बाद में उसपर धर्म परिवर्तन का दवाब बनाते हैं।

विभिन्न राज्यों में जबरन धर्मांतरण के खिलाफ सख्त कानून बनाया गए गए हैं। लेकिन केंद्र के स्तर पर ऐसा कोई कठोर कानून नहीं है, जो ऐसे धार्मिक गुटों पर नकेल कसता हो। सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के मुताबिक, केंद्र सरकार अब जबरन धर्मांतरण के खिलाफ कठोर कानून लाने पर गंभीरता से विचार कर रही है। बताया जा रहा है कि आगामी शीतकालीन सत्र में सरकार संसद में इसे जुड़े कानून को पेश कर सकती है।

धर्मांतरण के कारण सांप्रदायिक तनाव में इजाफा

धर्मांतरण में इजाफा समाज में नए सिर से सांप्रदायिक तनाव को जन्म दे रहा है। पंजाब की घटना सबसे ताजा उदाहरण है। जहां ईसाई मिशनरियों की अति सक्रियता के कारण सिख समाज के एक तबके में भारी आक्रोश है। हिंसक घटनाएं तक हो चुकी हैं। नाराज सिख संगठन चर्चों को निशाना बना चुके हैं। पंजाब में ईसाई धर्म की आबादी 1 से 2 प्रतिशत के बीच है। पंजाब जैसे सीमाई सूबे में जहां खालिस्तानी गतिविधियों में फिर से इजाफा देखने को मिल रहा है, वहां ऐसी घटना चिंताजनक है।

केंद्रीय स्तर पर कानून की जरूरत क्यों

कई राज्यों ने हाल के दिनों में अपने स्तर पर जबरन धर्मांतरण के खिलाफ कठोर कानून बनाया है। ऐसा नहीं है कि इसका कोई प्रभाव नहीं है। किंतु केंद्र स्तर पर एक कानून न होने के कारण कई राज्यों में गैर – कानूनी धर्मांतरण के खिलाफ कार्रवाई नहीं हो पाती। इसलिए आवश्यक है कि धर्मांतरण को लेकर केंद्र स्तर पर कोई कानून बने।

धर्मांतरण के खिलाफ कठोर कानून बनाने वाले राज्य

साल 1954 से ही संसद में धर्मांतरण के खिलाफ कठोर कानून बनाने को लेकर प्राइवेट मेंबर बिल पेश होते रहे हैं। लेकिन कोई पारित नहीं हुआ। धर्मांतरण पर सबसे पहले ओडिशा ने 1967 में कानून बनाया था। उसके बाद 1968 में मध्य प्रदेश, 1978 में अरूणाचल प्रदेश, 2002 में तमिलनाडु और 2008 में राजस्थान में कानून लाया गया। हालांकि, ईसाईंयों के तीखे विरोध के आगे तमिलनाडु में सरकार झुक गई और 2006 में इस कानून को वापस ले लिया।

गुजरात में 2003, छत्तीसगढ़ में 2006, हिमाचल प्रदेश में 2006 और 2019, झारखंड में 2017 और उत्तराखंड में साल 2018 में धर्म परिवर्तन पर रोक लगाने के लिए कानून बने। इसके बाद साल 2020 और 2021 में यूपी और एमपी की बीजेपी सरकार ने नए सिरे से धर्मांतरण संबंधी कानून बनाए, जिसमें काफी सख्त प्रावधान किए गए हैं।

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट भी 14 नवंबर 2022 को सुनवाई के दौरान जबरन धर्मांतरण को राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ नागरिकों के धर्म और अंतरात्मा की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के लिए खतरा बताया था। 

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