करोड़पति हीरा कारोबारी की बेटी 9 वर्ष की आयु में बनी साध्वी, 4 माह की आयु में ही छोड़ा दिया था रात्रि भोजन

Monk Devanshi Sanghvi: जिन भी लोगों ने अपनी करोड़ों की संपत्तियां छोड़ी हैं, उन लोगों ने आध्यात्म की तरफ रूख किया है।

Written By :  Viren Singh
Update: 2023-01-19 08:44 GMT

Monk Devanshi Sanghvi (सोशल मीडिया)  

Monk Devanshi Sanghvi: एक तरफ जहां लोगों की चाह होती है कि उनके पास करोड़ों की संपत्ति और दौलत हो तो वहीं कुछ ऐसे भी लोग हैं जो करोड़ों की संपत्ति होने के बाद भी इसको छोड़कर दूर चल गए हैं। ऐसा ही मामला एक बार फिर सामने आया है। मामला सूरत के हीरा कारोबारी की बेटी से जुड़ा हुआ है। हारी कारोबारी की बेटी ने पिता की करोड़ों की संपत्ति दरकिनार करते हुए सांसारिक जीवन को त्याग कर साध्वी बनने का फैसला ले लिया है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि किसने दौलत और शौहरत होने के बाद सांसारिक जीवन को त्याग हो। इससे पहले भी देश में ऐसे कई मामले देखने को मिले हैं।

9 साल की आयु में बनी साध्वी

हालांकि इन मामलों में एक खास बात यह रही है कि जिन भी लोगों ने अपनी करोड़ों की संपत्तियां छोड़ी हैं, उन लोगों को आध्यात्म की तरफ रूख किया है। मीडिया रिपोर्ट्स से मिली जानकारी के मुताबिक, सूरत के बड़े हीरा कारोबार धनेश संघवी की बेटी देवांशी संघवी ने मात्र 9 साल की छोटी आयु में सांसारिक जीवन को त्याग करते हुए साध्वी की दीक्षा लेते हुए साध्वी बने गई हैं। अब देवांसी संघवी का साध्वी दिगंतप्रज्ञाश्री बने गई हैं और वह यही नाम से भविष्य में जानी जाएंगी। संघवी साध्वी बनने से पहले कि अपनी गुरु साध्वी प्रिस्मीता श्रीजी से साध्वी बनने की दीक्षा ग्रहण की। किर्तीयश सूरी जी महाराज के सानिध्य में संघवी साध्वी दीक्षा हासिल की है।


कारोबारी का पूरा परिवार धार्मिक प्रवृत्ति का

मिली जानकारी के मुताबिक, हीरा कारोबारी का पूरा परिवार धार्मिक प्रवृत्ति का है। देवांशी का माता अमी संघवी का धार्मिक और भक्त में काफी मन रमता है, जिसके चलते देवांशी को धार्मिक संस्कार मिले हैं। धनेश संघवी को दो बेटियां हैं, जिसमें एक चार साल की काव्या और दूसरी आठ साल की देवांसी। इसमें सबसे बड़ी बेटी देवांसी ने साध्वी जीवन धारण किया है। देवांशी अब साध्वी दिगंतप्रज्ञाश्री बन हैं।


35 हजार लोगों को मौजूदगी में हुई दीक्षा विधि

देवांशी संघवी के साध्वी बनने पर सूरत के वेसु इलाके में एक बड़ी वर्षीदान यात्रा निकाली गई थी। मिली जानकारी के अनुसार, इस भव्य यात्रा में करीब 4 हाथ, 20 घोड़े, 11 ऊंट शामिल थे। इस इलाके में आयोजित हुए दीक्षा समारोह में करीब 35 हजार सामाजिक लोगों की मौजूदगी में दीक्षा की विधि पूरी की गई थी। वहीं, साध्वी बनने से पहले देवांशी अपने गुरु के साथ मिलकर 600 किमी की पदयात्रा भी कर चुकी हैं। वहीं साध्वी देवांशी के ज्ञान की बात करें तो वह 5 भाषा की जानकार हैं। इसके अलावा संगीत, स्केटिंग, मेंटल मैथ्स और भरतनाट्यम में विशेषज्ञता हासिल कर रखी है।


4 माह की आयु से छोड़ा रात का भोजन

देवांशी संघवी के बारे उनके माता पिता ने बताया कि देवांशी ने आज तक टीवी नहीं देखा है। जैन धर्म में प्रतिबंधित किसी भी चीज का उपयोग नहीं करती है। बेटी 25 दिन की आयु से नवकारसी का पच्चखाण लेना शुरू किया है। 4 महीने की आयु में आते रात का भोजन छोड़ दिया। 8 माह की आयु आते रोज त्रिकाल पूजन की शुरुआत करने लगी। और जब वह 4 साल 3 माह की आयु में पहुंची तो गुरुओं के साथ रहने लगी।



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