Coal Field: ऊर्जा सुरक्षा और न्यायोचित बदलाव –भारतीय कोयला क्षेत्र का दृष्टिकोण

Coal Field: देश की बढ़ती ऊर्जा जरूरतों के कारण नवीकरणीय ऊर्जा के विकास का भारत में कोयला क्षेत्र पर कम प्रभाव पड़ने का पूर्वानुमान है। भारत में कोयले की कुल खपत अभी चरम पर नहीं पहुंची है और उम्मीद है कि कोयले की मांग बढ़ती रहेगी और 2040 के आसपास यह चरम पर पहुंच सकती है।

Written By :  Shri Bhabani Prasad
Update:2023-10-05 23:20 IST

ऊर्जा सुरक्षा और न्यायोचित बदलाव –भारतीय कोयला क्षेत्र का दृष्टिकोण: Photo-Newstrack

Coal Field: कोयला क्षेत्र लंबे समय से भारत के आर्थिक विकास और ऊर्जा सुरक्षा का आधार रहा है। जैसे-जैसे देश की आबादी बढ़ती जा रही है वैसे-वैसे बिजली तक पहुंच अधिक व्यापक होती जा रही है, इसलिए कोयला क्षेत्र ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण स्रोत बना हुआ है। नवीकरणीय ऊर्जा के लिए संगठित प्रयास के बावजूद, ऐसा अनुमान है कि कोयला एक प्रमुख ऊर्जा स्रोत बना रहेगा। अनुमानों से संकेत मिलता है कि घरेलू कोयला उत्पादन 2030 तक 1.5 बिलियन टन तक बढ़ सकता है, जो 2040 के आसपास चरम पर पहुंच सकता है।

जलवायु परिवर्तन के समाधान की तत्काल आवश्यकता को स्वीकार करते हुए, भारत एक ऐसे विकास मॉडल के लिए प्रतिबद्ध है जो कम कार्बन और पर्यावरण के अनुकूल विकास के अपने "पंचामृत" लक्ष्यों के अनुरूप हो। जलवायु संबंधी विचारों और आर्थिक वास्तविकताओं के बीच संतुलन बनाते हुए, देश ने एक मध्यम मार्ग अपनाया है, जिसमें सामान्य लेकिन विभेदित जिम्मेदारियां और सम्बंधित क्षमता (सीबीडीआर-आरसी) के सिद्धांतों के आधार पर संतुलित विकास मॉडल प्राप्त करने के लिए "जलवायु न्याय" पर जोर दिया गया है। इस दृष्टिकोण में परिवर्तन की जटिलताओं से निपटने के लिए कोयला गैसीकरण जैसे कोयले के वैकल्पिक उपयोगों की खोज करना शामिल है।

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देश की बढ़ती ऊर्जा जरूरतें

देश की बढ़ती ऊर्जा जरूरतों के कारण नवीकरणीय ऊर्जा के विकास का भारत में कोयला क्षेत्र पर कम प्रभाव पड़ने का पूर्वानुमान है। भारत में कोयले की कुल खपत अभी चरम पर नहीं पहुंची है और उम्मीद है कि कोयले की मांग बढ़ती रहेगी और 2040 के आसपास यह चरम पर पहुंच सकती है। यद्यपि निकट भविष्य में, कुछ खानें, भंडार की समाप्ति के कारण बंद हो सकती हैं लेकिन साथ ही बढ़ती ऊर्जा मांग को पूरा करने के लिए कई नई कोयला खानों का प्रचालन किया जा रहा है। ये खानें न केवल राष्ट्र की वहनीयता और ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित कर रही हैं, बल्कि बेहतर आजीविका सुनिश्चित करने और कोयला क्षेत्रों में अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए भी बंद होने वाली खानों से नई खानों में श्रमिकों की पुन: तैनाती और नए रोजगार के लिए पर्याप्त अवसर भी प्रदान कर रही हैं। इस प्रकार, लघु और मध्यम अवधि दोनों में अर्थात् कम से कम एक व्यापार चक्र के लिए तत्काल कोई आजीविका और सामाजिक मुद्दे नहीं होंगे। इस प्रकार, कोयला खानों से संबंधित सामाजिक, भौतिक और पर्यावरणीय पहलुओं का निपटान विभिन्न मौजूदा वैधानिक प्रावधानों के अनुसार किया जाता है।

कोयला क्षेत्र में बदलाव

कोयला खानों को बंद किए जाने के संबंध में वैज्ञानिक और उद्देश्यपरक तरीके से प्रबंधन करने की आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रभावित लोगों की आजीविका सुरक्षित रहे। इस संबंध में, पेरिस समझौता, 2015 में "न्यायोचित बदलाव" का विचार लाया गया था। यह कोयला खानों के बंद होने से प्रभावित सभी हितधारकों के लिए एक न्यायसंगत, निष्पक्ष और उचित परिवर्तन के बारे में बताता है, जो हो सकता है और जिस पर विचार करने की आवश्यकता है। न्यायोचित बदलावके मार्ग का उद्देश्य कोयले पर निर्भर क्षेत्रों में अवसंरचना विकास, पारिस्थितिक पुनरूद्धार, क्षमता-निर्माण और आजीविका के नए अवसरों में सहायता करना है।

