दिल्ली हाई कोर्ट: प्रेग्नेंसी के दौरान संबंध से मना करना क्रूरता और तलाक का आधार नहीं

जस्टिस प्रतिभा रानी और प्रदीप नंदराजोग की बेंच ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि प्रेग्नेंसी के दौरान अगर कोई महिला पति को फिजिकल रिलेशन बनाने से रोकती है तो यह ना तो क्रूरता है और ना ही इस आधार पर तलाक की मंजूरी दी जा सकती है।

Update: 2016-11-06 18:04 GMT

नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट में जस्टिस प्रतिभा रानी और प्रदीप नंदराजोग की बेंच ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि प्रेग्नेंसी के दौरान अगर कोई महिला पति को फिजिकल रिलेशन बनाने से रोकती है तो यह क्रूरता नहीं है और इस आधार पर तलाक नहीं दिया जा सकता है।

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और क्या कहा कोर्ट ने ?

-कोर्ट ने कहा कि अगर पत्नी सुबह देर से उठती है या बिस्तर पर चाय मांगती है तो यह उसके आलसी होने का प्रणाम है, और आलसी होना क्रूरता नहीं है।

-दिल्ली की फैमिली कोर्ट ने क्रूरता के आधार पर एक शख्स की तलाक याचिका ठुकराते हुए यह टिप्पणी की। यह मामला 2012 का है।

-कोर्ट ने कहा कि यह कहना कि पत्नी ने अगस्त 2012 के बाद संबंध बनाने से इंकार कर दिया और यदि यह सही भी है तो उसे इस बात से समझना होगा कि मई 2012 के तीसरे सप्ताह में वह प्रेग्नेंट थी।

-कोर्ट ने कहा कि गर्भ में बच्चा होने के समय जाहिर है कि उसके लिए संबंध बनाना असुविधाजनक रहा होगा।

-यदि यह मान लिया जाए कि प्रेग्नेंसी का समय बढ़ने के साथ साथ उसने अपने पति के साथ पूरी तरह संबंध बनाना छोड़ दिया तो इससे उसकी क्रूरता साबित नहीं होती है।

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कोर्ट ने अर्जी खारिज की

-कोर्ट ने इस शख्स की दलीलों को मानने से इंकार करते हुए तलाक की मंजूरी देने से इंकार कर दिया।

-फैमिली कोर्ट ने भी इस शख्स को तलाक देने से रोक दिया था।

-इसके बाद ही उसने हाईकोर्ट में अपील की थी।

-फैमिली कोर्ट ने सुनवाई के दौरान इस शख्स के पत्नी पर लगाए आरोपों को खारिज करते हुए इन्हें बेमतलब और अस्पष्ट बताया।

-हाईकोर्ट ने भी लोअर कोर्ट के फैसले को सही माना।

-हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने आरोपों के संबंध में ना तो कोई ब्योरा दिया है और ना सबूत दिए।

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