जानलेवा है कबूतर! फैला रहे हैं ये खतरनाक बीमारी, पढ़ें पूरी खबर

कबूतरों पर हुए शोध में बड़े खतरे सामने आए हैं, डॉक्टरों का भी कहना है कि कबूतर की बीट में ऐसे इंफेक्शन होते हैं जो आपके फेफड़ों को खासा नुकसान पहुंचाते हैं

Update:2019-12-04 21:56 IST

नई दिल्ली: कहा जाता है पक्षियों में कबूतर को शांति का प्रतीक माना जाता है, आप कहीं न कहीं, किसी न किसी कोने में कबूतरों को दाना डालते हुए देखे होगे, लेकिन इन्हीं कबूतरों के करीब रहने पर आपको कई जानलेवा बीमारियां हो सकती हैं।

दरअसल, दिल्ली एनसीआर में अनगिनत परिवार हैं, जो कबूतरों से पैदा होने वाली खतरनाक बीमारियों से बेपरवाह हैं, कबूतरों की आवाजाही से लोग परेशान हैं, लेकिन ये नहीं जानते कि ये सिर्फ तंग करने वाला पंछी नहीं बल्कि ऐसा पंछी है जिसकी बीट और पंख आपको बीमार, बहुत बीमार बना सकते हैं।

शोध में सामने आई बात...

कबूतरों पर हुए शोध में बड़े खतरे सामने आए हैं, डॉक्टरों का भी कहना है कि कबूतर की बीट में ऐसे इंफेक्शन होते हैं जो आपके फेफड़ों को खासा नुकसान पहुंचाते हैं और आपको जल्दी इनका पता भी नहीं चलता है, आपके घर में लगे एसी के आसपास कबूतरों ने घोंसला बनाया है तो ये खतरा कई गुना बढ़ जाता है।

अजीब सी दुर्गन्ध...

दरअसल, जहां पर भी ज़्यादा कबूतर होते हैं, वहां पर एक अजीब सी दुर्गन्ध होती है, ये कबूतर उन्हीं जगहों पर बैठना पसंद करते हैं, जहां पर इन्होंने बीट की हो।

जब ये बीट सूख जाती है तो पाउडर का रूप ले लेती है, और जब ये पंख फड़फड़ाते हैं तो बीट का पाउडर सांसों के ज़रिए हमारे भीतर पहुंच जाता है। इसी से फेफड़े की भयंकर बीमारी होती है, कबूतरों पर शोध में खुलासा हुआ है कि इनकी बीट की वजह से कई बीमारियां पैदा हो सकती हैं।

हुआ बड़ा खुलासा...

प्रोफेसर वी वासुदेव राव की रिसर्च के मुताबिक, एक कबूतर एक साल में 11.5 किलो बीट करता है, बीट सूखने के बाद उसमें परजीवी पनपने लगते हैं।

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि बीट में पैदा होने वाले परजीवी हवा में घुलकर संक्रमण फैलाते हैं, इस संक्रमण की वजह से कई तरह की बीमारियां होती हैं। कबूतर और उनकी बीट के आसपास रहने पर इंसानों में सांस लेने में तकलीफ, फेफड़ों में इन्फ़ेक्शन, शरीर में एलर्जी हो सकती है।

डॉक्टर ने दी ये सलाह...

सर गंगाराम हॉस्पिटल की डॉक्टर रश्मि सामा ने बताया कि कबूतर से होने वाली काफी सारी बीमारी फेफड़ों से जुड़ी हो सकती हैं, जिसको हम हाइपर सेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस कहते हैं।

इसके साथ ही उन्होंने बताया कि जिसमें लंग्स का एलर्जिक रिएक्शन होता है, कबूतर की ड्रॉपिंग से फंगल डिज़ीज़ भी हो सकती हैं, जिसको दवाइयों के ज़रिए ट्रीट किया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि अगर वक्त रहते बीमारियां पकड़ में न आएं तो किसी मरीज़ के लिए जानलेवा साबित हो सकती हैं।

डॉक्टर रश्मि ने बताया कि हाइपर सेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस बेहद ख़तरनाक होती है, यह वेरियस स्टेजेस में आता है, अगर एक्यूट हो तो सांस लेने में बहुत परेशानी हो सकती है, खांसी हो सकती है, ऑक्सीजन ड्रॉप हो सकती है, जोड़ों में दर्द हो सकता है।

गौरतलब है कि कबूतरों से होने वाली ये बीमारियां कबूतरों की संख्या के साथ हर साल बढ़ती जा रही हैं, शायद इसीलिए कबूतरों से होने वाली हाइपर सेंसिटिविटी के मरीज़ों की संख्या भी तेजी से बढ़ी है।

ये लक्षण है बीमारी के...

तकनीकी तौर पर इन बीमारियों को हिस्टोप्लाज़मिस, क्रिप्टोकोकोसिस, सिटाकोसिस, साल्मोनेला और लिस्टिरिया के नाम से जाना जाता है।

डॉक्टर दीपक तलवार के मुताबिक, इस बीमारी के लक्षण शुरुआत में बड़े हल्के होते हैं, खांसी का आना, सूखी खांसी का आना, और थोड़ा सांस का फूलना, धीरे धीरे बॉडी में वेट लूज़ होना, हल्का हल्का बुखार सा लगना, बॉडी में पेन, इस तरह के सिमटम होते हैं, कभी रहते हैं कभी नहीं रहते हैं, ज्यादातर खांसी और सांस का फूलना होता है।

इसको चेक करने के लिए हम लोग ब्लड टेस्ट भी करते हैं, जिससे पता लगता है कि आपको कबूतर से होने वाली कोई बीमारी हुई है या नहीं।

2001 में ट्राफलगर स्क्वायर में कबूतरों को दाना डालने पर बैन लगा था

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