Moon South Pole: आखिर क्या है चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव का रहस्य?
Moon South Pole: जानकारी के अनुसार, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की बड़ी अहमियत ये है कि इस क्षेत्र के साथ चंद्रमा पर इंसानों की बस्ती बसाने के तार जुड़े हुए हैं।
Moon South Pole: भारत ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के क्षेत्र में चंद्रयान उतार कर इतिहास रचा है क्योंकि चंद्रमा के इस अनजाने और रहस्यमय क्षेत्र में कोई भी अन्तरिक्ष यान अभी तक नहीं उतरा था। नासा ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र को "रहस्य, विज्ञान और गूढ़ता" से भरा करार दिया है। क्योंकि इसके बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। अभी तक की जानकारी के अनुसार, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की बड़ी अहमियत ये है कि इस क्षेत्र के साथ चंद्रमा पर इंसानों की बस्ती बसाने के तार जुड़े हुए हैं। दरअसल, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव में बर्फ का समंदर है। चूँकि यहाँ बर्फ है सो इसका मतलब पानी हुआ और जब पानी है तो इंसान के जिन्दगी का सबसे महत्वपूर्ण अवयव की मौजूदगी है। यही है दक्षिणी ध्रुव की सबसे बड़ी खासियत।
चंद्र दक्षिणी ध्रुव
- चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर, सूर्य क्षितिज के नीचे या ठीक ऊपर मंडराता है, जिससे सूर्य की रोशनी के दौरान तापमान 54 डिग्री सेल्सियस से ऊपर हो जाता है। लेकिन रोशनी की इस अवधि के दौरान भी चंद्रमा के विशाल ऊंचे पहाड़ काली छाया डालते हैं जिससे गहरे गड्ढों की गहराइयों में शाश्वत अंधेरा बना रहता है। इनमें से कुछ क्रेटर स्थायी रूप से छाया वाले क्षेत्रों का घर हंड जहां अरबों वर्षों में सूरज की रोशनी नहीं देखी गई है और तापमान माइनस 203 डिग्री तक कम रहता है। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में क्रेटर क्रेटर ठंडे जाल होते हैं जिनमें प्रारंभिक सौर मंडल से संबंधित हाइड्रोजन, पानी की बर्फ और अन्य वाष्पशील पदार्थों का जीवाश्म रिकॉर्ड होता है। इसके विपरीत चंद्रमा के उत्तरी ध्रुव क्षेत्र में बहुत कम क्रेटर हैं।
- चंद्र दक्षिणी ध्रुव पर एप्सिलॉन पीक जैसे पहाड़ हैं जो पृथ्वी के किसी भी पर्वत से ऊंचे हैं।
- चंद्रमा के अधिकांश ध्रुवीय क्षेत्र पृथ्वी से दिखाई नहीं देते हैं, इसलिए चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के बारे में हमारा ज्ञान अंतरिक्ष यान से आता है। चंद्र टोही ऑर्बिटर (एलआरओ) 2009 से ध्रुवों का डेटा एकत्र कर रहा है, और ध्रुवीय पर्यावरण के बारे में हम जो कुछ भी समझते हैं वह रोशनी (छवियों) और स्थलाकृति (सतह की विशेषताओं) से प्राप्त होता है। अब चंद्रयान का प्रज्ञान रोवर नई जानकारियाँ उपलब्ध कराएगा।
- चंद्रमा में जहाँ हमेशा अन्धेरा रहता है वहां पानी के अणु कम तापमान के कारण जम जाते हैं और चंद्रमा की मिट्टी में मिल जाते हैं। समय के साथ, इस क्षेत्र में जल धारण करने वाली मिट्टी के महत्वपूर्ण क्षेत्र निर्मित हो गए हैं।
- जल-बर्फ भविष्य की खोज का एक प्रमुख कारक है, इसका इस्तेमाल वायु, पानी या रॉकेट प्रोपल्शन के रूप में किया जा सकता है।
- कई देश चंद्रमा पर नए मानव मिशन की योजना बना रहे हैं और अंतरिक्ष यात्रियों को पीने और स्वच्छता के लिए पानी की आवश्यकता होगी।
- पृथ्वी से चंद्रमा तक उपकरण पहुंचाना कोई आसान काम नहीं है। उपकरण जितना बड़ा होगा, चंद्रमा पर सफल लैंडिंग के लिए रॉकेट और ईंधन भार की उतनी ही अधिक जरूरत होगी। नई कमर्शियल अंतरिक्ष कंपनियां चंद्रमा पर एक किलोग्राम पेलोड ले जाने के लिए लगभग 1 मिलियन डॉलर का शुल्क लेती हैं। यानी एक लीटर पीने का पानी 1 मिलियन डॉलर का पड़ेगा! इसीलिए अंतरिक्ष उद्यमी चंद्रमा की बर्फ को अंतरिक्ष यात्रियों को स्थानीय रूप से प्राप्त पानी की आपूर्ति करने के अवसर के रूप में देखते हैं।
- एक तरफ दक्षिणी ध्रुव के क्रेटरों में हमेशा अन्धेरा रहता हैं वहीँ दक्षिणी ध्रुव के कुछ छोर लंबे समय तक यानी लगातार 200 पृथ्वी दिनों तक सूर्य के प्रकाश में नहाए रहते हैं। ऐसे में चंद्रमा पर उपलब्ध सौर ऊर्जा एक अन्य संसाधन है जिसे उपयोग में लाया जा सकता है।
- चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव भी सौर मंडल के एक विशाल प्रभाव क्रेटर के किनारे पर स्थित है। 2,500 किमी के व्यास और 8 किमी तक की गहराई तक फैला यह गड्ढा सौर मंडल की सबसे प्राचीन विशेषताओं में से एक है। इस बड़े गड्ढे के रहस्य अभी पता नहीं हैं।