‘वरिष्ठ’ का दर्जा पाने के इच्छुक वकीलों को अब सिफारिश की जरूरत नहीं

दिल्ली उच्च न्यायालय के बुधवार को पूर्व के एक नियम पर रोक लगाने के बाद ‘वरिष्ठ’ का दर्जा पाने के इच्छुक वकीलों को अब बार के तीन वरिष्ठ अधिवक्ताओं की सिफारिश की जरूरत नहीं होगी बशर्ते वे पात्रता के अन्य सभी पैमाने को पूरा करते हों।

Update: 2019-05-15 15:07 GMT
प्रतीकात्मक फोटो

नयी दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय के बुधवार को पूर्व के एक नियम पर रोक लगाने के बाद ‘वरिष्ठ’ का दर्जा पाने के इच्छुक वकीलों को अब बार के तीन वरिष्ठ अधिवक्ताओं की सिफारिश की जरूरत नहीं होगी बशर्ते वे पात्रता के अन्य सभी पैमाने को पूरा करते हों।

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न्यायमूर्ति राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति ए जे भंभानी की पीठ ने तीन वरिष्ठ अधिवक्ताओं की समिति द्वारा सिफारिश की अनिवार्यता के नियम को पुनर्विचार के लिये इस मामले को बड़ी पीठ के समक्ष रखने का निर्देश दिया।

पीठ ने उच्च न्यायालय की रजिस्ट्री से नियम पर रोक और उस पर बड़ी पीठ द्वारा पुनर्विचार के बारे में सार्वजनिक सूचना जारी करने को कहा है।

दिल्ली उच्च न्यायालय वरिष्ठ अधिवक्ता दर्जा नियमावली, 2018 को 13 मार्च को अधिसूचित किया गया था और इसके मुताबिक एक अधिवक्ता को वरिष्ठ का दर्जा देने पर उच्च न्यायालय या तो स्वत: फैसला ले सकता है या फिर तीन वरिष्ठ अधिवक्ताओं के संयुक्त प्रस्ताव पर ऐसा कर सकता है।

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अधिवक्ता रुचि सिंह के जरिये दायर वकील नंदिता राव और फार्रुख रशीद की याचिका में आरोप लगाया गया है कि तीन वरिष्ठ अधिवक्ताओं द्वारा अनुशंसा की पूर्व शर्त अंक प्रणाली पर आधारित नहीं है और संविधानेतर है क्योंकि वे इस दर्जे पर ‘व्यक्तिपरक प्रवेश अवरोधक’ के तौर पर काम करते हैं।

दोनों वकीलों की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने कहा कि अधिसूचना प्रतिभाशाली उम्मीदवारों को आवेदन से रोकती है इसलिये सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तय वस्तुनिष्ठ व्यवस्था की अनदेखी करती है।

(भाषा)

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