जैसा कि विश्व जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की ओर पारगमन के लिए एकजुट है, कोयला क्षेत्र भी इस परिवर्तन में आगे खड़ा है। तथापि, ऐसा बदलाव उन कार्यनीतियों के साथ होना चाहिए जो ऊर्जा सुरक्षा, सामाजिक निष्पक्षता, आर्थिक स्थिरता और प्रभावित समुदायों के कल्याण को प्राथमिकता दें। विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मॉडल से प्रेरणा लेते हुए, कोयला क्षेत्र में श्रेष्ठ कार्यपद्धतियों, यद्यपि यह काफी दुर्लभ और अनियमित हैं, और न्यायोचित बदलावके सिद्धांतों को लागू किया जाना सामने आ रहा है जो ऐसे ही बदलावोंसे गुजरने वाले देशों को मूल्यवान सीख देता है।

जी 20

भारत की जी 20 अध्यक्षता के ईटीडब्ल्यूजी के प्राथमिकता क्षेत्र "स्वच्छ ऊर्जा और न्यायसंगत, किफायती तथा समावेशी ऊर्जा परिवर्तन मार्ग तक सार्वभौमिक पहुंच" के अंतर्गत सीएमपीडीआई ने कोयला मंत्रालय के मार्गदर्शन में "कोयला क्षेत्र में न्यायोचित बदलावके लिए श्रेष्ठ वैश्विक कार्यपद्धतियों" पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक अध्ययन किया। इस अध्ययन के निष्कर्ष इन प्रमुख बातों को उजागर करते हैं: जिन कोयला क्षेत्रों में कोयला समाप्त हो गया है उनके पुनरूद्धार के लिए पर्याप्त तकनीकी और वित्तीय सहायता की आवश्यकता; लंबी अवधि में कोयला खानों के बंद होने से जुड़ी सामाजिक और श्रम चुनौतियों का प्रभावी ढंग से प्रबंधन करना जिसमें बहु-हितधारक नीति को आकार देकर सफलता मिल सकती है; ह्यूमन कैपिटल में निवेश विशेष रूप से शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा में महत्व रखता है; स्थानीय संस्थागत क्षमता को बढ़ावा देना एक अनुकूल और विविध कारोबारी माहौल और समन्वित आर्थिक विकास की कार्यनीतियों के लिए महत्वपूर्ण है तथा कार्यनीतिक संसाधन आवंटन खान बंद होने के प्रभाव को कम करने के लिए महत्वपूर्ण है। प्रभावी न्यायोचित बदलाव मजबूत सामाजिक साझेदारी बनाने और हितधारकों से जुड़ने, पूर्व योजना बनाने और विविधीकरण, पुनर्प्रशिक्षण तथा कौशल विकास, सामाजिक सुरक्षा, अवसंरचना और सामुदायिक विकास, छोटे और मध्यम उद्यमों (एसएमई) को सहायता, ग्रीन फाइनेंस और निवेश तथा अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर निर्भर करता है।

जो देश कोयले पर निर्भर हैं, उन्हें योजना बनाने और भविष्य में आवश्यकता पड़ने पर कोयला क्षेत्र में एक उत्तरोत्तर न्यायोचित बदलाव योजना के लिए तैयार होने की आवश्यकता होगी। कोयला खानों को तकनीकी और पर्यावरणीय आधार पर बंद किए जाने के संबंध में विभिन्न हितधारकों की भूमिकाएं और दायित्व तथा प्रभावित व्यक्तियों और समुदायों की सहायता संबंधी दायित्व न्यायोचित बदलाव के अनुभव के संदर्भ में देश-दर-देश काफी भिन्न हो सकते हैं।

न्यायोचित बदलाव की योजना खान के बंद होने से काफी पहले शुरू हो जाती है, जिसमें बदलाव के लिए विजन तैयार करते हुए विभिन्न हितधारकों के बीच समावेशी जुड़ाव शामिल होता है। कोयले और स्थानीय अर्थव्यवस्था के बीच व्यापक संबंधों को समझना - जहां खान बंद होने के सामाजिक प्रभाव का विस्तार व्यापक रूप से विभिन्न श्रम बल और समुदायों तक होता है। कोयला क्षेत्रों में कोयले पर निर्भर समुदायों के निर्वाह के लिए कम कार्बन वाली आर्थिक गतिविधियों को अपनाने के लिए, जी 20 या विकसित देश आवश्यक वित्तीय और तकनीकी सहायता देकर कोयले पर निर्भर देशों में निष्पक्ष बदलाव प्रक्रिया में मदद कर सकते हैं।

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कोयला श्रमिक

अंत में, न्यायोचित बदलाव के माध्यम से कोयला क्षेत्र का परिवर्तन एक ऐसा जटिल प्रयास है जो सावधानीपूर्वक योजना बनाने, सहयोग और सहानुभूति की मांग करता है। विश्व भर से श्रेष्ठ कार्यपद्धतियों को अपनाकर, कोयले पर निर्भर देश एक अधिक सतत भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं जो न केवल जलवायु परिवर्तन का समाधान करता है बल्कि कोयला श्रमिकों और समुदायों की गरिमा और आजीविका को भी बनाए रखता है। जैसे-जैसे दुनिया विकसित होती है, ये कार्यपद्धतियां संतुलित और न्यायसंगत परिवर्तन की दिशा में पथ प्रदर्शक के रूप में कार्य कर सकती हैं।

लेखक- भबानी प्रसाद पति, संयुक्त सचिव, कोयला मंत्रालय

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