सुशील कुमार
मेरठ : योगी सरकार में स्वतंत्र देव सिंह ने 2017 में परिवहन मंत्रालय की कमान संभालने के बाद मीडिया से बातचीत में उत्तर प्रदेश में डग्गामार वाहनों का संचालन पूरी तरह बंद करने की बात कही थी। उनकी यह घोषणा फ्लॉप साबित हुई है। दो साल से ज्यादा का समय बीत जाने के बाद आज भी डग्गामार वाहनों का संचालन ना सिर्फ ज्यों-का त्यों जारी है बल्कि इनकी संख्या भी तेजी से बढ़ती जा रही है। आलम यह है कि अब परिवहन निगम की बसों के रंग में रंगकर बाकायदा कोडवर्ड लिखकर डग्गामारी की जा रही है। सरकार के तमाम दावों को धता बताकर रोडवेज के समानांतर रूटों पर दौड़ रहीं डग्गामार बसें प्रतिदिन परिवहन निगम की बसों को प्रतिदिन लाखों रुपये का नुकसान पहुंचा रही हैं। वहीं, बेतरतीब और तेज रफ्तार से यात्रियों की जिदगी भी दांव पर लगा रही हैं। उधर, संबंधित जिम्मेदार अफसर इस ओर कोई प्रभावी कार्रवाई करने के बजाय आंखें मूंदे बैठे हैं।
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धड़ल्ले से चल रहीं डग्गामार बसें
मेरठ समेत पश्चिमी उत्तर प्रदेश की बात करें तो मेरठ, सहारनपुर, गाजियाबाद, मुरादाबाद, अलीगढ़ समेत तमाम जनपदों में धड़ल्ले से डग्गामारी की जा रही है। एक डिपो से ज्यादा बसें डग्गामारी में दौड़ रही हैं। डग्गामार वाहनों के संचालकों के हौसले कितने बुलंद हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ये डग्गामार बसें बकायदा रोडवेज बस अड्डों के सामने से सवारियां बैठाती हैं लेकिन पुलिस और परिवहन अफसर इन दबंग डग्गामार संचालकों के सामने नतमस्तक हैं। ना तो मुकदमा दर्ज कराया जा रहा है और न ही कोई रोक-टोक हो रही है। कार्रवाई के नाम पर होती तो है तो बस खानापूर्ति यानी कभी-कभार इक्का-दुक्का बसों को सीज कर दिया जाता है। एक-दो दिन में मामला शांत रहता है। इसके बाद फिर से डग्गामार बसें सड़कों पर दौडऩे लगती हैं। डग्गामार बसों की संख्या के मुकाबले यह संख्या ऊंट के मुंह में जीरा की तरह होती हैं।
अधिकारी नहीं मानते ढील की बात
हालांकि उप परिवहन आयुक्त संजय माथुर इस मामले में विभागीय ढील मानने से इनकार करते हैं। वे कहते हैं, डग्गामार वाहनों के खिलाफ समय-समय पर आरटीओ, रोडवेज और पुलिस की संयुक्त टीम अभियान चलाकर कार्रवाई करती है। उनके मुताबिक पिछले छह महीनों में दो दर्जन से अधिक बसें पकड़ी गई हैं। डग्गामार वाहन बंद ना होने के सवाल पर संजय माथुर कहते हैं कि हम केवल बसों को सीज या फिर उनका चालान ही कर सकते हैं। इससे ज्यादा और कुछ नहीं। डग्गामारी बंद ना होने के सवाल का जवाब डग्गामारी संचालन से जुड़े सूत्र देते हैं। इन सूत्रों के अनुसार डग्गामारी करते पकड़ी जाने वाली बसों पर दस हजार रुपये जुर्माना लगाया जाता है। दिल्ली जैसे रूट पर इतनी रकम बस संचालक एक बार आने-जाने में कमा लेते हैं। दो तीन माह में एक बार बस पकड़ी भी जाती है तो डग्गामार संचालकों को कोई फर्क नहीं पड़ता।
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डग्गामार वाहनों का नया तरीका
परिवहन निगम के मेरठ क्षेत्र के प्रबंधक नीरज सक्सेना कहते हैं कि यदि डग्गामारी पर अंकुश लग जाए तो निगम की आय में दोगुनी बढ़ोत्तरी हो सकती है। वे कहते हैं कि यूपी रोडवेज बसों की आड़ में सड़क पर सरपट दौडऩे के लिए डग्गामार बसों ने नायाब तरीका अपनाया है। यूपी स्टेट रोडवेज ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन (यूपीआरटीसी) की जगह यूपी सुपरफास्ट, उत्तर प्रदेश परिवहन के बजाए उसी अंदाज में सामने शीशे पर उत्तर प्रदेश या उत्तर प्रदेश परिहान, कौशांबी डिपो की जगह कौशांबी मेट्रो लिखवाकर यात्रियों के साथ धोखा किया जा रहा है। अधिकतर लोग उस पर गौर नहीं करते और यूपी रोडवेज की बस समझकर इसमें सवार हो जाते हैं।
