अंशुमान तिवारी
गुजरात व हिमाचल प्रदेश में चुनाव के बाद भाजपा की नजरें अब उन प्रदेशों पर गड़ गयी हैं जहां अगले कुछ महीनों में चुनाव होने हैं। वैसे तो कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं लेकिन उनमें तीन बड़े राज्य हैं मध्यप्रदेश, कर्नाटक और राजस्थान। इन तीनों राज्यों में भाजपा के लिए कर्नाटक का अलग ही महत्व है क्योंकि बाकी दोनों राज्यों में उसे सत्ता बचानी है जबकि इस राज्य में भाजपा को कांग्रेस से सत्ता छीननी है।
वैसे तो गुजरात के नतीजों का प्रत्यक्ष रूप से कर्नाटक पर कोई असर नहीं पडऩे वाला है मगर यह माना जा रहा है कि मोदी और शाह की जोड़ी इस राज्य में कांग्रेस को हराने के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा देगी। दूसरी ओर कांग्रेस ने गुजरात में भाजपा को कांटे की टक्कर देकर नई ऊर्जा हासिल की है और अब वह भाजपा को मुंहतोड़ जवाब देने की कोशिश करेगी।
दोनों दलों में राज्यस्तरीय मजबूत नेता
वैसे गुजरात की तरह कर्नाटक में भाजपा को सत्ता विरोधी रुझान या पाटीदारों की नाराजगी जैसी समस्या से नहीं जूझना है। कर्नाटक में भाजपा के पास लिंगायत समुदाय में खासा असर रखने वाले बी.एस.येदुरप्पा जैसे नेता हैं। एस.एम.कृष्णा के आने से भी भाजपा मजबूत हुई है। भाजपा अध्यक्ष राज्य में भाजपा के अभियान को धारदार बनाने की रणनीति बनाने में जुट गए हैं।
वैसे राजनीतिक समीक्षकों का यह भी मानना है कि केन्द्रीय नेतृत्व पर ज्यादा निर्भर करना कर्नाटक में भाजपा के लिए ज्यादा फायदेमंद नहीं होगा क्योंकि राज्य में कांग्रेस के पास सिद्धारमैया जैसा मजबूत नेता है। कांग्रेस के लिए कर्नाटक के किले को बचाना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि उसका फैलाव लगातार सिकुड़ता जा रहा है। चुनावी बाजी को जीतने के लिए सिद्धारमैया कन्नड़ अस्मिता का सवाल उठाकर भाजपा को बैकफुट पर धकेलने की कोशिश में जुटे हुए हैं।
कर्नाटक की जीत काफी महत्वपूूर्ण
सीएम का कहना है कि गुजरात व कर्नाटक के मुद्दे बिल्कुल अलग हैं और भाजपा की जीतने वाला फामूला कर्नाटक में काम नहीं करेगा। कांग्रेस सत्ता बचाने में जरूर कामयाब होगी। वे दावा करते हैं कि अपने 40 साल के राजनीतिक अनुभव के आधार पर वे दावा कर सकते हैं कि राज्य की जनता का समर्थन कांग्रेस के साथ है। भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए कांग्रेस वीरशैवा व लिंगायत समुदाय को बांटने की कोशिश में भी लगी हुई है।
हालांकि पार्टी इस मुहिम में कहां तक सफल होगी,यह अभी कहना मुश्किल है। दूसरी ओर भाजपा जोर-शोर से सिद्धारमैया सरकार की विफलताओं को उजागर करने में लगी हुई है। भाजपा व कांग्रेस दोनों के लिए कर्नाटक में विजय हासिल करना अलग-अलग कारणों से महत्वपूर्ण है। भाजपा इसे इसलिए जीतना चाहती है कि यह दक्षिण भारत में उसके लिए प्रवेश द्वार बनेगा जबकि कांग्रेस एक बड़ा राज्य अपने हाथ से नहीं निकलने देना चाहती।
रैलियों में उमडऩे वाली भीड़ को वोट में तब्दील करना दोनों पार्टियों के लिए चुनौती साबित होगा। वैसे कर्नाटक में एक तीसरी ताकत भी है जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। भाजपा व कांग्रेस दोनों की इस ताकत पर भी नजर है। पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी.देवगौड़ा के नेतृत्व वाली क्षेत्रीय पार्टी जेडी (एस) राज्य में महत्वपूर्ण ताकत है। पुराने मैसूर व उत्तरी कर्नाटक में इस पार्टी का खासा असर है। पिछले विधानसभा चुनावों में इस पार्टी ने अपनी ताकत भी दिखाई है। यदि दोनों राष्ट्रीय दल बहुमत पाने में विफल होते हैं तो यह पार्टी सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगी।
पिछले तीन लोकसभा चुनाव का ब्योरा
2004 2009 2014
भाजपा - 18 19 17
कांग्रेस - 08 06 09
जेडी(एस) - 02 03 02
पिछले तीन विधानसभा चुनाव का ब्योरा
2004 2008 2013
भाजपा - 79 110 40
कांग्रेस - 65 80 122
जेडी(एस) - 58 28 40