Congress President Election: नए अध्यक्ष के सामने होंगी कई बड़ी चुनौतियां, दो राज्यों के चुनाव में भाजपा से जूझना आसान नहीं

Congress President Election: चुनाव जीतने की स्थिति में खड़गे को कई बड़ी चुनौतियों का तत्काल सामना करना होगा। चुनाव आयोग ने हिमाचल प्रदेश में 12 नवंबर को मतदान की घोषणा कर दी है।

Written By :  Anshuman Tiwari
Update: 2022-10-16 06:41 GMT

 शशि थरूर-मल्लिकार्जुन खड़गे (photo: social media )

Congress President Election: कांग्रेस में 22 साल बाद कल होने वाले अध्यक्ष पद के चुनाव पर सबकी निगाहें लगी हुई हैं। देश भर के नौ हजार से ज्यादा डेलीगेट्स नए अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया में हिस्सा लेंगे। इस चुनाव में पार्टी के दो दिग्गज नेताओं मल्लिकार्जुन खड़गे और शशि थरूर के बीच मुकाबला हो रहा है। वैसे विभिन्न राज्यों में मिल रहे समर्थन और गांधी परिवार का आशीर्वाद हासिल होने के कारण खड़गे की स्थिति थरूर के मुकाबले मजबूत मानी जा रही है। नए अध्यक्ष के चुनाव के नतीजे 19 अक्टूबर को घोषित किए जाएंगे।

चुनाव जीतने की स्थिति में खड़गे को कई बड़ी चुनौतियों का तत्काल सामना करना होगा। चुनाव आयोग ने हिमाचल प्रदेश में 12 नवंबर को मतदान की घोषणा कर दी है। गुजरात में भी चुनाव कार्यक्रम का जल्द ही ऐलान होने वाला है। इन दोनों ही राज्यों में चुनावी तैयारियों के मामले में भाजपा कांग्रेस से काफी आगे निकलती दिख रही है। अगले साल भी राजस्थान और छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में नए अध्यक्ष के सियासी राह काफी मुश्किलों भरी मानी जा रही है। इसके साथ ही पार्टी में सभी वर्गों को साथ लेकर चलना भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं होगा।

हिमाचल चुनाव के लिए सिर्फ तीन हफ्ते का समय

कांग्रेस के नए अध्यक्ष को पद संभालते ही दो राज्यों में काफी अहम माने जाने जा रहे विधानसभा चुनाव का सामना करना होगा। हिमाचल प्रदेश में तो चुनाव की तारीखों का ऐलान तक हो चुका है। राज्य में 12 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर नए अध्यक्ष के सामने चुनाव की तैयारियों के लिए महज तीन हफ्ते का समय होगा। कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा माने जाने वाले राहुल गांधी इन दिनों भारत जोड़ो यात्रा में व्यस्त हैं। ऐसे में नए अध्यक्ष की हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में अग्निपरीक्षा होगी।

राहुल गांधी की व्यस्तता के कारण हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रियंका गांधी पर निर्भर नजर आ रही है। प्रियंका ने पिछले शुक्रवार को हिमाचल प्रदेश के सोलन में चुनावी रैली को संबोधित किया था। दूसरी और भाजपा ने हिमाचल प्रदेश में पूरी ताकत लगा रखी है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल में हिमाचल प्रदेश के दो दौरे किए हैं जबकि गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने भी राज्य पर फोकस कर रखा है। ऐसे में नए कांग्रेस अध्यक्ष के लिए हिमाचल में भाजपा की चुनौतियों से निपटना आसान नहीं होगा।

गुजरात में कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती

इसके साथ ही गुजरात में भी जल्द ही चुनाव कार्यक्रम घोषित किए जाने की संभावना है। हिमाचल प्रदेश और गुजरात में कांग्रेस की चुनौतियां इसलिए भी बढ़ गई हैं क्योंकि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा इन दोनों ही राज्यों में नहीं जाने वाली है। इसलिए कांग्रेस को इन दोनों ही राज्यों में भारत जोड़ो यात्रा से कोई सियासी लाभ होने की संभावना नहीं है।

गुजरात में तो कांग्रेस के लिए स्थिति और चुनौतीपूर्ण मानी जा रही है। हार्दिक पटेल समेत पार्टी के कई बड़े चेहरे भाजपा में शामिल हो चुके हैं। भाजपा ने गुजरात के चुनाव को प्रतिष्ठा की जंग बना रखा है और पार्टी ने राज्य में पूरी ताकत झोंक दी है। हिमाचल प्रदेश और गुजरात के विधानसभा चुनावों को लेकर अभी तक आए सर्वे में भी भाजपा की स्थिति कांग्रेस से काफी मजबूत मानी जा रही है।

पार्टी में गुटबाजी दूर करना भी आसान नहीं

कांग्रेस में केंद्रीय स्तर से लेकर राज्य इकाइयों तक जबर्दस्त गुटबाजी दिखती रही है। मौजूदा समय में राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकारे हैं और इन दोनों राज्यों में मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर खींचतान चल रही है। राजस्थान में तो पिछले दिनों विधायकों के बागी तेवर के कारण कांग्रेस विधायक दल की बैठक तक नहीं हो सकी थी। मजे की बात यह है कि अध्यक्ष पद के चुनाव में मजबूत माने जा रहे मल्लिकार्जुन खड़गे इस दौरान पर्यवेक्षक के रुप में जयपुर में ही मौजूद थे। खड़गे राजस्थान के सियासी हालात को संभालने में नाकाम साबित हुए थे।

राजस्थान में कांग्रेस विधायकों पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की मजबूत पकड़ के कारण कांग्रेस हाईकमान अभी तक कोई फैसला नहीं ले सका है। ऐसे में राज्य इकाइयों में पनप रही गुटबाजी से निपटना भी नए अध्यक्ष के लिए आसान नहीं होगा। इसके साथ ही कांग्रेस के असंतुष्ट खेमे जी-23 से जुड़े नेता भी लंबे समय से पार्टी की कार्यप्रणाली में बदलाव की मांग करते रहे हैं। असंतुष्ट नेताओं से संतुलन बनाते हुए उनकी शिकवा-शिकायतें दूर करना भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं माना जा रहा है।

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