Manmohan Singh Death : अर्थशास्त्री से प्रधानमंत्री तक का सफर, देश में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत का श्रेय

Manmohan Singh Death : डॉ मनमोहन सिंह ने 2004 से 2014 तक प्रधानमंत्री के रूप में देश की कमान संभाली। वे देश के पहले सिख प्रधानमंत्री थे। वे पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और पीएम नरेंद्र मोदी के बाद चौथे सबसे लंबे समय तक इस पद पर रहने वाले नेता थे।

Report :  Anshuman Tiwari
Update:2024-12-26 23:15 IST

Manmohan Singh Death : देश के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह का आज दिल्ली एम्स में निधन हो गया। उन्होंने एक अर्थशास्त्री से देश के प्रधानमंत्री पद तक का सफर तय किया था। उन्होंने लगातार 10 वर्षों तक प्रधानमंत्री के रूप में देश की कमान संभाली। उन्हें देश में आर्थिक उदारीकरण के शुरुआत का श्रेय दिया जाता है।

रिजर्व बैंक के गवर्नर और देश के वित्त मंत्री के रूप में उन्होंने देश को आर्थिक संकट से बाहर निकालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में उनका योगदान काफी महत्वपूर्ण माना जाता रहा है।

देश के पहले सिख प्रधानमंत्री

डॉ मनमोहन सिंह ने 2004 से 2014 तक प्रधानमंत्री के रूप में देश की कमान संभाली। वे देश के पहले सिख प्रधानमंत्री थे। वे पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और पीएम नरेंद्र मोदी के बाद चौथे सबसे लंबे समय तक इस पद पर रहने वाले नेता थे। उनके बारे में एक यह भी तथ्य काफी महत्वपूर्ण है कि वे जवाहरलाल नेहरू के बाद पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद फिर से चुने जाने वाले पहले प्रधानमंत्री भी थे।

पीएम बनने से पहले कई महत्वपूर्ण पदों पर काम

अपने लंबे सार्वजनिक जीवन के दौरान डॉक्टर मनमोहन सिंह ने कई महत्वपूर्ण पदों पर काम किया। 1970 और 1980 के दशक के दौरान मनमोहन सिंह ने मुख्य आर्थिक सलाहकार (1972-1976), रिजर्व बैंक के गवर्नर (1982-1985) और योजना आयोग के प्रमुख (1985-1987) के रूप में काम किया।

1972 में वे वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार बने और 1976 में वित्त मंत्रालय में सचिव। 1980-1982 में वे योजना आयोग में थे और 1982 में उन्हें तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के अधीन भारतीय रिजर्व बैंक का गवर्नर नियुक्त किया गया। उन्होंने 1985 तक इस महत्वपूर्ण पद की जिम्मेदारी संभाली।

वे 1985 से 1987 तक योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे। योजना आयोग में अपने कार्यकाल के बाद वे 1987 से नवंबर 1990 तक जिनेवा (स्विट्जरलैंड) मुख्यालय वाले एक स्वतंत्र आर्थिक नीति थिंक टैंक, साउथ कमीशन के महासचिव थे।

मनमोहन सिंह सिंह नवंबर 1990 में जिनेवा से भारत लौट आए और चंद्रशेखर के कार्यकाल के दौरान आर्थिक मामलों पर भारत के प्रधानमंत्री के सलाहकार के रूप में कार्यभार संभाला। 1991 में उन्होंने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष के रूप में भी काम किया।

देश में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत

1991 में भारत गंभीर आर्थिक संकट के दौर में फंसा हुआ था और उस समय नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने डॉ मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री पद की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी। देश के वित्त मंत्री के रूप में डॉक्टर मनमोहन सिंह की ओर से 1991-92 में पेश किया गया बजट काफी चर्चाओं में रहा था। उस समय देश गंभीर वित्तीय संकट से जूझ रहा था। मनमोहन सिंह ने बतौर अर्थशास्त्री अपनी काबिलियत का परिचय देते हुए देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए महत्वपूर्ण ऐलान किए थे।

उन्होंने आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत की जिसके तहत व्यापार में सरकार का दखल काम करते हुए आर्थिक आजादी को बढ़ावा दिया गया। उन्होंने विदेश से आने वाले सामानों पर कस्टम ड्यूटी 220 से घटकर 150 फ़ीसदी कर दी जिससे भारतीय व्यापार वैश्विक स्तर पर अधिक प्रतिस्पर्धी हो गया।

उन्होंने लाइसेंस राज को खत्म करते हुए दुनिया भर में भारत की मजबूत और छवि पेश की। लाइसेंस राज खत्म होने से नौकरशाही का दखल भी घट गया और अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में काफी मदद मिली। भारतीय अर्थव्यवस्था में दुनिया का भरोसा बढ़ने से विदेशी निवेश भी बढ़ा जिससे भारत को आर्थिक शक्ति बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त हुआ।

10 साल तक संभाली देश की कमान

1998 से 2004 तक अटल सरकार के समय मनमोहन सिंह ने राज्यसभा में विपक्ष के नेता पद की जिम्मेदारी संभाली। 2004 के लोकसभा चुनाव में जब संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन को जीत हासिल हुई तो सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह का ही चुनाव किया। 2009 के लोकसभा चुनाव में भी यूपीए को जीत हासिल हुई और अगले 5 वर्षों तक डॉक्टर मनमोहन सिंह ने फिर प्रधानमंत्री के रूप में देश का नेतृत्व किया। उनके कार्यकाल के दौरान देश की अर्थव्यवस्था को काफी मजबूती मिली और इस मामले में उनका योगदान आज भी काफी अहम माना जाता रहा है।

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