72 साल की उम्र में बनीं Indian, बोलीं- अब सिर्फ महसूस कर सकतीं हूं सर्टिफिकेट
लखनऊ : बरसों पहले अपने परिवार को लेकर पाकिस्तान से भारत आई वाणी बाई को जैसे ही होम मिनिस्टर राजनाथ सिंह ने भारत की नागरिकता का सर्टिफिकेट दिया, उनके झुर्रीदार बूढे चेहरे पर मुस्कान छा गई। जब न्यूजटैक डॉट कॉम ने उनसे सवाल पूछा तो वह टूटी फूटी हिंदी और सिंधी भाषा में बोलीं कि इंडियन बनने की खुशी तो है लेकिन बस एक मलाल है कि वो इसे देख नहीं सकतीं, सिर्फ महसूस करके ही खुश हो रही हैं। 72 वर्षीय वाणी बाई की आंखों ने सर्टिफिकेट के इंतजार में पांच साल पहले ही उनका साथ छोड़ दिया था। फिर भी रविवार को जब शहर के शिव शांति संत आसूदाराम आश्रम में केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने वाणी बाई समेत उन्हीं की तरह वर्षों पहले पाकिस्तान से आए विस्थापित सिंधियों को उनकी भारतीय नागरिकता का प्रमाण पत्र दिया तो वह चहक उठीं।
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पाकिस्तान से जान बचाकर आईं भारत
वाणी बाई ने बताया कि करीब 36 साल पहले की बात है। वह अपने परिवार के साथ सिंध के सतखट जिले में रहती थीं। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर वहां के लोगों का अत्याचार चरम पर था। एक दिन उनके पड़ोस में रहने वाले परिवार को वहां कुछ लोगों ने बहुत मारा पीटा था। वह मंजर देखकर उनके परिवार ने पाकिस्तान से जान बचाकर भागने का फैसला लिया। इसके बाद वह सब किसी तरह कुछ गहने और अन्य जरूरी सामान लेकर और अपना घर और जमीनें छोड़कर भारत आ गए।
मुश्किल से पहुंचे लखनऊ
वाणी बाई ने बताया कि वह अपने पति जुरियोमल के साथ 36 साल पहले लखनऊ आई थीं। उस समय न रहने को छत थी और न कोई रोजगार। कई दिनों तक तो ऐसे ही भटकना पड़ा। बाद में इनके पति ने अपना फलों का ठेला लगाया। उनके पति ने जब नागरिकता के लिए प्रयास किया तो उन्हें बहुत भटकना पड़ा। बिना भारत के नागरिक बने ही उन्होंने यहां अपना दम तोड़ दिया। अब उनका बेटा राजकुमार अपनी पत्नी के साथ यहां मेडिकल स्टोर का बिजनेस करता है। आज भारतीय बनकर उनका और उनके पति का सपना पूरा हो गया।
सर्टिफिकेट को महसूस करके रो पड़ी वाणी
वाणी बाई को जैसे ही सर्टिफिकेट मिला और उनके बेटे ने उन्हें उनकी उंगली पकड़कर बताया कि उनका नाम कहां लिखा है तो आंखों से दिखाई न देने के बावजूद अपने नाम पर उंगली फिराकर बड़ी देर तक वाणी प्रमाण पत्र को निहारती रहीं। इस दौरान उनकी आंखे नम हो गईं। उन्होंने कहा कि आज उनके पति जुरियोमल जिंदा होते और इस पल के गवाह बनते तो खुशी से झूम उठते।
15 साल की उम्र में ज्वाइंट फैमिली संग छोड़ा पाकिस्तान, इंडियन पति ने दिया सहारा
27 सालों से भारत में रह रही 42 वर्षीय सरोजना बाई के लिए रविवार का दिन किसी त्योहार से कम नहीं था। जैसे ही मंच पर उनका नाम पुकारा गया और होम मिनिट राजनाथ सिंह ने उन्हें इंडियन होने का सर्टिफिकेट दिया, वो खुशी से उछल पड़ी। न्यूजट्रैक डॉट कॉम के साथ अपने संघर्षों की कहानी साझा करते हुए सरोजना ने बताया कि महज 15 साल की उम्र में ही उन्हें पाकिस्तान से जान बचाकर हिंदुस्तान आना पड़ा था। उस समय उनकी पूरी ज्वाइंट फैमिली ने पाकिस्तान में अपना घर बार सब छोड़ दिया था।
