ये चीन की चाल: नेशनल हाईवे 219 को बचाने के लिए जुटा है देश

लद्दाख या चीन जिसे अकसाई चिन कहता है वो कोई मौज मस्ती की जगह नहीं है। ये पूरा इलाका दुर्गम, ठंडा और निर्जन है।

Update: 2020-06-17 09:23 GMT

लखनऊ: लद्दाख या चीन जिसे अकसाई चिन कहता है वो कोई मौज मस्ती की जगह नहीं है। ये पूरा इलाका दुर्गम, ठंडा और निर्जन है। पहाड़ों, घाटियों से घिरा हुआ, बंजर और सूनसान। 14 हजार फुट की ऊंचाई जहां सांस लेने में दिक्कत होती है। ब्रिटिश इतिहासकार नेविल मैक्सवेल ने अपनी किताब ‘इंडिया चाइना वार’ में इस इलाके के बारे में लिखा है – ये नो मैंस लैंड है। यहाँ कुछ उगता नहीं है और कोई जीव जन्तु नहीं रहता। गर्मियों के मौसम में भी यहाँ हाड़ जमा देने वाली ठंड रहती है।

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तो फिर इस इलाके में आखिर चीन का इतना इंटरेस्ट क्यों है?

यहीं है भारत और चीन की वास्तविक नियंत्रण रेखा पर स्थित गलवान घाटी। और यहाँ से हो कर गुजरती है चीन की नेशनल हाईवे 219। भारत-चीन के विवादित क्षेत्र से गुजरने वाली इस सड़क का निर्माण 1951 में शुरू हुआ था और इसी सड़क के निर्माण को लेकर 1962 के युद्ध की चिंगारी भड़की थी। बहरहाल, 2013 में इस सड़क का निर्माण पूरा हो गया। ये 10 हजार किलोमीटर लंबी हाईवे है जो चीन की पूरी पश्चिमी और दक्षिणी सीमा से हो कर गुजरती है और पाकिस्तान की सीमा तक जाती है। 2013 के पहले ये सिर्फ 2342 किलोमीटर लंबी थी। हाईवे 219 चीन के शिंजियांग और तिब्बत को लिंक करती है और ये दोनों ही इलाके चीन के लिए उथलपुथल वाले हैं। शिंजियांग में ऊईघुर मुसलमानों का मसला चीन के लिए सिरदर्द बना हुआ है। दोनों इलाकों पर चीन का सेना के बल पर कब्जा है।

भारत की सड़क

जहां से हाईवे 219 गुजरती है उसके पास तक भारत की की भी एक ऑल वेदर यानी हर मौसम में काम लायक सड़क जाती है। इसका मकसद है कि सीमा पर तैनात टुकड़ियों को हर मौसम में सहायता पहुंचाई जा सके। विश्व की सबसे ऊंची हवाई पट्टी दौलत बेग ओल्दी से ये हाईवे जुड़ी हुई है। भारत ने वस्तिविक नियंत्रण रेखा से साढ़े सात किमी दूर गलवान नाले पर एक पुल भी बनाया है। चीन को ये सब बर्दाश्त नहीं हो रहा है। उसे लगता है कि भारत यहाँ अपना नेटवर्क बढ़ा कर अकसाई चिन पर चीनी कब्जे को चुनौती दे रहा है।

चीन को आशंका

गलवान घाटी गुलाम रसूल गलवान के नाम पर है जिसने 19वीं सदी में पश्चिमी अन्वेषकों को तिब्बत और चीन के शिंजियांग ऊईघुर क्षेत्र में पहुँचने के लिए गाइड का काम किया था। गलवान घाटी 1962 के युद्ध के बाद से शांत रही है। लेकिन अचानक अब चीन यहाँ धमक दिखा रहा है। भारत द्वारा यहाँ सड़कों का नेटवर्क बनाने के अलावा एक अन्य वजह है जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 का हटना और इस राज्य को दो केंद्र शासित क्षेत्रों में बाँट दिया जाना है।

पाकिस्तान के साथ चीन भी भारत के इस मूव का विरोध करता रहा है। चीन को लगता है कि जम्मू-कश्मीर से लद्दाख को अलग करके नया केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाना विवादित अकसाई चिन पर भारत के दावे को कहीं न कहीं मजबूती प्रदान करता है। चीन ने इस कारण सार्वजनिक रूप से कहा था कि भारत ने अपने घरेलू क़ानूनों को एकपक्षीय तारीकसे से बादल कर चीन की संप्रभुता को चोट पहुंचाई है।

6 अगस्त 2019 को गृह मंत्री अमित शाह ने लोक सभा में ऐलान किया था कि न सिर्फ सम्पूर्ण जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है बल्कि दो नए केंद्र शासित प्रदेशों में पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाला इलाका, पाकिस्तान द्वारा अवैध तारीक से चीन को दिया गया इलाका और सम्पूर्ण अकसाई चिन भी शामिल हैं। चीन को ये ऐलान बहुत नागवार गुजरा है।

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चीन की चाल

भारत के कदमों से आशंकित चीन की रुचि गलवान घाटी में अचानक बढ़ गई है। चीन को लगता है अपनी सेना के बल पर वह शिंजियांग-तिब्बत हाईवे और अकसाई चिन के प्रति किसी भी संभावित खतरे को टाल सकता है। ऐसे में गलवान घाटी पर कब्जा करके चीन भारतीय सेना को बहुत दूर रखना चाहता है। चीन की दूरगामी चाल यहाँ बड़े भूभाग पर कब्जा करके अपना प्रभाव व्यापक करना है।

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