खतरनाक! 60 दिनों में 240 करोड़ की साइबर ठगी!

Cyber Fraud: परेशान करने वाली बात ये भी है कि पुलिस शिकायत के बावजूद सिर्फ करीब 56 करोड़ रुपये या ठगी गयी कुल राशि का 23.6 फीसदी ही वसूल किया गया।

Report :  Neel Mani Lal
Update:2024-04-17 12:14 IST

Hardoi  (photo: social media )

Cyber Fraud: साइबर ठग किस कदर लोगों को लूट रहे हैं इसका एक उदहारण भारत की हाई टेक सिटी बंगलुरु हैं जहाँ दुनिया भर की टॉप आईटी कंपनियों में दिग्गज इंजीनियर काम करते हैं, लेकिन इसी शहर में सिर्फ दो महीनों के भीतर 240 करोड़ की साइबर ठगी हो चुकी है। परेशान करने वाली बात ये भी है कि पुलिस शिकायत के बावजूद सिर्फ करीब 56 करोड़ रुपये या ठगी गयी कुल राशि का 23.6 फीसदी ही वसूल किया गया।

पकड़े नहीं जा रहे अपराधी

दरअसल, आम तौर पर पिछले कुछ वर्षों में साइबर अपराधों का पता लगाने की दर में गिरावट देखी जा रही है। बंगलुरु केन्द्रित एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2022 में यह दर 22.8 फीसदी थी जो 2023 में गिरकर 8.1 फीसदी हो गई और 2024 में (जनवरी से फरवरी तक) घटकर मात्र 1.36 फीसदी रह गई। 2024 में 60 दिनों के भीतर 3,151 साइबर अपराध के मामले दर्ज किए गए। इनमें से 828 मामले नौकरी धोखाधड़ी से जुड़े थे जबकि केवल 11 का पता चल सका है। आंकड़ों के मुताबिक, केवल नौकरी धोखाधड़ी घोटालों में व्यक्तियों को सामूहिक रूप से 63.8 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है।

क्या कहना है पुलिस का?

नौकरी धोखाधड़ी से जुड़े विशेष जांच दल का नेतृत्व कर रहे पुलिस उपायुक्त शिव प्रकाश देवराजू के अनुसार, प्रत्येक साइबर अपराध में, कम से कम 200 बैंक खाते अवैध रूप से अर्जित धन को ट्रान्सफर करने और प्राप्त करने के लिए उपयोग किए जाते हैं। पहले पीड़ितों को छोटी रकम के साथ धोखा दिया जाता था, जिसमें कम खाते शामिल होते थे। लेकिन मौजूदा चलन में, पीड़ितों को कम से कम 10 से अधिक बैंक खातों का विवरण प्रदान किया जाता है। इसके बाद, धनराशि को कई खातों के बीच छोटे छोटे अमाउंट में ट्रान्सफर किया जाता है, और पिछले खातों को तेजी से ब्लाक कर दिया जाता है। इस ट्रेंड को देखते हुए ठगों का जल्द ही पता लगाना बेहद चुनौतीपूर्ण या असंभव है।

गोल्डन आवर

पुलिस का कहना है कि साइबर अपराध पीड़ितों को एक घंटे के भीतर मामले की रिपोर्ट करनी चाहिए। देरी करने पर मामला हाथ से निकला सकता है। दरअसल, साइबर अपराधों की प्रवृत्ति बदलती रहती है, और अपराधों की प्रकृति और जटिलता डेवलप होती रहती है। जैसे ही पुलिस किसी मामले में सफलता खोजने का प्रयास करती है तब तक अपराध का तरीका बदल जाता है और नई जटिलताएं जुड़ जाती हैं। अब तक उजागर हुए सभी मामलों में, अपराधों को अंजाम देने वाले मास्टरमाइंड लगातार गिरफ्तारी से बचते रहे हैं। इसकी कई वजहें हैं, जैसे कि अपराधों में कई परतें शामिल होना और आईपी पते का पता लगाने की जटिलता। हर अपराध में प्रत्येक धोखेबाज दूसरों के साथ समन्वय में काम करता है, फिर भी उनमें से कोई भी एक-दूसरे को पहचानता नहीं है। ऐसे में पूरे लिंक को पकड़ पाना बेहद कठिन काम होता है। मास्टरमाइंड अपने अपराध को छोटे-छोटे घोटालों की परतों के जरिये छुपाता है और यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक भागीदार को एक हिस्सा मिले।

पुलिस के अनुसार, कर्नाटक में स्थित लोग जांच को जटिल बनाने के लिए दुबई या देश के अन्य हिस्सों से अपनी गतिविधियों का सञ्चालन करते हैं। साइबर अपराध के लिए वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (वीपीएन) का उपयोग किया जाता है और ईमेल एक एन्क्रिप्टेड प्लेटफॉर्म ‘प्रोटॉन’ के जरिये भेजे जाते हैं। अपराध इतना बढ़ गया है कि इसके मूल स्रोत का पता लगाना न केवल चुनौतीपूर्ण है बल्कि असंभव है।

ढेरों बैंक खाते

एक बार जब किसी शिकार से ठगा गया पैसा एक बैंक खाते में ट्रान्सफर हो जाता है, तो जालसाज तेजी से उस पैसे को कई अन्य बैंक खातों में डिस्ट्रीब्यूट कर देते हैं और अंततः सभी खाते बंद कर देते हैं। जब तक जाँच एजेंसी पता लगाना शुरू करते हैं तब तक खाते या तो ब्लॉक कर दिए जाते हैं या ऐसे लोगों के नाम खाते होते हैं जिनको पता भी नहीं होता कि उनके नाम से खाते चल रहे हैं। पुलिस का कहना है कि पीड़ितों को तुरंत एक घंटे के भीतर मामलों की रिपोर्ट करनी चाहिए। साइबर अपराध का पता लगाना केवल पुलिस की ही जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि जनता और बैंकों की भी जिम्मेदारी है।

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