Chaudhary Charan Singh: जब रिश्वत देकर पीएम ने दर्ज कराई थी रिपोर्ट, बाद में मचा हड़कंप पूरा थाना हो गया सस्पेंड

Chaudhary Charan Singh Death Anniversary: 1987 में आज ही के दिन चौधरी साहब का निधन हुआ था। चौधरी चरण सिंह देश के ऐसे प्रधानमंत्री थे जिन्हें हमेशा उनकी सादगी के लिए जाना जाता है।

Update: 2023-05-29 08:55 GMT
Chaudhary Charan Singh Death Anniversary (photo: social media )

Chaudhary Charan Singh Death Anniversary: उत्तर प्रदेश की सियासत से जिन नेताओं ने ऊंचा सियासी मुकाम हासिल किया, उनमें चौधरी चरण सिंह का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। जमीन से उठकर सियासत की बुलंदी तक पहुंचने वाले चौधरी साहब ने पूरे जीवन भर किसानों, गरीबों और समाज के कमजोर वर्गों की लड़ाई लड़ी। क्रिसमस से दो दिन पूर्व 23 दिसंबर 1902 को पैदा होने वाले चरण सिंह का ताल्लुक किसान परिवार से था और किसानों के प्रति उनके मन में बहुत हमदर्दी थी। 1987 में आज ही के दिन चौधरी साहब का निधन हुआ था। चौधरी चरण सिंह देश के ऐसे प्रधानमंत्री थे जिन्हें हमेशा उनकी सादगी के लिए जाना जाता है। सियासी हलकों में चौधरी साहब के कई किस्से मशहूर हैं मगर उनकी जिंदगी से जुड़े एक यादगार किस्से को आज भी पुराने लोग याद करते हैं।

1979 में किसानों की एक शिकायत का निस्तारण करने के लिए चौधरी चरण सिंह मैला कपड़ा पहने हुए किसान की वेशभूषा में इटावा के ऊसराहार थाने में रपट लिखाने के लिए पहुंच गए थे। थाने पर तैनात पुलिसकर्मी चरण सिंह को इस साधारण वेशभूषा में पहचान नहीं सके और उनसे रिश्वत की मांग कर दी। बाद में असलियत पता लगने पर हड़कंप मच गया और पूरा ऊसराहार थाना सस्पेंड कर दिया गया था।

किसानों ने की थी चौधरी साहब से शिकायत

चौधरी चरण सिंह को भारतीय सियासत के सादगी पसंद नेताओं में शुमार किया जाता रहा है। उन्हें दिखावे के साथ ही फिजूलखर्ची से काफी नफरत थी। 1979 में देश के प्रधानमंत्री पद की कुर्सी पर पहुंचने वाले चौधरी चरण सिंह हमेशा आम लोगों की बात सुनने को तत्पर रहते थे। यही कारण था कि कई मौकों पर वे सुरक्षा का तामझाम छोड़कर आम लोगों के बीच पहुंच जाया करते थे। उनकी यह सादगी लोगों को काफी पसंद आया करती थी।

1979 में प्रधानमंत्री बनने के बाद चरण चौधरी चरण सिंह के पास किसानों की कई शिकायतें पहुंचीं। किसानों की शिकायत थी कि पुलिस और ठेकेदारों की ओर से घूस लेकर उन्हें परेशान किया जा रहा है। किसानों की इन शिकायतों को लेकर चौधरी चरण सिंह काफी गंभीर थे और उन्होंने खुद ही इस शिकायत की सच्चाई जानने और इसका समाधान खोजने की कोशिश की।

रिश्वत देने के बाद थाने में लिखी गई रिपोर्ट

1979 के अगस्त महीने के दौरान शाम के वक्त मैली-कुचैली धोती पहनकर एक बुजुर्ग किसान उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के ऊसराहार थाने में अपनी शिकायत लेकर पहुंचा। किसान ने थाने में अपने बैल के चोरी हो जाने की रिपोर्ट दर्ज कराने की कोशिश की। थाने में मौजूद दरोगा रुआबी भरे अंदाज में किसान से उल्टे-सीधे सवाल पूछने लगा।

