INDIA Alliance Meeting: विपक्षी दलों की मीटिंग में हिंदी पर छिड़ा घमासान, डीएमके सांसद पर नाराज हुए सीएम नीतीश कुमार
INDIA Alliance Meeting: मीटिंग में जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बोलने की बारी आई तो उन्होंने हिंदी में अपनी बात रखनी शुरू की। जिसपर डीएमके सांसद टीआर बालू ने नीतीश कुमार के हिंदी भाषण का अंग्रेजी अनुवाद मांग लिया।
INDIA Alliance Meeting: पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव संपन्न होने के बाद विपक्षी दलों के बीच एकजुटता की कवायद एकबार फिर से तेज हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली भारतीय जनता पार्टी को 2024 के आम चुनाव में तीसरी बार सत्ता में आने से रोकने के लिए इंडिया गठबंधन के बैनर तले मंगलवार को दिल्ली में विपक्षी दलों की चौथी बैठक हुई। बैठक के दौरान हिंदी भाषा को लेकर माहौल गरमा गया। जिसे अन्य नेताओं ने जैसे-तैसे संभाला।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मीटिंग में जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बोलने की बारी आई तो उन्होंने हिंदी में अपनी बात रखनी शुरू की। जिसपर डीएमके सांसद टीआर बालू ने नीतीश कुमार के हिंदी भाषण का अंग्रेजी अनुवाद मांग लिया। बिहार सीएम को जैसे ही ये पता चला वो भड़क गए और खुलेआम अपनी नाराजगी जाहिर कर दी। भाषा को लेकर जब माहौल बिगड़ने लगा तो सीपीआई नेता ने आगे आकर सिचुएशन को नॉर्मल किया।
डीएमके सांसद ने राजद एमपी मनोज झा से मांगा सहयोग
दरअसल, मंगलवार को दिल्ली के अशोका होटल में इंडिया अलायंस के घटक दल चौथी मीटिंग के लिए जुटे थे। मीटिंग में जब बिहार सीएम नीतीश कुमार के बोलने की बारी आई तो उन्होंने हिंदी में बोलना शुरू किया। उनके भाषण के दौरान तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और उन्हीं के पार्टी के कोषाध्यक्ष एवं सांसद टीआर बालू नीतीश की बात समझने में असमर्थ दिखे। बालू ने बगल में बैठे राजद सांसद मनोज झा से पूछा कि क्या वे नीतीश की बातों को अंग्रेजी में अनुवाद कर सकते हैं।
हिंदी भाषा का महत्व समझाने लगे नीतीश
डीएमके सांसद के इस अनुरोध के बारे में मनोज झा ने नीतीश कुमार से बात की और उनसे उनके भाषण का अनुवाद करने की अनुमति मांगी। इस पर बिहार के मुख्यमंत्री भड़क गए और हिंदी भाषा के महत्व को समझाने लगे। उन्होंने कहा कि हम अपने देश को हिंदुस्तान कहते हैं। हिंदी हमारी राष्ट्रीय भाषा है। हमें यह भाषा आनी चाहिए। नीतीश की ऐसी प्रतिक्रिया से डीएमके नेता असहज महसूस करने लगे। तब इस मामले में सीपीआई नेता डी राजा ने दखल देते हुए कहा कि भाषा के मुद्दे को बीच में नहीं लाया जाना चाहिए। मनोज झा ने नीतीश के मना करने पर भाषण का अनुवाद नहीं किया और बात वहीं पर खत्म हो गई।
हिंदी को लेकर डीएमके और नीतीश दोनों दो छोड़ पर
इंडिया गठबंधन में शामिल सभी दल का कॉमन एजेंडा एक ही है कि मोदी सरकार को तीसरी बार सत्ता में आने से रोकना। यही वजह है कि कई दलों ने अपने मतभेद किनारे रखकर साथ आने की कोशिश की है। हिंदी भाषा को लेकर सीएम नीतीश कुमार का स्टेंड बीजेपी के ज्यादा नजदीक है। हाल फिलहाल में बिहार सीएम कई बार सार्वजनिक रूप से बोल-चाल में अंग्रेजी भाषा के ज्यादा उपयोग पर अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं। जिसके बाद से बिहार सरकार के अधिकारी विधानसभा की कार्यवाही के दौरान से लेकर अन्य सरकारी कार्यक्रमों मे हिंदी भाषा को प्रमुखता से तरजीह देते हैं।
वहीं, तमिलनाडु की सत्ताधारी पार्टी डीएमके की पहचान हिंदी भाषा के विरोध से ही जुड़ी हुई है। राज्य में हिंदी विरोधी आंदोलन का अतीत रहा है। वर्तमान में भी केंद्र से लगातार इस बात को लेकर उसका टकराव जारी रहता है कि वह तमिलनाडु पर जबरदस्ती हिंदी थोपने की कोशिश कर रहा है।