कोरोना वायरस के संकट का बड़ा असर, अब इस फैसले से हो रहीं जेलें खाली
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पेरोल पर रिहा किए जा सकने वाले कैदियों की श्रेणी निर्धारित करने के लिए उच्च स्तरीय समितियां गठित करने का निर्देश दिया है।
नई दिल्लीः देश की जनता को कोरोना वायरस जनित महामारी के बड़े खतरे को समझने की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कोरोना के मद्देनजर आदेश जारी कर दिये हैं जिसके तहत सैकड़ों कैदी पेरोल पर रिहा होंगे। विचाराधीन कैदियों को कुछ समय के लिये रिहा किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को सुझाव दिया है कि सात साल से कम सजा पाये, छोटे अपराधों में विचाराधीन कैदियों को 6 हफ्ते की परोल देना उचित रहेगा।
सेंट्रल बार एसोसिएशन के महामंत्री संजीव पांडे का कहना है कि लॉकडाउन’ का मतलब है ज़रूरी सेवाएँ उपलब्ध रहेंगी। ‘कर्फ़्यू’ का मतलब है सब कुछ बंद रहेगा। लॉकडाउन का पालन नहीं होगा तो पंजाब की तरह कर्फ़्यू लगाना पड़ सकता है। इसलिए घर पर रहें महफूज रहें।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पेरोल पर रिहा किए जा सकने वाले कैदियों की श्रेणी निर्धारित करने के लिए उच्च स्तरीय समितियां गठित करने का निर्देश दिया है।
कोरोना के फैलने की आशंका के मद्देनजर जेलों में भीड़ कम करने के लिए यह कदम उठाया जा रहा है। सबसे बड़ी अदालत ने कहा है कि ऐसे कैदियों को पेरोल दिया जा सकता है जिन्हें सात साल तक की सजा हुई है या जिन पर इतनी अवधि की सजा के अपराध के लिये अभियोग निर्धारित हुए हैं।
पहली बार हो रहा ये काम
कोरोना के बढ़ते खतरे की आशंका के मद्देनजर विधिक इतिहास में पहली बार सुप्रीम कोर्ट वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से सुनवाई करने जा रहा है। इसकी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि संक्रमण से बचाव के लिए कोर्ट परिसर में सभी वकीलों के चेंबर अगले आदेश तक बंद रहेंगे। साथ ही कोर्ट में व्यक्तिगत पेशी पर भी अगले आदेश तक रोक रहेगी। इसीलिए जरूरी मामलों की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई का फैसला किया गया है।