दरोगा ने बिना रिपोर्ट लिखे किसान को उल्टे पांव लौटा दिया। बुजुर्ग किसान के लौटते समय पीछे से एक सिपाही बोला कि थोड़ा खर्चा पानी देने पर रिपोर्ट दर्ज कर ली जाएगी। आखिरकार 35 रुपये की रिश्वत पर रिपोर्ट लिखे जाने की बात तय हुई। बुजुर्ग किसान की ओर से पैसा दिए जाने के बाद रिपोर्ट लिख ली गई।

प्रधानमंत्री की मुहर देखकर मचा हड़कंप

रिपोर्ट दर्ज करने के बाद थाने के मुंशी ने बुजुर्ग किसान से सवाल पूछा कि वे हस्ताक्षर करेंगे या अंगूठा लगाएंगे। किसान ने हस्ताक्षर करने की बात कही तो मुंशी ने हस्ताक्षर के लिए कागज बढ़ा दिया। बुजुर्ग किसान ने हस्ताक्षर के लिए पेन निकालने के साथ स्याही वाला पैड उठाया तो मुंशी भी हैरान रह गया। बुजुर्ग किसान ने हस्ताक्षर करने के साथ कुर्ते की जेब से मुहर निकालकर थाने के कागज पर ठोक दी।

मुहर पर लिखा हुआ था प्रधानमंत्री भारत सरकार। कागज पर प्रधानमंत्री की मुहर देखकर पूरे थाने में हड़कंप मच गया। वह बुजुर्ग किसान और कोई नहीं बल्कि भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह थे। रिश्वत लेने के मामले में बाद में पूरे ऊसराहार थाने को सस्पेंड कर दिया गया।

शिकायत की सच्चाई जानने का अलग अंदाज

दरअसल चौधरी चरण सिंह किसानों की ओर से मिल रही शिकायतों की सच्चाई जानने के लिए खुद थाने पर पहुंचे थे। उन्होंने अपने गाड़ियों के काफिले को थाने से कुछ दूरी पर खड़ा कर दिया था। अपने कपड़ों पर मिट्टी लगाने के बाद वे अकेले ही थाने पर शिकायत दर्ज कराने के लिए पहुंचे थे। इस घटनाक्रम के दौरान उन्हें इस बात का एहसास हो गया कि किसानों की शिकायत में पूरी तरह सच्चाई है।

वैसे प्रधानमंत्री के रूप में चौधरी चरण सिंह का सफर काफी संक्षिप्त रहा। बाद में 1980 में हुए लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी ने सत्ता में वापसी कर ली थी। इसके बाद चौधरी चरण सिंह सत्ता में वापसी करने में कामयाब नहीं हो सके और 29 मई 1987 को उनका निधन हो गया।

बेटे के बाद अब पोता सियासी मैदान में सक्रिय

चौधरी चरण सिंह ने अपने जीवनकाल में ही बेटे अजित सिंह को सियासी मैदान में उतार दिया था। अजित सिंह 1980 में सियासी मैदान में सक्रिय हुए और 1986 में पहली बार राज्यसभा के सदस्य बनकर संसद में पहुंचे। अपने सियासी जीवन के दौरान अजित सिंह ने छह बार लोकसभा का चुनाव जीता और केंद्र सरकार में विभिन्न मंत्रालयों का कामकाज संभाला।

1996 में जनता दल से अलग होने के बाद उन्होंने राष्ट्रीय लोकदल की नींव रखी। 2021 में चौधरी अजित सिंह के निधन के बाद अब राष्ट्रीय लोकदल की कमान उनके बेटे जयंत चौधरी के हाथों में है। उत्तर प्रदेश की सियासत में राष्ट्रीय लोकदल ने इन दिनों समाजवादी पार्टी से गठबंधन कर रखा है। सपा और रालोद की ओर से प्रदेश में भाजपा को कड़ी चुनौती देने की कोशिश की जा रही है।

Tags:    

Similar News