महात्मा गांधी और जिन्ना के राजनीतिक गुरु 'गोपाल कृष्ण गोखले', जानें इनके बारे में

गोपाल कृष्ण गोखले को गांधी और जिन्ना, दोनों ही अपना राजनीतिक गुरु मानते थे। महात्मा गांधी ने राजनीति के बारे में उनसे बहुत कुछ सीखा, इसीलिए वह राष्ट्रपिता के राजनीतिक गुरु कहलाए।

Update:2021-02-19 12:29 IST
महात्मा गांधी और जिन्ना के राजनीतिक 'गुरु गोपाल कृष्ण गोखले', जानें इनके बारे में

लखनऊ: गोपाल कृष्ण गोखले भारत के एक स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी, विचारक एवं समाजसुधारक थे। वे एक महान स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ ही एक मंझे हुए राजनीतिज्ञ भी थे। गोखले ऐसे नेता थे, जिनकी सादगी से भरे और आंकड़ों से दुरुस्त बजट भाषणों के बारे में पढ़ने के लिए लोग अखबार का इंतजार किया करते थे।

गोपाल कृष्ण गोखले को गांधी और जिन्ना, दोनों ही अपना राजनीतिक गुरु मानते थे। महात्मा गांधी ने राजनीति के बारे में उनसे बहुत कुछ सीखा, इसीलिए वह राष्ट्रपिता के राजनीतिक गुरु कहलाए। आज गोपाल कृष्ण गोखले की पुण्यतिथि है। आईये जानते हैं उनके जीवन की कहानी जिसके बारे में हर किसी को जरूर पता होनी चाहिए...

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शुरुआती जीवन

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को राजनीति पाठ पढ़ाने वाले गोपाल कृष्ण गोखले का जन्म 9 मई, 1886 को तत्कालीन बंबई प्रेसिडेंसी के अंतर्गत महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले में हुआ था। एक साधारण परिवार में जन्म लेने के बावजूद भी गोखले की शिक्षा-दीक्षा अंग्रेजी भाषा में हुई। अपनी शिक्षा दीक्षा के दौरान वे अत्यंत मेधावी छात्र थे। पढ़ाई में सराहनीय प्रदर्शन के लिए जब उन्हें सरकार की ओर से 20 रुपए की छात्रवृत्ति मिलनी शुरू हुई तो उन्हें शिक्षकों और सहपाठियों की काफी सराहना मिली।

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सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी की स्थापना

साल 1905 का वो दौर जब गोपाल कृष्ण गोखले अपनी राजनैतिक लोकप्रियता के चरम पर थे। कांग्रेस की स्थापना के चार बरस बाद ही वह इससे जुड़ गए। उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। इसके बाद उन्होंने भारतीय शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी की स्थापना की। उनका मानना था कि स्वतंत्र और आत्म-निर्भर बनने के लिए शिक्षा और जिम्मेदारियों का बोध बहुत जरूरी है।

बंग-भंग की अगुवाई

फूट-डालो और शासन करो की नीति के तहत वायसराय लार्ड कर्जन ने 1905 में बंगाल का विभाजन कर दिया था, जिसके बाद ब्रिटिश सरकार के खिलाफ पूरे देश में बंग-भंग का विरोध किया गया। बंगाल से लेकर देश के अन्य हिस्सों में विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार और स्वदेशी के स्वीकार का जबर्दस्त आन्दोलन शुरू हुआ। बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, विपिन चन्द्र पाल और अरविन्द घोष जैसे गरम दल के नेताओं ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया। वहीं नरम दल की तरफ से गोपाल कृष्ण गोखल ने इसकी अगुवाई की।

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जातिवाद-छुआछूत के खिलाफ आंदोलन

गोपाल कृष्ण गोखले ने देश में जातिवाद और छुआछूत के खिलाफ भी आंदोलन चलाया। साल 1912 में गांधी जी के आमंत्रण पर वह खुद भी दक्षिण अफ्रीका गए और वहां जारी रंगभेद की निन्दा की। उन्होंने आज़ादी की लड़ाई के साथ ही देश में व्याप्त छुआछूत और जातिवाद के खिलाफ आंदोलन चलाया। इतना ही नहीं वह जीवनभर हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए काम करते रहे। 19 फरवरी यानी आज ही के दिन सन 1915 में उनका देहावसान हो गया। मुंबई में उन्होंने आखिरी सांस ली।

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