Climate Change: कैसे झेलेंगे इस बार की जबर्दस्त गर्मी, तैयारियां भी नहीं
Climate Change: एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 30 साल में सिर्फ भारत में गर्मी से कम से कम 26 हजार लोगों की मौत हो चुकी है। झुग्गी बस्तियों में रहने वाले, स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित, बुजुर्ग और गर्भवती महिलाएं, छोटे या बंद कमरों में काम करने वाले कारीगर, किसान और निर्माण कार्य में लगे मजदूर गर्मी के सबसे पहले शिकार होते हैं।
Climate Change: भारत में गर्मियों की शुरुआत हो चुकी है ऐसा पूर्वानुमान है कि इस बार कुछ ज्यादा ही गर्मी पड़ेगी। अगले महीने से तापमान के तेजी से बढ़ने का अनुमान है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस महीने की शुरुआत में हीटवेव की तैयारियों की समीक्षा के लिए एक उच्चस्तरीय बैठक भी की थी। अब एक रिपोर्ट में बताया गया है कि देश गर्मी का सामना करने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं है। ये रिपोर्ट थिंक-टैंक सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च ने जारी की है जो गर्मी का सामना करने की तैयारी पर है।
हीट एक्शन प्लान
सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च ने 18 राज्यों में सभी 37 हीट एक्शन प्लान (एचएपी) का विश्लेषण किया, यह मूल्यांकन करने के लिए कि भारत में गर्म मौसम के साथ नीतिगत कार्रवाई कैसे चल रही है। विश्लेषण में पाया गया कि अधिकांश एचएपी स्थानीय जरूरत के हिसाब से नहीं बनाए गए हैं। यह पाया गया कि लगभग सभी एचएपी कमजोर समूहों की पहचान करने और उन्हें टारगेट करने में विफल रहे हैं। ये कमजोर कानूनी नींव के साथ कम वित्तपोषित हैं और इनके काम में पारदर्शिता की कमी है।
सेहत के लिए बड़ी चुनौती
अत्यधिक गर्मी ने स्वास्थ्य और उत्पादकता के लिए एक अभूतपूर्व चुनौती पेश की है। सेंटर ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन के कारण हाल के दशकों में गर्मी की लहरों यानी लंबे समय तक अत्यधिक गर्मी की अवधि में बढ़ोतरी हुई है। सेंटर के अनुसार 1998, 2002, 2010, 2015, 2022 में हीटवेव का असर ये रहा कि इसने श्रम उत्पादकता को कम किया है। पानी की उपलब्धता, कृषि और ऊर्जा सिस्टम को प्रभावित करके बड़े पैमाने पर मृत्यु दर बढ़ाने के साथ साथ बड़े पैमाने पर व्यापक आर्थिक नुकसान किया है।
सरकारी तैयारी
हीटवेव की स्थितियों को देखते हुए पूरे भारत में राज्य, जिला और नगरपालिका स्तर पर हीट एक्शन प्लान (एचएपी) बनाये गए। ये हीटवेव के प्रभाव को कम करने के लिए सरकारी विभागों में विभिन्न प्रकार की प्रारंभिक गतिविधियों और हीटवेव के बाद के उपायों को तय करते हैं।
क्या कहती रिपोर्ट
रिपोर्ट के अनुसार भारत में कितने एक्शन प्लान तैयार किए गए हैं इसकी सटीक संख्या की कोई जानकारी नहीं है। ऐसा दावा किया गया है कि देश भर में 100 से ज्यादा हीट एक्शन प्लान (एचएपी) मौजूद हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि आने वाले 7-8 सालों यानी 2030 तक गर्मी इतनी बढ़ जाएगी कि इसका असर काम करने वाले लोगों के वर्किंग आवर पर पड़ने लगेगा।
रिपोर्ट के अनुसार देश में हीट एक्शन के लिए कोई राष्ट्रीय कोष नहीं है और बहुत कम हीट एक्शन को ऑनलाइन सूचीबद्ध किए गया है। यह भी स्पष्ट नहीं है कि इन एचएपी को समय-समय पर अपडेट किया जा रहा है या नहीं।
हजारों मौतें
एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 30 साल में सिर्फ भारत में गर्मी से कम से कम 26 हजार लोगों की मौत हो चुकी है। झुग्गी बस्तियों में रहने वाले, स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित, बुजुर्ग और गर्भवती महिलाएं, छोटे या बंद कमरों में काम करने वाले कारीगर, किसान और निर्माण कार्य में लगे मजदूर गर्मी के सबसे पहले शिकार होते हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण हाल के सालों में हीट वेव और बहुत ज्यादा तापमान लगातार आम होते जा रहे हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्रीन हाउस गैसों का बढ़ता उत्सर्जन इनकी बारंबारता और तीव्रता को बढ़ा रहा है।
जलवायु परिवर्तन
दक्षिण भारत में उमस एक ऐसी समस्या है जिसे सीधे तौर पर जलवायु परिवर्तन से जोड़कर देखा जा रहा है और उन इलाकों में तापमान के कम रहने के बावजूद गर्मी को और खतरनाक बना देती है। 2021 में एक रिपोर्ट में बताया गया था कि गर्मी के कारण काम के घंटों में सबसे ज्यादा नुकसान भारत को होगा जो सालाना सौ अरब घंटों से भी ज्यादा हो सकता है। इसका आर्थिक असर बहुत गंभीर होने की आशंका है।