Yaadgaar Kissa: जब संविधान निर्माता अंबेडकर खुद हार गए थे चुनाव, कांग्रेस ने किया था खेल, नेहरू ने हराने के लिए लगा दी थी पूरी ताकत

Yaadgaar Kissa: पंडित नेहरू ने अंबेडकर को चुनाव जीतने से रोकने की पूरी कोशिश की थी। अंबेडकर की चुनावी जीत रोकने के लिए पंडित नेहरू ने उस चुनाव में उनके पर्सनल असिस्‍टेंट नारायण काजरोलकर को मैदान में खड़ा किया।

Written By :  Anshuman Tiwari
Update:2024-05-27 17:02 IST

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर-पंडित जवाहरलाल नेहरू: Photo- Social Media

Yaadgaar Kissa: मौजूदा लोकसभा चुनाव के दौरान संविधान और इसके निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का नाम भी खूब चर्चाओं में है। विपक्ष के नेताओं की ओर से आरोप लगाया जा रहा है कि यदि भाजपा इस बार सत्ता पाने में कामयाब रही तो पार्टी देश के संविधान में बदलाव करेगी। विपक्षी नेताओं ने इस मामले को इतना गर्म दिया है कि यह लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गया है। दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि अब बाबा साहब अंबेडकर भी आकर कहें तो देश का संविधान नहीं बदल सकता।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी: Photo- Social Media

वैसे देश के हर चुनाव में अंबेडकर का नाम चुनावी सभाओं में गूंजता रहा है। दलित वोटो का समीकरण साधने के लिए भी राजनीतिक दलों की ओर से अंबेडकर के नाम का इस्तेमाल किया जाता रहा है। पिछले दिनों महिला आरक्षण बिल पर चर्चा के दौरान भी अंबेडकर को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष में खूब तकरार हुई थी। सत्ता पक्ष का कहना था कि कांग्रेस के लोगों ने तो संविधान निर्माता बीआर अंबेडकर को भी चुनाव हरवा दिया था जबकि दूसरी ओर कांग्रेस ने इस पर तीखा विरोध जताया था। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि वह कौन चुनाव था जिसमें अंबेडकर हार गए थे और उनकी हर में कांग्रेस की क्या भूमिका थी।

 बाबा साहेब डॉ.भीमराव अंबेडकर: Photo- Social Media

संसद में भी अंबेडकर की हार पर हुई थी चर्चा

महिला आरक्षण बिल पर लोकसभा में चर्चा के दौरान भाजपा और कांग्रेस के बीच बाबा साहेब डॉ.भीमराव अंबेडकर को लेकर भी तीखी तकरार हुई थी। दरअसल केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने चर्चा के दौरान कहा कि डॉ अंबेडकर की वजह से देश में सभी लोगों को वोट देने का अधिकार हासिल हुआ मगर कांग्रेस ने संविधान के शिल्पकार डॉ.अंबेडकर को भी चुनाव में हराने का काम किया। मेघवाल के इस बयान पर कांग्रेस सांसदों ने तीखा विरोध जताया था।

कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने लोकसभा में मेघवाल के बयान पर तीखी आपत्ति जताते हुए उनसे सबूत मांगा। उन्होंने कहा कि मेघवाल सदन को गुमराह करना चाहते हैं कि कांग्रेस ने बाबा साहेब को चुनाव में हराया था। इस पर दखल देते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि मेघवाल का बयान फैक्चुअली करेक्ट है। जैसे राहुल गांधी को भाजपा ने हराया, यह फैक्चुअली करेक्ट है। बाबा साहेब के खिलाफ चुनाव जीत कर आने वाले प्रत्याशी कांग्रेस के ही थे। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि मेघवाल और अमित शाह के बयानों में कितना दम है।

1952 के चुनाव में हार गए थे अंबेडकर

देश के संविधान के शिल्पकार माने जाने वाले बीआर अंबेडकर जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्रित्व में बनी देश की पहली अंतरिम सरकार में कानून मंत्री थे मगर दोनों नेताओं की पटरी ज्यादा दिनों तक नहीं बैठ सकी। कांग्रेस से मतभेद के चलते 27 सितंबर, 1951 को उन्होंने नेहरू मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था। अंबेडकर नेहरू सरकार की ओर से अनुसूचित जाति के लोगों की उपेक्षा से नाराज थे।

नेहरू मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने के बाद अंबेडकर शेड्यूल कास्ट्स फेडरेशन को खड़ा करने में जुट गए। एक साल बाद 1952 में देश में पहला आम चुनाव हुआ और अंबेडकर ने भी इसमें हिस्सा लिया। उनकी पार्टी ने चुनाव में 35 प्रत्याशी खड़े किए, लेकिन अंबेडकर की पार्टी के सिर्फ दो प्रत्याशियों को ही जीत हासिल हुई। हालत यह हो गई की महाराष्ट्र की उतरी मुंबई सीट से डॉक्टर अंबेडकर को भी चुनावी हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव नतीजे की किसी को भी उम्मीद नहीं थी।

पंडित जवाहरलाल नेहरू- भारत के राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद- बाबा साहेब डॉ.भीमराव अंबेडकर: Photo- Social Media

