Chaudhary Charan Singh: पीएम के रूप में संसद का कभी नहीं किया सामना, इंदिरा गांधी ने कर दिया था बड़ा खेल

Chaudhary Charan Singh: किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले चौधरी चरण सिंह का जीवन काफी संघर्षपूर्ण था। आगरा विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री ली थी और फिर 1928 में गाजियाबाद में वकालत शुरू की।

Written By :  Anshuman Tiwari
Update: 2024-02-09 07:44 GMT

चौधरी चरण सिंह (photo: social media )

Chaudhary Charan Singh Birth Anniversary: देश के दिग्गज किसान और जाट नेता माने जाने वाले चौधरी चरण सिंह ने लंबे सियासी संघर्ष के बाद प्रधानमंत्री पद तक का सफर तय किया था। 23 दिसंबर 1902 को नूरपुर में पैदा होने वाले चौधरी चरण सिंह 28 जुलाई 1979 को देश के पांचवें प्रधानमंत्री बने थे मगर इंदिरा गांधी के समर्थन वापस ले लेने के कारण उन्हें लोकसभा का सामना किए बिना ही प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने को मजबूर होना पड़ा था। प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने संसद का कभी सामना नहीं किया। बाद में लोकसभा भंग होने पर देश में मध्यावधि चुनाव हुआ जिसमें बहुमत हासिल करते हुए इंदिरा गांधी देश की फिर प्रधानमंत्री बनने में कामयाब हुईं।

आजादी के आंदोलन में काटी थी जेल

किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले चौधरी चरण सिंह का जीवन काफी संघर्षपूर्ण था। जीवन की शुरुआती मुश्किलों का डटकर मुकाबला करने के बाद उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री ली थी और फिर 1928 में गाजियाबाद में वकालत शुरू की। उस समय देश में आजादी के लिए आंदोलन काफी तेज हो चुका था।

1929 में कांग्रेस ने लाहौर में पूर्ण स्वराज्य का ऐलान कर दिया था। चौधरी चरण सिंह ने भी गाजियाबाद में कांग्रेस कमेटी का गठन किया। हिंडन नदी के किनारे नमक बनाने की कोशिश के बाद उन्हें छह महीने जेल की सजा काटनी पड़ी। जेल से निकलने के बाद वे पूरी तरीके से आजादी के आंदोलन में कूद पड़े।

1937 में पहली बार बने विधायक

1937 के चुनाव में वे बागपत से विधानसभा के लिए चुने गए। उन्होंने जीवन भर किसानों की दशा सुधारने के लिए काफी काम किए। 1939 में कर्जा माफी विधेयक पारित कराकर उन्होंने किसानों के खेतों की नीलामी रुकवाई। उनकी ओर से तैयार किया गया जमीदारी उन्मूलन विधायक राज्य के कल्याणकारी सिद्धांत पर आधारित था। किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने 1954 में उत्तर प्रदेश भूमि संरक्षण कानून भी पारित कराया। 3 अप्रैल 1967 को उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की कमान भी संभाली। वे 17 अप्रैल 1968 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे।

1967 में बनाया भारतीय क्रांति दल

चौधरी चरण सिंह ने 1952,1962 और 1967 में कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव जीता। गोविंद बल्लभ पंत की सरकार में पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी रहे। बाद में संपूर्णानंद और चंद्रभानु गुप्ता की सरकार में भी वे मंत्री बने। 1967 में कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा देने के बाद उन्होंने भारतीय क्रांति दल के नाम से अपनी अलग पार्टी बना ली। जब 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया तो चरण सिंह को भी गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया।

1977 में मिली सत्ता मगर जल्द गिर गई सरकार

चरण सिंह के साथ ही देश के अन्य विपक्षी नेताओं को भी गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया। आपातकाल और इंदिरा गांधी के इस तानाशाहीपूर्ण कदम के खिलाफ देशभर में व्यापक गुस्सा भड़क उठा और 1977 के आम चुनाव में इंदिरा गांधी को हार का मुंह देखना पड़ा। 1977 में देश में जनता पार्टी की सरकार बनी। मोरारजी देसाई की अगुवाई में बनी इस सरकार में चौधरी चरण सिंह को उपप्रधानमंत्री बनाने के साथ ही गृह मंत्रालय की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गई।

जनता पार्टी की सरकार के गठन के कुछ समय बाद ही आंतरिक कलह तेज हो गई। कई दलों को मिलाकर जनता पार्टी का गठन किया गया था और सरकार बनने के बाद इन दलों के बीच आंतरिक संघर्ष तेज हो गया। दोहरी सदस्यता के मुद्दे को लेकर संकट काफी गहरा हो गया और आखिरकार मोरारजी देसाई की सरकार गिर गई।

पीएम तो बने मगर नहीं किया संसद का सामना

मोरारजी की सरकार गिरने के बाद कांग्रेस के समर्थन से 28 जुलाई 1979 को चौधरी चरण सिंह देश के पांचवें प्रधानमंत्री बने। उन्हें 20 अगस्त तक लोकसभा में अपना बहुमत साबित करना था मगर 19 अगस्त को ही इंदिरा गांधी ने बड़ा सियासी खेल करते हुए समर्थन वापस लेने का बड़ा ऐलान कर दिया।

चौधरी चरण सिंह को संसद का एक दिन भी सामना किए बगैर प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। जिंदगी भर किसान मुद्दों की लड़ाई लड़ने वाले चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री के रूप में कोई महत्वपूर्ण फैसला नहीं ले पाए। बाद में 19 मई 1987 को चौधरी चरण सिंह का निधन हो गया। उनके निधन के बाद उनके बेटे चौधरी अजित सिंह ने उनकी विरासत को संभाला। चौधरी अजित सिंह का भी निधन हो चुका है जिसके बाद उनके बेटे जयंत चौधरी अब राष्ट्रीय लोकदल की कमान संभाल रहे हैं।

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