Loksabha Election 2024: गठबंधन से कांग्रेस को फायदा, सपा को नुकसान

Loksabha Election 2024: 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में 6.4 और 2022 के चुनाव में करीब दो फीसदी ही वोट मिले थे। ऐसे में जीत हार की बात न भी करें तो चुनाव अच्छा लड़ना भी एक बड़ी बात होगी।

Written By :  Raj Kumar Singh
Update: 2024-02-21 11:57 GMT

Loksabha Election 2024 source: social media 

Loksabha Election 2024: सपा ने जब भी किसी दल से गठबंधन किया तो वह दल सपा की ही कीमत पर मजबूत हुआ। समाजवादी पार्टी एक बार फिर से एक दूसरे दल को उत्तर प्रदेश में संजीवनी दे रही है। जिसकी वजह इस बार कांग्रेस को ठीकठाक फायदा होगा। इसके पहले सपा से गठबंधन करके बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रीय लोकदल और कांग्रेस भी लाभ की स्थिति में रहे थे।

2017 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से तालमेल रहा बेअसर 

अखिलेश यादव ने चुनावी गठजोड़ की शुरुआत 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से तालमेल करके की थी। हैरत की बात यह थी कि प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी और उसके बाद होने वाले चुनाव में सपा ने कांग्रेस को 105 सीटें दे दी थीं।  ऐसा उदाहरण देश में शायद ही कहीं पहले देखने को मिला हो कि बहुमत की निवर्तमान सरकार ने एक हाशिए पर खड़े दल को इतनी अधिक सीटें दी हों। विधानसभा में सपा को करारी हार ही नहीं मिली बल्कि उसकी संख्या 47 पर सिमट कर रह गई। कांग्रेस भी 105 में कुल सात सीटें ही जीत पाई। यदि सपा अकेले लड़ी होती तो उसकी सीटें कुछ अधिक हो सकती थीं।

2019 में गठबंधन का फायदा बसपा को मिला, सपा की सीटें घटीं

इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का तालमेल हुआ। पूरी सपा मायावती जी के सामने दंडवत हो गई। दोनों ने 38-38 सीटें लीं। बीएसपी ने अपनी पसंद की सीटें ले लीं। नतीजा यह हुआ कि बीएसपी को 10 और सपा को 5 सीटें मिली। यहां भी सपा घाटे में रही और बसपा फायदे में रही।

2022 के विधानसभा चुनाव में गठबंधन कर आरएलडी को सपा ने संजीवनी दी

इसके बाद आया 2022 का विधानसभा चुनाव। इस चुनाव में समाजवादी पार्टी ने राष्ट्रीय लोकदल से हाथ मिलाया। वही राष्ट्रीय लोकदल जो पूरी तरह बीजेपी के हाथों परास्त हो चुकी थे और जिसने पश्चिम में अपनी राजनीतिक जमीन करीब करीब खो दी थी। उसके सभी दिग्गज नेता चुनाव हार गए थे। गठबंधन में आरएलडी को 38 सीटें मिलीं और उसने 8 जीतीं भी। जयंत चौधरी को राज्यसभा भेजा वो अलग। ऐसे में अखिलेश यादव से समझौता करने से राष्ट्रीय लोकदल को अपनी जमीन वापस मिल गई और उसे संजीवनी मिल गई। इस तालमेल का सपा से अधिक आरएलडी को फायदा हुआ और इस बढ़ती ताकत का इस्तेमाल करके आरएलडी ने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले सपा को ही गच्चा देते हुए बीजेपी से हाथ मिला लिया।

इस बार भी गठबंधन का फायदा कांग्रेस को ही, मुसलिम वोटर को विकल्प दिया

कुल मिलाकर जिस तरह से सपा ने इस बार कांग्रेस को 17 सीटें दी हैं उससे कांग्रेस ने गठबंधन की शुरुआत में ही बढ़त बना ली है। उत्तर प्रदेश में हाशिए पर खड़ी कांग्रेस को सपा को मूलभूत वोटर खासतौर मुस्लिम वोट ट्रांसफर हो जाएगा। इसमें कोई संदेह नहीं है। वह मुस्लिम वोटर जो बाबरी मस्जिद के ढहाए जाने के बाद से कांग्रेस से नाराज था। उसे सपा ने कांग्रेस के पास भेज दिया है। एक बार कांग्रेस से जुड़ने के बाद वह सपा की ओर वापस आएगा। यहा एक बड़ा सवाल है। इसके साथ ही जो सीटें गठबंधन में कांग्रेस के हिस्से आई हैं वह भी चुनाव लड़ने के लिहाज से अच्छी हैं। सबसे बड़ी बात सपा का पूरे प्रदेश में संगठन, कार्यकर्ता और वोटर हैं। जबकि कांग्रेस जमीन पर है ही नहीं। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में 6.4 और 2022 के चुनाव में करीब दो फीसदी ही वोट मिले थे। ऐसे में जीत हार की बात न भी करें तो चुनाव अच्छा लड़ना भी एक बड़ी बात होगी। सपा से तालमेल के बाद कांग्रेस यूपी में कई जगह चुनाव लड़ती दिखेगी और संघर्षो का सामना करेगी।  यह उसके लिए बड़ी बात है। चुनाव से पहले परिणाम के बारे में कुछ भी कहना मुश्किल होता है। लेकिन अतीत के परिणामों को देखें तो यह भी हो सकता है कि सपा और कांग्रेस की सीटें लगभग बराबर रहें, और कांग्रेस कुछ बेहतर ही कर जाए तो आश्चर्य न हो।

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