जब चुनाव में बुरी तरह हार गए थे साहित्यकार नामवर सिंह, जानिए उनसे जुड़ा ये किस्सा

दिल्ली आकर उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में भारतीय भाषा केंद्र की स्थापना की। नामवर ने हिंदी साहित्य में आलोचना और साक्षात्कार विधा को नई पहचान देने का काम किया और उसे नई ऊंचाई तक ले गए। 

Update:2021-02-19 16:49 IST
जब चुनाव में बुरी तरह हार गए थे साहित्यकार नामवर सिंह, जानिए उनसे जुड़ा ये किस्सा

लखनऊ: हिंदी के जाने माने साहित्यकार व आलोचक नामवर सिंह की आज पुण्यतिथि (Death Anniversary) है। दो साल पहले 93 साल की उम्र में उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। बनारस के गांव जीयनपुर में जन्में हिंदी के प्रख्यात विद्वान डॉ नामवर सिंह के बारे में जितना भी कहा जाए कम ही है।

नामवर सिंह पढ़ने में काफी ज्यादा तेज थे। हिन्दी साहित्य में एम.ए. और पीएचडी करने के बाद उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में अध्यापन किया। कई रचनाओं में अपने शब्द पिरोने वाले नामवर ने एक बार भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से चुनाव भी लड़ा था। लेकिन वो बुरी तरह हार गए थे।

यह भी पढ़ें: मंत्रियों को हुआ कोरोना: महाराष्ट्र में फिर से महामारी का कहर, अलर्ट हुई सरकार

जब चुनाव में बुरी तरह किया हार का सामना

उनकी जिंदगी से जुड़ा ये किस्सा काफी मशहूर है। नामवर सिंह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के सदस्य हुआ करते थे। 1959 में पार्टी ने उन्हें चंदौली से लोकसभा उपचुनाव के लिए उम्मीदवार बना दिया। जिसके बाद वो चुनावी दंगल में उतर गए। हालांकि इसके लिए परिवार वाले उनके साथ नहीं थे, लेकिन उन्होंने सभी की राय के खिलाफ चुनाव लड़ना मंजूर किया।

नामवर सिंह के पास पर्याप्त पैसे नहीं थे, जिससे वो चुनाव लड़ सके और ना ही कोई अन्य संसाधन। लेकिन इन सबके बावजूद उन्होंने चुनाव जीतने के लिए चुनाव प्रचार में अपनी पूरी ताकत झोंक दी लेकिन बुरी तरह हार गए। वजह साफ थी कि नामवर नेतागिरी के लिए बने ही नहीं थे। किस्मत ने पहले ही उनके लिए कुछ और ही सोच रखा था।

यह भी पढ़ें: भयानक ट्रेन हादसा: अचानक पटरी से उतरे 39 डिब्बे, चारों तरफ बिखरे रेल कोच

(फोटो- सोशल मीडिया)

आलोचना और साक्षात्कार विधा को दी नई पहचान

चुनाव लड़ने के समय ही काशी विश्वविद्यालय की नौकरी भी नामवर के हाथ से निकल गई। लेकिन उन्होंने विचलित होने की बजाय पढ़ने लिखने और समालोचना करने में बन गए, जिसके लिए वो बने थे। दिल्ली आकर उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में भारतीय भाषा केंद्र की स्थापना की। नामवर ने हिंदी साहित्य में आलोचना और साक्षात्कार विधा को नई पहचान देने का काम किया और उसे नई ऊंचाई तक ले गए।

आलोचना-

आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियाँ - 1954

छायावाद - 1955

इतिहास और आलोचना - 1957

कहानी : नयी कहानी - 1964

कविता के नये प्रतिमान - 1968

दूसरी परम्परा की खोज - 1982

वाद विवाद संवाद - 1989

साक्षात्कार-

कहना न होगा - 1994

बात बात में बात - 2006

इसके अलावा उनकी छायावाद, नामवर सिंह और समीक्षा, आलोचना और विचारधारा जैसी किताबें भी चर्चित हैं।

नामवर को मिले सम्मान

साहित्य अकादमी पुरस्कार - 1971 "कविता के नये प्रतिमान" के लिए

शलाका सम्मान हिंदी अकादमी, दिल्ली की ओर से

'साहित्य भूषण सम्मान' उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान की ओर से

शब्दसाधक शिखर सम्मान - 2010 ('पाखी' तथा इंडिपेंडेंट मीडिया इनिशिएटिव सोसायटी की ओर से)

महावीरप्रसाद द्विवेदी सम्मान - 21 दिसम्बर 2010

यह भी पढ़ें: सावधान! देश में फिर से बढ़ने लगे हैं कोरोना के केस, 24 घंटे में मिले 13193 नए मरीज

दोस्तों देश दुनिया की और खबरों को तेजी से जानने के लिए बनें रहें न्यूजट्रैक के साथ। हमें फेसबुक पर फॉलो करने के लिए @newstrack और ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @newstrackmedia पर क्लिक करें।

Tags:    

Similar News