Kisan Mahapanchayat: आखिर क्या होती है किसान महापंचायत, जाने क्या हैं इनकी माँगे ?

Kisan Mahapanchayat: मोर्चा की ओर से पिछले महीने ही एमएसपी को कानूनी रूप देने के लिए दबाव बनाने का फैसला किया गया था। इसी सिलसिले में आज दिल्ली के रामलीला मैदान में किसान महापंचायत बुलाई गई है।

Update: 2023-03-20 17:04 GMT
Kisan Mahapanchayat (photo: social media )

Kisan Mahapanchayat: किसानों की विभिन्न मांगों को लेकर एक बार फिर माहौल गरमा गया है। विभिन्न किसान संगठनों के समूह संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) ने विभिन्न मांगों को लेकर एक बार फिर केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। मोर्चा की ओर से पिछले महीने ही एमएसपी को कानूनी रूप देने के लिए दबाव बनाने का फैसला किया गया था। इसी सिलसिले में आज दिल्ली के रामलीला मैदान में किसान महापंचायत बुलाई गई है।

किसानों के फिर से लड़ाई लड़ने की तैयारी को देखते हुए केंद्र सरकार ने एक बार फिर बातचीत की पहल की है। संयुक्त किसान मोर्चा का प्रतिनिधिमंडल इस बाबत केंद्र सरकार के प्रतिनिधि से बातचीत करेगा। सरकार की ओर से कृषि मंत्री बातचीत की अगुवाई कर सकते हैं। किसान संगठनों की ओर से पहले भी तीन नए कृषि कानून के खिलाफ बड़ा आंदोलन छेड़ा गया था। सरकार की ओर से उस समय किसानों की कई मांगों को पूरा करने का वादा किया गया था और अब किसान संगठनों ने उन मांगों को लेकर सरकार पर दबाव बढ़ा दिया है।

आखिर महापंचायत होती क्या है

संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से बुलाई गई इस किसान महापंचायत के मौके पर यह जानना भी जरूरी है कि आखिर महापंचायत होती क्या है। देश में महापंचायतों का आयोजन प्राचीन समय से ही होता रहा है जिसमें विभिन्न जातियों और संप्रदायों के लोग इकट्ठे होकर किसी मुद्दे पर अपनी राय रखते हुए उसे सुलझाने की कोशिश करते हैं।

महापंचायत में लिए जाने वाले फैसलों को सभी को स्वीकार करना होता है। किसानों की ओर से अपनी मांगों को लेकर पूर्व में भी महापंचायतों का आयोजन होता रहा है। अब एक बार फिर किसान संगठनों ने अपनी मांगों को लेकर महापंचायत बुलाकर सरकार पर दबाव बढ़ा दिया है। अब यह देखने वाली बात होगी कि केंद्र सरकार की ओर से किसान संगठनों को मनाने में कहां तक कामयाबी मिल पाती है।

किसान संगठनों की प्रमुख मांगें

संयुक्त किसान मोर्चा के नेता दर्शन पाल सिंह का कहना है कि 9 दिसंबर 2021 को केंद्र सरकार की ओर से किसान संगठनों को लिखित आश्वासन दिया गया था। सरकार को अब उन वादों को पूरा करने की पहल करनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि किसानों की समस्याओं को सुलझाने की दिशा में प्रभावी कदम उठाए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से किसानों के खिलाफ दर्ज किए गए केस वापस लेने और एमएसपी की कानूनी गारंटी देने की बात कही गई थी। इन मांगों को पूरा किया जाना चाहिए।

इसके साथ ही किसान संगठनों की यह भी मांग है कि आंदोलन के दौरान मरने वाले किसानों के परिवारों को सरकार की ओर से मुआवजा दिया जाए। किसानों के बिजली के बिल और कर्ज भी माफ किए जाने चाहिए। संयुक्त किसान मोर्चा की यह भी मांग है कि इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल 2022 को वापस लिया जाना चाहिए। सरकार की ओर से लिखित में वादा किया गया था कि एसकेएम से सलाह-मशविरा किए बिना बिल को सदन में पेश नहीं किया जाएगा। इसके साथ ही किसान संगठनों की यह भी मांग है कि खेती के लिए मुफ्त बिजली दी जाए और घरेलू बिजली पर भी 300 यूनिट तक बिल माफ किया जाना चाहिए। अब इन्हीं मांगों को लेकर महापंचायत बुलाकर किसान संगठनों ने केंद्र सरकार पर दबाव बढ़ा दिया है।

सरकार की ओर से बातचीत की पहल

संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से महापंचायत के ऐलान के बाद अब सरकार भी बैकफुट पर आती दिख रही है। सरकार की ओर से विभिन्न मुद्दों पर किसान संगठनों से बातचीत की पहल की गई है। जानकार सूत्रों का कहना है कि संयुक्त किसान मोर्चा का 15 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल किसान मांगों को लेकर सरकार से बातचीत करेगा।

अब सबकी निगाहें सरकार और संयुक्त किसान मोर्चा के बीच होने वाली इस बातचीत पर लगी हुई है। जानकारों के मुताबिक किसानों की सभी मांगों को पूरा करना सरकार के लिए आसान नहीं होगा। दूसरी और किसान संगठन भी अब विभिन्न मांगों को लेकर लड़ाई लड़ने के मूड में आ गए हैं।

मोदी सरकार के लिए मुश्किलें बढ़ीं

देश में अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर किसानों का यह आंदोलन मोदी सरकार के लिए मुश्किलें पैदा करने वाला है। सियासी जानकारों का मानना है कि चुनाव से पहले सरकार किसानों को नाराज नहीं करना चाहेगी क्योंकि इसका कई राज्यों के सियासी समीकरण पर बड़ा असर पड़ सकता है।

यही कारण है कि सरकार की ओर से किसानों संगठनों को मनाने की कोशिशें शुरू कर दी गई हैं। वैसे किसानों को मनाना सरकार के लिए आसान नहीं माना जा रहा है। किसान संगठनों ने पिछले आंदोलन के दौरान भी अपने तेवर दिखाए थे जिसके बाद केंद्र सरकार को तीन नए कृषि कानूनों को वापस लेने पर मजबूर होना पड़ा था।

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