लखनऊ: भारत-चीन के बीच सिक्किम सेक्टर के डोकलाम में शुरू हुए विवाद को कल बुधवार 16 अगस्त को दो महीने पूरे हो गए और आज ये तीसरे महीने में प्रवेश कर गया है। ये विवाद 16 जून को उस वक्त शुरू हुआ था, जब भारतीय सेना ने चीनी जवानों को भूटान के डोकलाम में सड़क बनाने से रोक दिया था। विवाद के दो महीने पूरे होने पर एक बार फिर चीन ने भारत से डोकलाम क्षेत्र से अपने सैनिकों को वापस बुलाने को कहा है लेकिन अब उसके सुर बदले हुए हैं । अब उसका अंदाज भारत को धमकी का नहीं बल्कि आग्रह का है ।
भारत का कहना है कि ये क्षेत्र भूटान का है, जबकि चीन मानता है कि ये उसका क्षेत्र है और भारत को भूटान के साथ सीमा विवाद के उसके मामले से दूर रहना चाहिए।
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16 जून: भारतीय सैनिकों ने चीनी सैनिकों को डोकलाम में सड़क निर्माण करने से रोक दिया
था ।
20 जून: दबाव बढ़ाने के लिए चीन ने 20 जून को नाथू ला इमिग्रेशन प्वाइंट पर तिब्बत में कैलाश मानसरोवर जा रहे 50 तीर्थ यात्रियों को वापस भेज दिया। सिक्किम से यह नया रास्ता छोटा, सुरक्षित और ज्यादा आरामदायक है। बाद में चीन ने ये रोक हटा ली।
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29 जून: सेना प्रमुख बिपिन रावत ने सिक्किम का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने गंगटोक स्थित 17 माउंटेन डिविजन और कलिमपोंग स्थित 27 माउंटेन डिविजन का दौरा किया।
7 जुलाई: जी-20 सम्मेलन में पीएम मोदी-शी जिनपिंग की मुलाकात हुई। जिनपिंग ने इस दौरान भारत की तारीफ की। उन्होंने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ भारत बेहतरीन काम कर रहा है, साथ ही BRICS (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) में भारत के नेतृत्व की भी जिनपिंग ने तारीफ की।
17 जुलाई: चीन ने तिब्बत में 11 घंटे तक युद्ध अभ्यास किया। डिफेंस एक्सपर्ट्स ने इसे भारत के लिए चेतावनी करार दिया।
20 जुलाई: सुषमा स्वराज ने सीमा पर विवाद के शांतिपूर्ण समाधान की हिमायत करते हुए कहा कि इसपर कोई बातचीत शुरू करने के लिए पहले दोनों पक्षों को अपनी-अपनी सेना हटानी चाहिए।
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24 जुलाई: चीनी सेना के प्रवक्ता ने भारत को धमकी के लिहाज में कहा कि पहाड़ को हिलाना मुमकिन है, चीन की सेना को नहीं। उन्होंने कहा चीनी सेना का 90 साल का इतिहास हमारी क्षमता को साबित करता है। पहाड़ को हिलाना तो मुमकिन है, पर चीन की सेना को नहीं। भारत किसी भ्रम में न रहे। हम हर कीमत पर अपनी संप्रभुता की रक्षा करेंगे।
28 जुलाई: अजीत डोभाल ब्रिक्स देशों के सुरक्षा सलाहकारों की मीटिंग में हिस्सा लेने चीन पहुंचे । उन्होंने अपने चीनी समकक्ष यांग जिची से भी मुलाकात की। ऐसे अनुमान लगाए गए कि डोभाल के इस दौरे के बाद डोकलाम पर विवाद शांत हो जाएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
2 अगस्त: भारत-चीन के बीच सिक्किम सेक्टर में चल रहा सीमा विवाद 2 अगस्त को और बढ़ गया। चीन ने पहली बार 15 पेजों का अधिकृत बयान जारी कर भारत को चेतावनी दी। बयान में कहा गया कि मौजूदा गतिरोध खत्म करने के लिए भारत को 'बिना किसी शर्त के' डोकलाम से अपनी सेना फौरन हटाकर 'ठोस कार्रवाई' करनी चाहिए।
3 अगस्त: चीन के साथ सीमा विवाद पर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संसद में भारत का पक्ष रखा। राज्यसभा में सुषमा ने कहा कि चीन को 2012 में हुए भारत-चीन-भूटान समझौते को मानना चाहिए। साथ ही सुषमा ने ये भी कहा कि किसी भी विवाद का हल युद्ध से नहीं बल्कि द्विपक्षीय बातचीत से ही हो सकता है।
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भारत की तैयारी शुरू!
रिपोर्ट्स के मुताबिक चीन के साथ विवाद को देखते हुए सिक्किम में भारत-चीन सीमा पर इंडियन आर्मी की 33 कोर यूनिट के जवानों की तैनाती चल रही है।
आर्मी के ईस्टर्न कमांड के सूत्रों के मुताबिक, पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी के सुकना में तैनात 33 कोर के सभी तीन डिविजन भारत-चीन सीमा पर तैनात किए गए हैं। आर्मी का ये मूवमेंट करीब 1 सप्ताह पहले ही शुरू हो गया था। ये तैनाती बिना किसी शोर-शराबे के की जा रही है, जिससे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस मुद्दे को लेकर ध्यान आकर्षित न हो। इसे ‘ट्रिकल अप मेथड’ भी कहा जाता है.
भारत-चीन-भूटान के लिए क्यों अहम है डोकलाम?
'चिकन-नेक' के पास का इलाका है डोकलाम। ये पूरा इलाका सामरिक रूप से भारत के लिए बेहद अहम है। अगर चीन यहां सड़क बनाने में कामयाब होता है तो उसके लिए भारत के चिकन नेक कहे जाने वाले सिलीगुड़ी तक पहुंच काफी आसान हो जाएगी।
दरअसल, ‘चिकन नेक’ उस इलाके को कहते हैं जो सामरिक रूप से किसी देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है, लेकिन संरचना के आधार पर कमजोर होता है। सिलीगुड़ी कॉरिडोर ऐसा ही क्षेत्र है।
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भूटान की जिम्मेदारी
भूटान के भारत के साथ खास रिश्ते हैं और 1949 की संधि के मुताबिक, ये विदेशी मामलों में भारत सरकार की ‘सलाह से निर्देशित’ होगा। 1949 में साइन की गई और फिर 2007 में दोहराई गई संधि के मुताबिक, भूटान के भू-भाग के मामलों को देखना भी भारत की जिम्मेदारी है ।
चीन क्यों डोकलाम पर नजर गड़ाए हुए है?
चीन का डोकलाम पठार पर सड़क बना देना उसके सैनिकों को सिलीगुड़ी कॉरिडोर के और करीब पहुंचा देगा। चीन ये नहीं मानता है कि डोकलाम पठार का 'डोका ला' इलाका 'ट्राइजंक्शन' है। चीन 'डोका ला' इलाके को अपना हिस्सा मानता है और भूटान अपना।
इस सड़क का मकसद है 'ट्राइजंक्शन' को हमेशा के लिए शिफ्ट कर देना। सड़क बनने के साथ ही चीन का ‘डोका ला’ पर दावा और मजबूत हो जाएगा।