हादसों को दे रहे न्योता
सर्वाधिक बसें कौशांबी, आनंद विहार और पुराना बस अड्डे से लोकल और आसपास के जिलों में बेरोकटोक दौड़ रही हैं। इन बसों में सुरक्षा के कोई मानक नहीं हैं और न ही इसमें तैनात चालक-परिचालक की किसी के प्रति कोई जवाबदेही है। डग्गामार वाहन शहर हो या हाइवे एक सी रफ्तार में दौड़ाने की कोशिश में हादसों को न्योता देते हैं। उधर कौशांबी के क्षेत्रीय प्रबंधक अखिलेश कुमार सिंह कहते हैं, यूपी रोडवेज बसों की तरह दिखाई देने वाली बसों के खिलाफ पुलिस और परिवहन विभाग के साथ मिलकर सीज कराने की कार्रवाई की जाएगी।
श्रमिक नेता बता रहे सरकार की साजिश
प्रदेश में डग्गामारी बसों के संचालन पर अंकुश नहीं लगने से निगम से जुड़े श्रमिक संगठन भी बेहद गुस्से में हैं। वे इसे भाजपा सरकार की निगम का निजीकरण करने की सोची-समझी साजिश मानते हैं। उनका कहना है कि सरकार जानबूझ कर निगम की आर्थिक हालत को कमजोर कर रही है ताकि आर्थिक संकट का बहाना बनाकर निगम को निजी हाथों में दिया जा सके। यूपी रोडवेज मजदूर संघ के मंत्री राजीव त्यागी कहते हैं कि सरकार की मंशा का इजहार हाल ही में परिवहन मंत्री ने स्वतंत्र देव सिंह यह कह कर कर चुके हैं कि डग्गामार वाहनों को परमिट देकर डगामारी बंद की जाएगी। यानी जब आप रोडवेज के मार्ग पर निजी बसों को परमिट देकर चलाएंगे तो रोडवेज को घाटे से कौन बचा सकता है। वे कहते हैं कि कुल राष्ट्रीयकृत मार्गों में 8 फीसदी मार्गों पर यूपी रोडवेज को संचालन का अधिकार है, जबकि निजी बसें 82 प्रतिशत मार्गों पर दौड़ रही हैं। जो राजस्व रोडवेज दस हजार बसों से दे रहा है,वो 38 हजार डग्गामार बसें भी नहीं दे पा रही हैं। इसके बावजूद रोडवेज में निजीकरण को बढ़ावा दाने की साजिश रची जा रही है। कर्मचारी नेताओं के अनुसार यूपी के बाहर गुजरात, आंध्र समेत कई प्रदेशों में परिवहन निगम के पास शत प्रतिशत राष्ट्रीयकृत मार्ग हैं।
चक्काजाम की चेतावनी
रोडवेज इंप्लाइज यूनियन के प्रदेश सचिव सुहेल अहमद ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार रोडवेज विभाग निजी हाथों में सौंपना चाहती है। इससे रोडवेज कर्मचारियों का शोषण होगा और उनकी लंबित पड़ी हुई मांगों का कभी भी समाधान नहीं हो पाएगा। सुहेल ने सरकार की कार्यशैली पर भी सवालिया निशान खड़े किए। उनका कहना था कि संविदा चालक-परिचालक श्रम विभाग के कानून के अनुसार कबके 180 दिनों की प्रक्रिया को पूरा कर चुके हैं, लेकिन आज तक उन्हें सरकारी दर्जा देने की कवायद शुरू नहीं हुई है। इससे साफ है कि सरकार रोडवेज कर्मचारी हित में बिल्कुल नहीं है। रोडवेज कर्मचारियों ने साफ कर दिया है कि अगर सरकार ने विभाग के निजीकरण के लिए कोई भी कदम उठाया तो कर्मचारी चक्काजाम करने को मजबूर होंगे।
सूची भेजने पर भी कार्रवाई नहीं
परिवहन निगम मेरठ के अफसरों ने हाल ही में डग्गामार बसों के संचालन के सुबूत के तौर पर ऐसी बसों का सर्वे कराकर इन सभी 179 बसों की नंबर सहित सूची शासन को भेज दी है। साथ ही मंडलायुक्त, एसएसपी और आरटीओ को भी सूची भेजी है। इसमें मेरठ-मुरादाबाद रूट पर 63 बसें, मेरठ-मुजफ्फरनगर रूट पर 26 बसें और मेरठ-कौशांबी रूट पर 90 बसें दौड़ती मिलीं। लेकिन इस सूची पर अभी तक किसी भी अधिकारी ने संज्ञान नहीं लिया है। सूत्रों के अनुसार आमतौर पर एक बस रोजाना औसतन 20 हजार रुपये की कमाई करती है। 179 डग्गामार बसों की कमाई पर नजर डालें तो यह कमाई 35.80 लाख रुपये रोजाना बैठती है यानी महीने में कमाई का आंकड़ा 10 करोड़ 74 लाख तो सालाना करीब 129 करोड़ रुपये बैठता है। किसी विभाग की इतनी बड़ी कमाई लुट जाए तो उसका घाटे में जाना लाजिमी है।