बहुत कम रहा लोकसभा चुनाव में डिजिटल का खर्च

Update:2019-06-07 12:50 IST
बहुत कम रहा लोकसभा चुनाव में डिजिटल का खर्च

नई दिल्ली: 2019 का लोकसभा चुनाव भले ही बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया पर लड़ा गया हो लेकिन राजनीतिक दलों ने चुनाव के दौरान अपने कुल खर्च का एक फीसदी से भी कम हिस्सा फेसबुक और गूगल पर विज्ञापन देने में खर्च किया। यह दुनिया के अन्य हिस्सों में होने वाले चुनावों से एकदम अलग है। अमेरिका में इन दोनों कंपनियों को चुनाव में हुए कुल खर्च के 6.5 फीसदी के बराबर रकम के विज्ञापन मिले थे। ब्रिटेन में यह रकम 10.5 फीसदी रही।

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भारत के संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि डिजिटल माध्यमों का इस्तेमाल तो जम कर हुआ लेकिन सोशल मीडिया माध्यम ही नेताओं-दलों की प्राथमिकता में रहे। ये माध्यम यानी फेसबुक, व्हाट्सअप आदि जहां संदेशों के जरिए मतदाताओं को प्रभावित करने की कोशिश की गई। खुले विज्ञापन में पैसा कम खर्च किया गया। चुनाव नतीजे आने के एक दिन पहले यानी 22 मई तक के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2019 में राजनीतिक दलों ने फेसबुक पर विज्ञापन में 27.8 करोड़ रुपए खर्च किए। वहीं गूगल पर विज्ञापन देने में 27.4 करोड़ रुपए खर्च किए गए। सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज के अनुमान के मुताबिक 2019 के आम चुनाव में देश के राजनीतिक दलों ने 87 करोड़ डॉलर यानी करीब 60,000 करोड़ रुपए की रकम खर्च की है। इस प्रकार सोशल मीडिया पर एक फीसदी से भी कम राशि खर्च की गई।

अन्य देशों की बात करें तो ब्रिटेन के 2017 के आम चुनाव में फेसबुक पर करीब 27 करोड़ रुपए और गूगल पर विज्ञापनों में 8 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे। वहां के चुनावों का कुल खर्च भी सिर्फ 333 करोड़ रुपए के आसपास रहा था। ऐसे में दोनों फेसबुक व गूगल की विज्ञापन खर्च में हिस्सेदारी 10 फीसदी रही। अमेरिका में हुए मध्यावधि चुनावों का खर्च भारतीय चुनावों के खर्च के करीब रहा। सेंटर फॉर रिस्पॉन्सिव पॉलिटिक्स के मुताबिक वहां तकरीबन 40,000 करोड़ रुपए खर्च किए गए। 2018 के मध्यावधि चुनाव में फेसबुक पर 1,976 करोड़ रुपए खर्च किए गए। जबकि गूगल पर 626 करोड़ रुपए खर्च हुए। यह रकम कुल खर्च के 6 फीसदी से कुछ अधिक है। एक बात और ध्यान देने वाली है कि राजनीतिक संदेशों के प्रसार के लिए ढंके-छिपे विज्ञापनों का इस्तेमाल होने से डिजिटल क्षेत्र में इनके खर्च का आंकलन करना काफी मुश्किल है। सोशल मीडिया का कुछ हिस्सा जो आंकड़ों में शामिल नहीं है उसमें व्हाट्सएप भी शामिल है। यहां भी भारी पैमाने पर संदेश विभिन्न समूहों में भेजे जाते हैं। इस माध्यम से उपजे संदेशों की तादाद बहुत ज्यादा है जिसका मूल्यांकन करना मुश्किल होगा।

 

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