अंबेडकर को हराने में नेहरू ने लगाई पूरी ताकत

दरअसल देश का पहला आम चुनाव 1952 में हुआ था और उस चुनाव के दौरान सभी के दिलों दिमाग पर पंडित जवाहरलाल नेहरू का जादू छाया हुआ था। इस पहले आम चुनाव के दौरान डॉक्टर अंबेडकर भी चुनाव मैदान में उतरे थे। उस चुनाव के दौरान पंडित नेहरू ने अंबेडकर को चुनाव जीतने से रोकने की पूरी कोशिश की थी। अंबेडकर की चुनावी जीत रोकने के लिए पंडित नेहरू ने उस चुनाव में उनके पर्सनल असिस्‍टेंट नारायण काजरोलकर को मैदान में खड़ा किया। उनकी हार सुनिश्चित करने के लिए खुद नेहरू ने कैंपेनिंग भी की।

इस चुनाव में डॉ.अंबेडकर और काजरोलकर के अलावा कम्‍युनिस्‍ट पार्टी और हिंदू महासभा का एक-एक कैंडिडेट था। काजरोलकर भी बैकवर्ड क्‍लास से थे। उस समय नेहरू की इतनी तगड़ी लहर थी कि काजरोलकर ने डॉक्टर अंबेडकर को चुनाव में हरा दिया था।

चुनाव में अंबेडकर को 1,23,576 वोट मिले और काजरोलकर को 1,37,950 वोट मिले। काजरोलकर को करीब 15,000 वोटों से जीत हासिल हुई थी। अंबेडकर की इस चुनावी हार ने हर किसी को हैरान कर दिया था।

उपचुनाव में भी कांग्रेस ने दिया था अंबेडकर को झटका

देश के पहले आम चुनाव में मिली हार से डॉ अंबेडकर को बड़ा झटका लगा था। महाराष्ट्र उनकी कर्मभूमि थी मगर अपनी कर्मभूमि में ही उन्हें चुनावी पराजय का सामना करना पड़ा था। दूसरी ओर कांग्रेस की दलील थी कि अंबेडकर सोशल पार्टी का साथ दे रहे थे। इसलिए पार्टी के सामने उनका विरोध करने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं था। वैसे अंबेडकर की चुनावी हार का सिलसिला यहीं नहीं थमा बल्कि बाद में कांग्रेस ने उन्हें एक और बड़ा झटका दिया।

दरअसल 1954 में भंडारा लोकसभा सीट के लिए उपचुनाव कराया गया था। कांग्रेस ने उस चुनाव के दौरान भी डॉक्टर अंबेडकर को हराया था। पंडित नेहरू ने उस चुनाव के दौरान भी यह सुनिश्चित करने की पूरी कोशिश की थी कि डॉ अंबेडकर किसी भी सूरत में चुनाव न जीतने पाएं।

बाद में 1956 में डॉक्टर अंबेडकर का निधन हो गया था। ऐसे में कानून मंत्री मेघवाल और गृह मंत्री शाह के इस बयान में काफी दम है कि कांग्रेस ने डॉक्टर अंबेडकर को चुनाव में हराने का काम किया था।

अंबेडकर को साइडलाइन करने का बड़ा आरोप

देश के पहले आम चुनाव के दौरान पंडित नेहरू की अगुवाई में कांग्रेस ने बड़ी कामयाबी हासिल की थी। उस समय नेहरू की लहर का पूरे देश में काफी असर दिखा था। 1952 के चुनाव के दौरान कांग्रेस ने लोकसभा के 489 में से 364 सीटों पर जीत हासिल की थी। पंडित नेहरू की लोकप्रियता की वजह से कांग्रेस को कोई भी नेता या दल चुनौती नहीं दे सका था।

वैसे भाजपा पहले भी यह आरोप लगाती रही है कि कांग्रेस और गांधी परिवार ने हमेशा अंबेडकर को साइडलाइन किया। इसी कारण अंबेडकर मेनस्ट्रीम पॉलिटिक्स में एंट्री नहीं कर सके। भाजपा के इस आरोप पर कांग्रेस तीखी प्रतिक्रिया जताती रही है।

भारत के प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह: Photo- Social Media

वीपी सिंह के राज में मिला था भारत रत्न

भाजपा अंबेडकर को भारत रत्न न देने के मुद्दे पर भी कांग्रेस को घेरती रही है। लंबे समय तक सत्ता में रहने के बावजूद कांग्रेस सरकारों की ओर से डॉ अंबेडकर को भारत रत्न नहीं दिया गया था। अंबेडकर को काफी बाद में वीपी सिंह की सरकार के समय भारत रत्न दिया गया था।

भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण अडवाणी- भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी: Photo- Social Media

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि वीपी सिंह की सरकार भाजपा के समर्थन से ही चल रही थी। मेघवाल ने लोकसभा में इस तथ्य का भी जिक्र किया था कि अटल और आडवाणी के समर्थन से चलने वाली गैर कांग्रेसी सरकार के समय डॉक्टर अंबेडकर को देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न दिया गया था। उस समय देश के सियासी हल्कों में इस बात की खूब चर्चा भी हुई थी।

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