दो कमरे के छोटे मकान में गुजारे 10 साल
सरोजना ने बताया कि वो अपने मां-बाप, चाचा- चाची के साथ ही 27 साल पहले भारत आईं थीं। वहां से लखनऊ तक के सफर में उनके परिवार को भूखा- प्यासा भी रहना पड़ा। जब लखनऊ पहुंचे तो न पैसे थे और न ही रहने को छत। इसके बाद सरोजना के पिता ने मजदूरी की। इसके बाद फलों के व्यापारी के यहां काम किया। ऐसे छोटे मोटे काम करके उनके पिता और चाचा ने कुछ रूपये जमा किए और एक दो कमरे का मकान किराए पर लिया। इन दो कमरों के मकान में ही हमलोग बड़े हुए और वहीं से शादी हुई।
पति ने दिया सहारा
सरोजना ने बताया कि उनके पति धरमपाल का धागे बनाने का बिजनेस है। हमलोगों के पास भारतीय नागरिकता न होने के चलते बहुत दिक्कत होती थी। हर छोटी चीज में आई कार्ड मांगा जाता था। धरमपाल से उनकी शादी वर्ष 1994 में हुई। धरमपाल ने उनके परिवार को बहुत सहारा दिया। धरमपाल की हिंदुस्तानी नागरिकता के चलते ही उनके दो बेटों की पढाई अच्छे से हो पा रही है।
इंतजार है परमानेंट सिटीजनशिप का
सरोजना ने बताया कि अभी जो उनको प्रमाण पत्र मिला है, वो लांग टर्म वीजा है। इसके जरिए हमलोग एक राज्य से दूसरे राज्य जा सकते हैं, भारत में कहीं भी बस सकते हैं, लेकिन अभी विधिक रूप से पूरी तरह इंडियन नहीं हैं। एक कानून संसद से पास होना है, उसके बाद ही इन्हें पूरी तरह इंडियन कहा जा सकता है। सरोजना को उस लम्हे का भी बेसब्री से इंतजार है।
स्कूल से जब आईं ‘राजकुमारी’, पिता ने सुनाया पाकिस्तान छोड़ने का फरमान
पढने लिखने की उम्र में एक देश को छोड़कर दूसरे देश जाना हो तो उसकी पीड़ा क्या होती है, इसका अंदाजा 50 वर्षीय राजकुमारी की कहानी से लगाया जा सकता है। न्यूजट्रैक डॉट कॉम से बातचीत में राजकुमारी ने बताया कि वह पाकिस्तान के सतखट जिले के घोटकी के एक स्कूल में पढ़ती थीं। एक दिन जब वह स्कूल से घर वापस आई तो उनके पिता ने परिवार सहित पाकिस्तान को छोड़कर इंडिया जाने का फरमान सुना दिया।अपने घर और दोस्तों से बिछड़ने की बात सुनकर राजकुमारी उस दिन बहुत रोई थीं। सालों पहले की धुंधली यादों को जेहन में ताजा करते हुए राजकुमारी ने बताया कि उस समय दो से तीन हफ्तों का सफर करके इनका परिवार लखनऊ आया था। इस दौरान उन्हें कई दिनों तक भूखा भी रहना पड़ा था।
नागरिकता के बिना नहीं हो सके सपने पूरे
राजकुमारी ने बताया कि उनके पिता नौतनदास जब उन्हें लेकर यहां आए तो उनकी पढने लिखने की उम्र थी। लेकिन नागरिकता के बिना यहां किसी स्कूल में एडमिशन नहीं हो पाया। इसके चलते अपनी शिक्षा पूरी करने का सपना अधूरा ही रह गया। इसके बाद कुछ सालों में इनकी शादी अनिल कुमार से हो गई। पति फलों का बिजनेस करते थे, इसलिए उनके काम में हाथ बंटाने के साथ साथ एक कुशल हाउसवाइफ बनकर पूरे घर को संभाल रही हैं।
भारत सरकार का दिया धन्यवाद
राजकुमारी ने नया रास्ता खोजकर उन जैसे विस्थापित 55 लोगों को नागरिकता देने के लिए भारत सरकार को धन्यवाद दिया है।उन्होंने कहा कि विस्थापितों के दर्द को किसी ने सालों से नहीं बांटा था। कई सरकारें आई, वादे हुए लेकिन अब जाकर उन्हें यहां की नागरिकता मिल पाई। लीगल रूप से इंडियन बनने पर उन्हें बहुत गर्व है।